राम सिर्फ ईश्वर ही नहीं, बल्कि एक विचारधारा भी...

 

करोड़ों के सांसों के स्वामी भगवान श्री राम सिर्फ आस्था के ही प्रतीक नहीं है, बल्कि मानव के स्वस्थ जीवन में आर्थिक सामाजिक राजनीतिक जीवन के पथ प्रदर्शक भी हैं। अगर चिंतन करें तो हम पाएंगे कि तुलसीदास जी ने अपने  श्रीराम चरितमानस में भगवान राम के मर्यादा पुरुषोत्तम के गुण वर्णन के साथ एक साधारण मनुष्य के जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में जीवन जीने के तरीके को भी दर्शाया है। आज उन सभी छात्राओं नवयुवकों को जो जीवन की थोड़ी सी समस्या असफलता आने पर आत्महत्या जैसे कुविचार को अपना लेते हैं, उन्हें श्री रामचरितमानस से सीख लेना चाहिए कि सफलता असफलता लाभ हानि जन्म मरण यह एक मन का विचार है और कुछ भी नहीं है जिस दिन यह बात हमारे नवयुवकों को समझ में आ जाएगी। उसे दिन नवयुवकों में हताशा के कारण आत्महत्या की समस्या और व्यभिचार दोनों समाप्त हो जाएगा। इस समस्या का निराकरण विश्व का कोई विश्वविद्यालय नहीं दे सकता है। इसके लिए श्री रामचरितमानस को ही आत्मसात करना होगा।

जब तक हम भारतीयों को पाप—पुण्य का मन में डर था तब तक हमारे देश में अपराध एवं व्यभिचार की दर बहुत कम थी लेकिन आज कानून की धाराओं को जितना विस्तार होता जा रहा है। अपराध और व्यभिचार उसकी दुगनी रफ़्तार से बढ़ता जा रहा है। आज भी समय है। अगर हम अपना जीवन सुखमय चाहते हैं तो सर्वप्रथम हमें अपने बच्चों को राम के आदर्श गुण एवं श्रीराम चरितमानस से जोड़ना होगा। अन्यथा बाद में सिर्फ अपने भाग्य को कोसने के सिवाय हमारे पास कुछ नहीं बचता है। व्यक्ति का सर्वांगीण विकास शिक्षा के बिना संभव नहीं हो सकता है लेकिन शिक्षा कैसी हो, इस पर राजनीति होने लगती है। अगर हम प्राचीन कॉल में भारतीय शिक्षा पद्धति को देखें तो शायद हमारे ऋषि—मुनि ने एक उच्च चरित्रवान गुणवान और विद्वान शैक्षिक विद्यार्थी हमारे समाज को प्रदान किया जिन्होंने शून्य की खोज से लेकर के विश्व के कल्याण तक का मार्ग प्रशस्त किया और आज डिग्री देने वाले विश्वविद्यालय तो हर कदम खुल गए हैं लेकिन न आर्यभट्ट दे पा रहे हैं और न ही स्वामी विवेकानंद दे पा रहे हैं। प्राचीन और आज की शिक्षा में तुलना करें तो एक लाइन याद आती है। हम क्या थे? क्या हो गये और क्या होंगे? अभी आओ, जरा सोचें, मिलकर विचारें हम सभी।
हेमन्त शुक्ला
शिवकुटी—प्रयागराज।

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