सजगता, समय पर इलाज और प्रशिक्षण से संभव है बीमारी पर काबू: डॉ.वसंत खलटकर

 इंसेफेलाइटिस की चुनौती और रोकथाम का नया रास्ता

भारत में एइएस: बदलते रझान और चुनौतियों पर चिकित्सक ने की चर्चा

जौनपुर। उत्तर प्रदेश के पूर्वी ज़िलों सहित देश के कई हिस्सों में बच्चों के लिए तीव्र मस्तिष्क ज्वर (एइएस) आज भी गंभीर संकट बना हुआ है।इस बीमारी से हर साल सैकड़ों बच्चों की जान जाती है। इसे लेकर भारतीय बाल रोग अकादमी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और डॉ.बीसी रॉय राष्ट्रीय सम्मान से अलंकृत बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. वसंत खलटकर ने फैज हॉस्पिटल में आयोजित पत्रकार वार्ता में गहरी चिंता जताई।


उन्होंने कहा कि "अब यह बीमारी सिर्फ जापानी मस्तिष्क ज्वर से नहीं, बल्कि कई जीवाणुओं और विषाणुओं से जुड़ी चुनौती बन गई है। ऐसे में सिर्फ इलाज नहीं, बल्कि सामूहिक रोकथाम, स्वच्छता और समय पर पहचान पर ज़ोर देना होगा।"डॉक्टर खलटकर ने बताया कि भारत में सन् 1955 में तमिलनाडु में इस बीमारी का पहला मामला दर्ज हुआ था। तब इसे केवल एक विषाणुजन्य बीमारी माना गया, पर अब इसके कारणों में विविधता देखी जा रही है। उन्होंने कहा कि अब इस बीमारी के लिए सिर्फ जापानी विषाणु नहीं, बल्कि निपाह विषाणु, चांदीपुरा विषाणु, स्क्रब टाइफस, टॉक्सोप्लाज्मा, हरपीज़ विषाणु, और आंत की जीवाणु प्रजातियाँ भी जिम्मेदार हैं।डॉक्टर खलटकर ने बताया कि अब मस्तिष्क का स्कैन, मस्तिष्क तरल जांच, मस्तिष्क तरंग अध्ययन, और कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित विश्लेषण की मदद से यह तय किया जा सकता है कि बीमारी का कारण विषाणु है, जीवाणु है या शरीर की खुद की रोग-प्रतिकारक प्रणाली है।उन्होंने कहा कि कई मामलों में स्व-प्रतिरक्षित मस्तिष्क ज्वर (जिसमें शरीर खुद अपने मस्तिष्क पर हमला करता है) की भी पहचान हो रही है, जिसे विशेष उपचार विधियों से ठीक किया जा सकता है।बाल रोग अकादमी ने ‘ईएएसई मॉड्यूल’ नामक कार्यक्रम की शुरुआत की है, जिसमें चार आधार स्तंभ हैं- सजगता, मूल्यांकन, सतत निगरानी और प्रशिक्षण। इसके अंतर्गत चिकित्सकों और स्वास्थ्य कर्मियों को आधुनिक जानकारी और व्यवहारिक कौशल दिया जा रहा है।डॉक्टर खलटकर ने बताया कि टीकाकरण, स्वच्छता, समय पर पहचान, और प्राथमिक इलाज को प्राथमिकता देने से इस बीमारी को रोका जा सकता है।उन्होंने यह भी कहा कि जब रोगी की चेतना का स्तर कोमा पैमाने पर आठ से नीचे चला जाता है, या उसे कृत्रिम सांस प्रणाली की ज़रूरत होती है, तो इलाज कठिन हो जाता है और मृत्यु की आशंका बढ़ जाती है। ऐसे मामलों में समय पर पहचान और विशेषज्ञ की देखरेख ही जीवन रक्षक हो सकती है।यह संगोष्ठी फैज़ अस्पताल, जौनपुर में आयोजित की गई, जिसमें जिले के प्रमुख चिकित्सकों ने भाग लिया। इस कार्यक्रम में डॉ.विनोद कुमार सिंह,डॉ. सरोज यादव, डॉ.फैज ,डॉ. विपुल सिंह, डॉ. मुकेश शुक्ल आदि प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।

स्वास्थ्य संस्थानों की साझी जिम्मेदारी

विश्व स्वास्थ्य संगठन,भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद,राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र,राष्ट्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संस्थान,भारतीय बाल रोग अकादमी।इन संस्थाओं की मदद से देशभर में इस बीमारी की रोकथाम, इलाज और शोध की दिशा में संयुक्त प्रयास किए जा रहे हैं।

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