तेरह साल बाद साधु के वेश में मिला बेटा, मां की ममता ने पहचान लिया चेहरा, भावुक मिलन देख हर आंख हुई नम
चंदवक, जौनपुर। कभी-कभी जिंदगी ऐसे मोड़ पर ले आती है, जो चमत्कार से कम नहीं होते। कुछ ऐसा ही दिल छू लेने वाला दृश्य बुधवार को बलरामपुर गांव में देखने को मिला, जब तेरह साल पहले लापता हुआ एक बेटा अचानक साधु के वेश में अपनी मां के दरवाजे पर भीख मांगने पहुंचा। मां की ममता ने चेहरा पहचानने में एक पल की भी देरी नहीं की और भीड़ में भी मां ने अपने बेटे को पुकार लिया — “राकेश!”
गांव के लोग इस दृश्य को देखकर हैरान रह गए। लोग समझ ही नहीं पा रहे थे कि ये किसी फिल्म का दृश्य है या हकीकत।
2012 में लापता हो गया था राकेश
बलरामपुर गांव निवासी मुखई राम की मृत्यु 18 जनवरी 2012 को हो गई थी। पत्नी ने बड़ी मुश्किल से अपने तीन बेटों के साथ जीवन यापन शुरू किया। तभी उनके सबसे बड़े बेटे राकेश, जो उस समय करीब 19 वर्ष का था, अचानक लापता हो गया। तमाम खोजबीन और थानों के चक्कर के बावजूद उसका कोई सुराग नहीं मिल पाया।
समय बीतता गया, परिवार ने उम्मीद छोड़ दी। छोटा बेटा मंजेश रोज़गार के लिए पुणे चला गया और बृजेश गांव में रहकर मां का सहारा बना रहा।
साधु बनकर आया बेटा
सोमवार, 14 जुलाई को एक साधु बाल-बाल बढ़ी हुई दाढ़ी, गेरुआ वस्त्र और हाथ में भिक्षा पात्र लेकर गांव में भिक्षा मांगता हुआ आया। जब वह मुखई राम की पत्नी के दरवाजे पर पहुंचा, मां की नजर उसकी आंखों पर पड़ी — दिल ने कहा "यह मेरा राकेश है!"
मां कुछ बोलती, इससे पहले ही साधु आगे बढ़ गया। पड़ोसियों को भी शक हुआ और उन्होंने खोजबीन शुरू की। पता चला कि वही साधु पास के गाजीपुर जिले के अमेना गांव (ननिहाल) में भी देखा गया था।
दुर्गा मंदिर के पास पहचान हुआ सच
बुधवार को खबर मिली कि एक साधु चंदवक बाजार के दुर्गा मंदिर और रामलीला मंच के पास दिखाई दे रहा है। जब परिवार वहां पहुंचा तो जैसे ही मां ने उसकी आंखों में देखा, रोती हुई चिल्ला उठी — "राकेश...!"
साधु पहले इंकार करता रहा, लेकिन मां और भाइयों के आंसुओं, पुकार और यादों के सामने वह टूट गया। तेरह साल से गुम हुआ राकेश फूट-फूट कर रो पड़ा।
गांव में उमड़ा जनसैलाब
इस चमत्कारी और भावुक मिलन को देखने के लिए गांव में भारी भीड़ जुट गई। हर कोई हैरान था कि एक बेटा जो पूरी तरह लापता था, वह अचानक साधु के वेश में वापस लौट आया।
मां-बेटे का यह आलिंगन ऐसा दृश्य था, जिसे देख हर आंख नम हो गई। कई लोगों ने इसे "ईश्वर की लीला" और मां की ममता का चमत्कार कहा।
क्या हुआ इतने सालों में, अब तक रहस्य
अब तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि राकेश इन तेरह वर्षों में कहां था, कैसे जीवन गुजारा और साधु बनने की वजह क्या थी। फिलहाल परिवार की कोशिश है कि राकेश दोबारा सामान्य जीवन में लौट आए और खोए हुए वर्षों की भरपाई हो सके।
यह घटना न केवल मां-बेटे के रिश्ते की अमरता को दर्शाती है, बल्कि यह भी बताती है कि ममता की आंखें समय और वेशभूषा की परवाह किए बिना अपने लाल को पहचान ही लेती हैं।