गाजीपुर जनपद की ही अनुपम विभूति थे भगवान परशुराम


  शिवेन्द्र पाठक
    पौराणिक मान्यता तथा श्रुति परम्परा के अनुसार सर्वविदित है कि भगवान परशुराम महर्षि जमदग्नी के पुत्र थे। एक स्थापित हिन्दू कथानक के अनुसार पूर्वी उत्तर प्रदेश अन्तर्गत जनपद गाजीपुर के तहसील जमानियां के क्षेत्र को पूर्व में महर्षि जमदग्नी के तपः स्थली होने का गौरव प्राप्त है। यहाँ गंगा नदी के किनारे महर्षि का आश्रम था। महर्षि जमदग्नी के तपोभूमि होने के कारण पूर्व में जमदग्नियां एवं कालान्तर से जामानियां हो गया। भगवान परशुराम के बाबत अधिकाधिक जानकारी के लिए श्री सूर्यदेव शर्मा, तत्कालीन मंत्री श्री पिताम्बर पीठ दतिया (मध्य प्रदेश) जो इस जनपद के एक आयोजन में बतौर मुख्य अतिथि पधारे थे उनसे चर्चा की। शर्मा जी द्वारा जो बताया गया उसे अक्षरशः लेखनीबद्ध किया जो इस प्रकार है-
विद्यार्थी जीवन से ही यह संस्कार बना हुआ था कि राजा गांधि उनके पुत्र स्वनाम धन्य महर्षि विश्वामित्र, महर्षि जमदग्नि तथा उनके यशस्वी पुत्र भगवान परशुराम, गाजीपुर जनपद की ही विभूतियां थी। जब मध्य प्रदेश की विधान सभा का सदस्य हुआ, तो कालीदास महोत्सव परिषद का भी सदस्य मनोनीत किया गया। इस परिषद के सदस्य, चोटी के विद्वान हुआ करते है। उज्जैनी निवासी ंप0 सूर्य नारायण व्यास जो देश के माने-जाने विद्वान और ज्योतिष शास्त्र के मर्मज्ञ थे, परिषद के उन सदस्यों में थे, जिनसे विभिन्न विषयों पर प्रायः विचार विमर्श हुआ करता था। व्यास जी का एक लेख प्रदेश की शासकीय पत्रिका ‘‘मध्य प्रदेश सन्देश’’ में प्रकाशित हुआ, जिसमें उन्होंने लिखा था कि भगवान परशुराम इन्दौर के पास उस तीर्थस्थान में अवतरित हुए थे, जो चम्बल आदि कई नदियों का उद्गम है। तर्क देते हुए उन्होंने लिखा था कि उस क्षेत्र में भार्गव ब्राहृमणों का बाहुल्य है। परशुराम जी स्वयं भृगुवंशी थे।


