सावन में भी सूखी पड़ी बसुही नदी, बारिश की कमी से धान की रोपाई प्रभावित

मछलीशहर (जौनपुर)। जहाँ एक ओर देश के कई हिस्सों से मूसलधार बारिश की खबरें आ रही हैं, वहीं जौनपुर जनपद के मछलीशहर तहसील क्षेत्र के किसान इस समय सूखे और सिंचाई की समस्या से जूझ रहे हैं। क्षेत्र की जीवनरेखा मानी जाने वाली बसुही नदी इस बार सावन के महीने में भी सूखी पड़ी है, जिससे धान की रोपाई का कार्य बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है।

बामी और भटेवरा के बीच नदी के तट पर पसरा सूना सन्नाटा

विकास खंड मछलीशहर के अंतर्गत बामी और भटेवरा गांव के बीच बहने वाली बसुही नदी में आमतौर पर सावन के दौरान जल का भराव रहता है, जिससे आस-पास के खेतों की सिंचाई संभव होती थी। लेकिन इस बार स्थिति पूरी तरह उलट है— नदी की तलहटी में कहीं-कहीं गड्ढों में मात्र नाममात्र का पानी शेष बचा है। इससे ऊंचडीह, देवकीपुर, अमोध जैसे पश्चिमी गांवों के किसान भी बुरी तरह प्रभावित हैं।

पम्पिंग सेट बना सहारा, बिजली बनी बाधा

बारिश की कमी के बीच किसानों ने पम्पिंग सेट के सहारे खेतों में पानी भरने की कोशिश की, लेकिन लगातार बिजली की कटौती और लो वोल्टेज के कारण सिंचाई बाधित हो रही है। जिन किसानों के पास डीजल पम्प हैं, वे भी डीजल की बढ़ी कीमतों के कारण असहाय महसूस कर रहे हैं। इस स्थिति में छोटे और सीमांत किसान, जिनकी आमदनी सीमित है, के लिए रोपाई करना आर्थिक रूप से बेहद कठिन हो गया है।

बिहार से आए मजदूर भी निराश

इन गांवों में हर साल धान की रोपाई के मौसम में बिहार से मजदूरों का एक जत्था आता है। उनका मानना होता है कि यहां कम से कम एक महीने तक रोज़गार मिल जाएगा। लेकिन इस बार कम बारिश और रुकी हुई रोपाई ने उन्हें भी निराश किया है। कई मजदूर वापस लौटने की सोच रहे हैं क्योंकि खेतों में काम ही नहीं है।

कृषि विभाग और प्रशासन से मदद की दरकार

किसानों की मांग है कि शासन-प्रशासन और कृषि विभाग इस समस्या का तत्काल संज्ञान लें। किसानों को डीजल पर सब्सिडी, सोलर पम्प की उपलब्धता, और बिजली आपूर्ति में सुधार जैसे कदमों की सख्त जरूरत है, जिससे खेती-बाड़ी बच सके और आने वाले समय में खाद्यान्न संकट न पैदा हो।

 ग्रामीणों की आवाज़

रामनरेश यादव (किसान, बामी गांव):
"हर साल बसुही नदी हमारे खेतों की जान थी, लेकिन इस बार न नदी में पानी है, न आसमान से बरसात... मजबूरी में पम्प चला रहे हैं, लेकिन बिजली कब आएगी, पता नहीं।"

शम्भूनाथ (मजदूर, बिहार):
"हम सोच के आए थे कि काम मिलेगा, अब तो धान की रोपाई ही नहीं हो रही, तो मालिक क्या काम देंगे?"


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