भगवान पड़े बीमार, पिलाया गया काढ़ा

वाराणसी. बाबा विश्वनाथ की नगरी में भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ बीमार पड़ गए हैं। जी हां, भगवान जगन्नाथ को ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन सुबह से श्रद्धालुओं के जलाभिषेक करने की परंपरा है। इससे भगवान भी बीमार पड़ जाते हैं। भक्त और भगवान के रिश्ते भी अबूझ पहेली से कम नहीं। भक्त जब चाहें तब तीनों लोकों के पालनहार को गोपियों के रूप में छछिया भर छाछ पर तिगनी का नाच नचा दे और जब मन में आए, तो शबरी की तरह जूठे बेर का भोग लगा दे। रही भगवान के ‘रिएक्शन’ की बात, तो वे तो उसी में खुश होते हैं जिसमें उनके भक्त मगन हों। भगवान और भक्त के भावपूर्ण रिश्ते का कुछ ऐसा ही दृश्य ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन शुक्रवार को लोक उत्सव रथयात्रा के आगाज पर देखने को मिला। इस दिन भक्तों ने अपने भगवान को सुबह से शाम तक इतना स्नान कराया कि वे बीमार पड़ गए और मंदिर के अंदर विश्राम गृह में चले गए हैं। मंदिर के कपाट बंद कर दिए गए हैं। 15 दिनों तक रोज शाम उन्हें जल्द स्वस्थ होने के मकसद से काढ़े का भोग लगाया जाएगा। जगन्नाथ मंदिर के प्रधान पुजारी आचार्य श्रीराम शर्मा के मुताबिक, काशी के अस्‍सी क्षेत्र में प्राचीन जगन्नाथ मंदिर का कपाट बंद कर दिया गया है। उड़ीसा के जगन्‍नाथ पुरी की तर्ज पर काशी में भी सैकड़ों वर्षों से परंपरा चली आ रही है। ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन भगवान के प्रेम में भक्तों ने उन्हें सुबह से शाम तक इतना स्नान कराया कि वे अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ बीमार पड़ गए और मंदिर के अंदर विश्राम गृह में चले गए। उन्‍होंने बताया कि मंदिर के कपाट बंद कर दिए गए हैं और सुबह बिना घंटा घड़ियाल के बंद कपाट के अंदर पुजारी भगवान की आरती करते हैं। वहीं शाम को उन्हें गंगाजल में बनी काली मिर्च, लौंग, छोटी-बड़ी इलायची, जायफल, तुलसी, गुलाब जल और शक्कर से तैयार काढ़े का भोग लगाया जाता है। इससे भगवान शीघ्र स्वस्थ होकर भक्तों को दर्शन दे सकेंगे।

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