    इस लेख को पढ़कर यह जिज्ञासा प्रबल हुई कि भगवान परशुराम किस माटी के विभूति थे, इसकी सही जानकारी करूं। यह स्वाभाविक है कि हर व्यक्ति अपने को किसी न किसी महान व्यक्ति से जोड़ना चाहता है चाहे वह तब का हो या अब का। श्री कन्हैया लाल मणिक लाल मुंशी ने भी अपनी पुस्तक में परशुराम जी को गुजरात की भूमि में अवतरित होने की बात कही है। इन्होंने भी प्रमाण में उस क्षेत्र में भृगुवंशी ब्राहृमणों के बाहुल्य की दलील दी है।
    इस प्रसंग में मैंने व्यास जी से चर्चा की। उनसे अपना मत व्यक्त करते हुए कहा कि भगवान परशुराम गंगा जी के पावन तट पर गाजीपुर जनपद के यमदग्नियां (जमांनिया) नामक स्थान पर पैदा हुए थे। ऐतिहासिक चिन्ह आज भी वहां साक्षी के रूप में है। वहां से लगभग 90 किमी0 की दूरी पर सहस्राव (सासाराम), जो बिहार का एक प्रमुख स्थान है, सहस्रार्जुन की छावनी के साक्षी के रूप  में आज भी अस्तित्व युक्त है। जमांनिया से लगभग 60 किमी0 दूरी महर्षि विश्वामित्र की तपःस्थली बक्सर है, जो कभी गाधिपुरम जनपद की सीमा में ही था, किन्तु अब बिहार में है। इसी क्षेत्र में महर्षि गौतम का आश्रम था। यह तथ्य अहिल्या और भगवान राम के प्रसंग से पुष्ट होता है। इस विषय पर व्यास जी के और मेरे बीच खासी चर्चा रही। उन्होने यह तो नहीं स्वीकारा कि परशुराम जी गाधिपुरम जनपद के थे, किन्तु यह जरूर कहा कि पाणिनी के एक सूत्र से प्रमाणित होता है कि वे गंगा तट के निवासी थे।
    समयानुसार मैंने दतिया के पीताम्बर पीठाधीश्वर पूज्यपाद स्वामी जी के सन्मुख एतद् सम्बन्धी अपनी जिज्ञासा प्रस्तुत की और अभिमत को जानना चाहा। मुझे अपार हर्ष हुआ जब स्वामी जी ने बल देकर कहा- ‘‘यह निर्विवाद है कि भगवान परशुराम यमदग्नियां क्षेत्र में अवतरित हुए थे। वैसे वे देश के दिव्य पुरूष थे। समूचे भारत के भूगोल को उन्होने देखा-परखा था। अनेक स्थलों पर उन्होने साधना और तपस्या की थी। ऐसे स्थानों पर चर्या-चिन्ह शेष रहने के कारण वहां के स्थानीय विद्वान उनका वहां का होने का दावा कर लिया करते है।’’
    श्रद्धेय स्वामी जी के कथन से मेरी आस्था को पूरा बल मिला। एक अन्य विशिष्ट विद्वान ने अपनी वाणी द्वारा इसको और स्पष्ट कर दिया। सन् 1978 ई0 की बात है जगतगुरू शंकराचार्य स्वामी सत्यमित्रानन्द गिरजा भगवान परशुराम जयन्ती के अवसर पर पिताम्बरा पीठ पधारे थे। भगवान परशुराम के सम्बन्ध में बोलते हुए उन्होने कहां कि निश्चित रूप से यह विभूति पूर्वी उत्तर प्रदेश या बिहार की रही होगी। अन्यथा भगवान शंकर के धनुष टूटने पर ध्वनि को सुनना और आनन फानन में वहां पहुंच जाना दूरस्थ व्यक्ति के लिए कैसे सम्भव हो सकता था। इसी क्रम में उन्होने कहा-विश्व के विद्वान कुछ भी कहें मुझे पूर्ण विश्वास है कि भगवान परशुराम गाधिपुरम जनपद में ही अवतरित हुए थे। वे वहां की माटी में लोटे, वहीं बालक्रीड़ाये की और उसे पवित्र होने का गौरव प्रदान किया। गाजीपुर जनपद के लोग गर्व कर सकते है कि पृथ्वी का सबसे तेजस्वी पुरूष उनके जनपद में पैदा हुआ था।
    भगवान परशुराम के गौरव के सम्बन्ध में एक और प्रसंग याद आ रहा है। उसका उल्लेख औचित्य की परिधि में ही समझा जाना चाहिए। मध्य प्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमन्त्री पं0 द्वारिका प्रसाद मिश्र ने ‘‘ मानस के राम और सीता’’ नाम से एक पुस्तक लिखी। उसकी एक प्रति उन्होने मुझे सस्नेह भेट की और साथ ही यह कहा कि उसमें कोई त्रुटि जान पड़े तो मैं उनको इंगित करू। इस पुस्तक में विद्वान लेखक ने लिखा है- ‘‘राम की कीर्ति दिग् दिगन्त में व्याप्त हो गई। वे भारत के सर्वश्रेष्ठ वीर हो गये। ‘‘रामबाण’’ अमोघत्व का पर्यायवाची हो गया। उनके समान दूसरा शस्त्रधारी फिर नहीं हुआ। भगवान कृष्ण ने गीता में अपनी विभूतियों का वर्णन करते हुए रामः शस्त्र-भृतामपम्।‘‘ कहकर शस्त्र विद्या के इतिहास में राम की अद्वितीयता स्वीकार कर ली।’’
पवनः पवतातस्मि रामः शस्त्र भृतामहम्। झाषाणां मकरश्चमि स्रोतासातस्मि जान्हवी।।10।।
    मैंने आदरणीय मिश्र जी के इस कथन पर विनम्र प्रश्न चिन्ह लगाया। अपनी आपत्ति से उन्हे अवगत कराया। उन्हें लिखा-राम धनुर्धारी थे। धनुष अस्त्र कोटि में आता है, जिसका प्रयोग फेंककर किया जाता है। शस्त्र उसे कहते है, जिसका प्रयोग हाथ में पकड़कर किया जाता है। जैसे-फरसा, कुल्हाड़ा, तलवार आदि। अतः राम शस्त्र भृतामहम् का संकेत परशुधारी राम से है न की धनुर्धारी राम से। भेट होने पर मिश्र जी ने मेरे तर्क को मान्यता प्रदान की और पुस्तक में सुधार कर लेने की बात कही।
    यह प्रसंग हमें इस तथ्य के लिए गौरवान्वित करता है कि गाजीपुर की इस पावन धरती है अवतरित होने वाला यह महातेजस्वी पुरूष विश्व का सर्वश्रेष्ठ शस्त्रधारी हुआ है।  श्री पीताम्बरा पीठ की संस्कृत परिषद से प्रकाशित ‘‘परशुराम तन्त्र’’ के एक श्लोक का उद्धरण यहां प्रासंगिक होगा।
फिरंगा यवनाश्चीनाः खुरासानाश्य म्लेच्छजाः। राम भक्तं प्रद्रष्टैव त्रस्यन्ति प्रणमन्ति च।।
    भगवान परशुराम ने भारतवर्ष की सीमा से बाहर निकलकर यूरोप, चीन, खुरासान आदि अनेक देश के शासकों को परास्त किया था। वहां के निवासियों पर उनका इतना व्यापक प्रभाव था कि वे लोग भगवान परशुराम के अनुयायी है इसकी जानकारी होते है त्रस्त होकर इनके भक्तों को प्रणाम करने लगते थे। अपनी भूमि पर जीवनावधि में इनको जनता ने जितना सम्मान दिया उतना आदर किसी भी महापुरूष को अब तक सुलभ नहीं हुआ।  भगवान शंकर के धनुर्भंग के घोर रव को सुनकर वह जनके के यज्ञ स्थल पर पहुचे तो वहां एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं था, जिसने अपने स्थान पर खड़े होकर इनको आदर न दिया हो। आम आदमी की बात छोडि़ये बड़े-बड़े बाहुबली राजा लोग ‘‘पितु समेत कहि कहि निज नामा, लगे करन सब दण्ड प्रणामा’’ से यह तथ्य स्पष्ट है।
    गाजीपुर जनपद इस विषय में भाग्यशाली है कि इसके अंक में अनेक वैदिक ऋषि अवतरित हुए है और अपने अखण्ड तप से यहा की माटी को पवित्र बना चुके है। इस जपनद का वह दिव्य युग था। मैं गाजीपुर की माटी और महावीर्यवान भगवान परशुराम को सश्रद्धः नमन करता हूँ।

                                 
                             

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