पन्द्रह अगस्त तब और अब एक संस्मरण, हमजोलियों को समर्पित
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15 अगस्त आने वाला है ,मुझे अच्छी तरह याद है कक्षा 3 में मेरे द्वारा दिया गया वो ऐतिहासिक भाषण ,जो मैने पूरे स्कूल और मुख्य अतिथि के सामने दिया था ।पिता जी भी बहुत उत्साहित थे मेरे इस परफॉर्मेंस को लेकर सो उन्होंने मेरे लिए बिल्कुल नई ड्रेस सिलवाई।तब तो ड्रेस भी सरकार नहीं देती थी ऊपर से एक रुपए पच्चीस पैसे हर महीने फीस भी लगती थी।जैसा कि आप अवगत होगे हर मध्यम वर्गीय परिवार की यह नियति होती थी कपड़े इतने ढीले और बड़े सिलवाए कि बंदा तीन साल तक आराम से चला ले ।मेरा नाम बुलाते ही एक हाथ से अपना हाफ पैंट संभालते मैं मंचारूढ हुआ ।देशभक्ति से ओतप्रोत भाषण था मेरा ।एक मौका ऐसा आया जब मैने दोनों हाथ उठा कर जैसे ही लोगों में जोश भरने की कोशिश की मेरा हाफ पैंट बगावत कर मेरे कमर का साथ छोड़ धरती मां को चूम उठा ,लोगों के जोशीले चेहरे पर अचानक हास्य का पुट आ गया ,मेरा भाषण संयोग से सबसे मनोरंजक सिद्ध हुआ।गुरु जी ने मेरी पीठ थपथपाई और मैं इस प्रकार एक ऐतिहासिक वक्ता के रूप में उस स्कूल में प्रसिद्ध हो गया।वैसे भी मुझे टीचर बहुत पसंद करते थे और मैं टीचर की बहुत इज्जत करता था।तब के पन्द्रह अगस्त के लिए कपड़ों के इतने तिरंगे नहीं थे कागज पर तिरंगा छाप कर कापी की दफ्ती पर चिपका कर बांस की कइनी में बांध दिया जाता था। बड़ी मुश्किल से केवल एक तिरंगा कपड़े का आगे-आगे प्रभात फेरी में मानीटर लेकर चलते थे और पूरी फौज पीछे- पीछे अपने हाथ से कागज पर रंगा तिरंगा लेकर चलती थी।अब तो पन्द्रह अगस्त का पूरा बाजार है। मछलीशहर तहसील क्षेत्र की बाजारें तिरंगे झंडे के अलावा तमाम साजो-सामान की बिक्री के लिए सज गई हैं लेकिन तब के पन्द्रह अगस्त में तिरंगा हाथों से छापा जाता था और अब छपा छपाया आता है।अब सबका तिरंगा एक जैसा दिखता है।तब पन्द्रह अगस्त की सुबह आंखें पूरे स्कूल परिसर में यह देखती फिरती थी किसका तिरंगा सबसे सुंदर छपा है। एक बार भी मास्टर साहब अगर जिस बच्चे के तिरंगे को देखकर मुस्कुरा दिये समझिये उसकी तीन चार दिन की मेनहत सफल हो गई।पूरे दिन वह फूला नहीं समाता था।