यातायात जागरूकता माह: ग्यारह सदस्यों वाले इस परिवार में हैं कुल बारह हेलमेट और बच्चों के लिए हार्नेस बेल्ट भी

 

जौनपुर। पूरे नवम्बर महीने में यातायात जागरूकता के लिए प्रशासन की ओर से कई कदम उठाए गए हैं।एक ओर इसे लेकर जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है तो दूसरी ओर जनपद में यातायात नियमों को तोड़ने पर रिकॉर्ड स्तर पर चालान काटे जा रहे हैं। 

आज हम जनपद के एक ऐसे परिवार की चर्चा करके समाज को एक सकारात्मक संदेश देना चाह रहा है जहां पूरे परिवार के लिए चाहे वे छोटे बच्चे हों या महिलायें हों या पुरुष सभी के लिए अलग-अलग साइज के हाफ -फुल दर्जन भर हेलमेट मात्र इस मकसद से रखें गये हैं कि परिवार का कोई सदस्य बाइक और स्कूटर से सड़क पर जाये तो मौसम के अनुसार उसे हेलमेट जरुर उपलब्ध रहे इसका सकारात्मक परिणाम यह हुआ है कि सड़क पर हेलमेट पहनकर चलना इस परिवार के बड़ों को छोड़िए बच्चों के लिए शौक से कम नहीं है।

इस परिवार के पांचों बच्चे शगुन, धैर्य,श्रीशा,साहस, श्रेष्ठ सभी आपको हेलमेट और हार्नेस बेल्ट लगाकर सड़क पर चलते दिख जायेंगे।नये मोटर वाहन अधिनियम के अनुसार चार वर्ष से अधिक उम्र के बच्चों के लिए हेलमेट अनिवार्य है और हार्नेस बेल्ट लगाना जरूरी है लेकिन नियम की बात अपनी जगह हेलमेट लगाना इस परिवार का हर सदस्य खुशी- खुशी अपनी जिम्मेदारी समझता है। चर्चा विकास खंड मछलीशहर के बामी गांव के जितेंद्र बहादुर सिंह के परिवार की जा रही है।

इस परिवार में सदस्य तो ग्यारह हैं और हेलमेट बारह हैं। इसके पीछे का कारण बताते हुए जितेन्द्र बहादुर सिंह कहते हैं कि हेलमेट न पहनने के कारणों का अगर हम विश्लेषण करें तो इस निष्कर्ष पर पहुंचते कि जैसे हम लोग कपड़े, जूते, चप्पल अलग-अलग मौसम के अनुसार अलग-अलग पहनना उचित समझते हैं वैसे ही मौसम और उम्र के अनुसार अगर अलग-अलग साइज के और बनावट के अनुसार अलग-अलग प्रकार के हेलमेट रखें हों तो हर कोई इन्हें पहना पसंद करेगा, आखिर हम लोग कपड़ों,गहनों, जूतों पर इतना भारी भरकम पैसा लगाते हैं उनकी तुलना में दर्जन भर हेलमेट खदीने और स्टैंड पर पन्द्रह से बीस हजार के बीच खर्च आयेगा जो बहुत ज्यादा नहीं है बस हमारी सोच कपड़ों, गहनों और जूतों चप्पल तक ही खर्च करने तक सीमित रही है।

यह बोझ भी नहीं है यू के जी में पढ़ने वाला मेरे नाती साहस को हेलमेट और हार्नेस बेल्ट लगाकर चलने में  ऐसी ही खुशी मिलती है जैसे खिलौनों से खेलने में मिलती है।यह पूछे जाने पर कि लीक से हटकर ऐसा काम करने का उनके मन में विचार कहा से आया तो इसके बारे में वह बताते हुए कहते हैं कि उन्होंने गडकरी जी का सदन में जबाब देते एक वीडियो देखा जिसमें वह कह रहे थे कि कई देशों ने एक्सीडेंट और उससे होने वाली मृत्यु को शून्य कर लिया है लेकिन इस मामले में उनके देश का रिकार्ड सबसे गंदा है जब वह वर्ल्ड लेवल की किसी कान्फ्रेंस में जाते हैं तो उन्हें मुंह छुपाना पड़ता है, उन्होंने कहा कि वर्ष 2024 तक दुर्घटनाएं और उनसे होने वाली मृत्यु को आधा करने का लक्ष्य था जो कम तो हुये नहीं बल्कि और बढ़ गये।

 उन्होंने कहा कि जब तक ह्यूमन बिहेवियर चेंज नहीं होगा और कानून के प्रति सम्मान नहीं पैदा होगा तब लक्ष्य को पाना मुश्किल रहेगा। जितेन्द्र बहादुर सिंह आगे कहते हैं कि हेलमेट भले ही कभी कभार  एक्सीडेंट होने पर हमारी जान बचायें लेकिन धूल धुआं से तो हर रोज हमें बचाते हैं। आखिर जब सड़कें यूरोपियन और अमरीकन मानक की तैयार हो रहीं हैं तो हमें सड़क सुरक्षा के प्रति अधिक सजग बनने की जरूरत है ।परवाह करेंगे तो सुरक्षित रहेंगे।

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