गंगा दशहरा पर बंदर-लंगूरों ने उठाया भोज का मजा

मिर्जापुर. रविवार को गंगा दशहरा पर विंध्याचल धाम त्रिकोण पथ पर स्थित कालीखोह में एक अनूठे भोज का आयोजन किया गया। इसमें जंगल और पहाड़ों से चलकर आने वाले बंदर और लंगूरों को भक्तों ने लड्डू, मीठी पूड़ी और फल खिलाए। हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार गंगा दशहरा के दिन कपि (बंदर) को भोज कराने से पुण्य प्राप्त होता है। साथ ही इसका मकसद लुप्त होते जंगली बंदरों-लंगूरों को बचाना और पर्यटन को बढ़ावा देना भी है। विंध्य क्षेत्र आदिकाल से ही भारत के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। यहां मां विंध्यवासिनी, मां काली और मां अष्टभुजा का विशेष त्रिकोण स्थित है। कालीखोह स्थित मां काली मंदिर के बरामदे में गंगा दशहरा के अवसर पर सालों से चल रही परंपरा के मुताबिक बंदर और लंगूरों को लजीज पकवान खिलाया जाता है। आसपास के पहाड़ों-जंगलों से निकलकर बंदरों और लंगूरों भी जमकर स्वादिष्ट खाना खाते हैं। इस भोज के जरिए हनुमान भक्त कई सालों से बंदरों और लंगूरों की सेवा करते चले आ रहे हैं। पुराणों के अनुसार गंगा दशहरा के दिन मां गंगा स्वर्गलोक से पृथ्वी पर अवतरित हुई थी। गंगा दशहरा के दिन स्वर्ग लोक का दरवाजा भी खुला रहता है। ऐसे में दान-पुण्य का बड़ा महत्व है। आयोजक हनुमान दास का मानना है कि बंदरों और लंगूरों को भोज कराने से न केवल पुण्य मिलता है बल्कि इनकी खत्म होती संख्या को बचाने का प्रयास भी है।

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