प्रत्येक मनुष्यों में पूतना रूपी अविद्या का वास रहता है: डा. रजनीकान्त

जौनपुर। प्रत्येक मनुष्यों में पूतना रूपी अविद्या का वास रहता है, क्योंकि अविद्या 14 स्थानों पर निवास करती है- 5 कर्मेन्द्रियां, 5 ज्ञानेंद्रियां, मन, बुद्धि, चित और अहंकार और परमात्मा रूपी कृष्ण स्पर्श होता है तभी उसका नाश होता है। उक्त विचार डॉ. रजनीकान्त महाराज ने वरिष्ठ अधिवक्ता एवं पत्रकार यादवेन्द्र चतुर्वेदी के आवास पर आयोजित श्रीमद् भागवत कथा में पूतना के प्रसंग पर सुनाई। उन्होंने प्रभु के नाम करण संस्कार पर चर्चा करते हुए यह भी बताया कि जिसे जीवन में परमात्मा रूपी रत्न की प्राप्ति हो जाती है, उसे हीरे-जवाहरात की कोई आवश्यकता नहीं होती जिसे राम-कृष्ण रूपी रत्न मिल जाता है, उसे संसारी वस्तुए अप्रिय लगने लगती हैं।

इसके पहले मुख्य यजमान जितेंद्र चतुर्वेदी, मिलन चतुर्वेदी, मधुकर चतुर्वेदी, मनोज चतुर्वेदी आदि ने श्रीमद्भागवत जी तथा कथा व्यास डॉ. रजनीकान्त महाराज का पूजन किया। कथा में वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. वी.एस. उपाध्याय, डॉ. एन.के. सिन्हा, गोमती ग्रामीण बैंक के वरिष्ठ प्रबंधक राजेश सिंह, बी.डी. इण्टर कॉलेज के प्रधानाचार्य डॉ अजय सिंह, पूर्व प्रबंधक अनिल उपाध्याय, एसआई गोपाल तिवारी, संजय श्रीवास्तव,गोपी चंद्र, हेमा श्रीवास्तव, मधु चतुर्वेदी, अरुण त्रिपाठी सहित तमाम लोगों की उपस्थिति रही। कथा की व्यवस्था में राधाकृष्ण, धीरेंद्र, अतुल, कुंदन, नकुल तथा कपिल चतुर्वेदी प्रमुख रूप से लगे रहे।

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