खून से सीचे जा रहे है जौनपुर के खेत ! न्याय अन्याय की लड़ाई में अबला बनी विरांग्ना

 फाइल फोटो  अपने पिता को मुखाग्नि देती उषा मौर्या
 जौनपुर।  कमजोर प्रशासन और कानून की कमजोर कड़ी का सहारा लेकर सफेद पोश भू माफिया धनबल बाहुबल और शासन सत्ता का रौब दिखाकर गरीबों की कीमती जमीनों पर कब्जा कर ले रहे। जिसके कारण सोना चांदी उगलने वाली तमाम जमीनें खून से सीच दी गई है। गरीब मजलूम और असहाय पीडि़त अपनी जमीन वापस लेने के लिए अधिकारियों से लेकर न्यायालयों तक का चक्कार काट रहे है। न्यायलय ने सैकड़ों फैसले पीडि़तों के पक्ष में करते हुए उनका हक दिलानें का हुक्म जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन दिया लेकिन सामनें वाला शासन सत्ता का नुमाईन्दा हैं या किसी अधिकारी का रिश्तेदार है या किसी बड़े नेता का पोछिला होने के कारण अधिकारी कर्मचारी पीडि़त की जमीन वापस दिलानें की हिम्मत नही जुटा पा रहा है। यह स्टोरी कोई मनगढ़न्त नही बल्कि मेरे पास एक दर्ज से अधिक ऐसे मामलें का मेरे पुख्ता सबूत है।
इसी सबूतों में एक मामला हैं लाईनबाजार थाना क्षेत्र के पचहटिया गांव का। इस गांव के निवासी खदेरन मौर्या की 12 जून 2001 की रात में चाकू भोककर निर्मम हत्या कर दी गयी। पुलिस नें इस मामलें में मृतक के बहू निर्छला और पौत्र पंकज मौर्या को आरोपी बनाते हुए चलाना भेजा दिया। मृतक की बेटी उषा मौर्या ने अपने पिता को मुखाग्नि देकर क्रिया कर्म किया। जौनपुर में किसी महिला द्वारा शमशान घाट पर जाकर मुखाग्नि देने का पहला मामला सामनें आनें पर इसकी चर्चा जिले भर में हुई थी। पिता के हत्यारो को सजा दिलानें की चिंगारी ने उषा मौर्या को अबला नारी से विराग्ना बना दिया। अकेली महिला मुकदमें की पैरवी इतनी मुस्तैदी से किया कि घटना के मात्र एक साल बाद नौ जुलाई 2002 को जौनपुर न्यायलय नें मां बेटें की दोषि करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई। आरोपी मां बेटे नें उच्च न्यायलय इलाहाबाद में अपील किया । हाईकोर्ट नें राहत देते हुए चार सितम्बर 2002 को जमानत दे दिया है लेकिन वाद चल रहा है। इसी बीच हत्या आरोपी बहु और पौत्र नें सारे तथ्य छिपाते हुए फर्जी तरीके सें 30 नवम्बर 2009 को खतौनी में दर्ज दोनों बेटियों का नाम कटवाकर अपना नाम दर्ज करा लिया। जब इसकी भनक उर्षा मौर्या को लगी तो उन्होनें तत्कालीन डीएम अपर्णा यू से शिकायत किया। डीएम ने जांच कराई जिसमें दोषि मिलने पर लेखपाल को निलंबित कर दिया। उसके बाद मां बेटा जमीन का वारिस होनें का न्यायलय में दावा ठोक दिया। लेकिन उनके इस दावे को कोर्ट ने 12 नवम्बर 2009 कों खारिज करते हुए आदेश दिया कि जो व्यक्ति या महिला जमीन के खातिर अपनें सगें मां बाप की हत्या करता है उसे वारिशाना हक किसी हालत में नही दिया जाता। उसके बाद मां बेटा इस आदेश के विरूध माननीय हाईकोर्ट में अपील किया तों हाईकोर्ट ने 9 दिसम्बर 2012 को निचली अदालत का फैसला बहाल रखते हुए निर्छला और पंकज की अर्जी खारिज कर दिया।
अभी यह परिवारिक विवाद चल ही रहा था इसी बीच इस स्टोरी में कैबिनेट मंत्री पारसनाथ यादव का नाम भी सुर्खियों में आ गया। उषा मौर्या नें सीधें आरोप लगाते हुए कहा कि पारसनाथ नें अपने ओहदे का नाजायज फायदा उठाते हुए मां बेटे द्वारा 30 नवम्बर 2009 को बनवाई गयी फर्जी खतौनी लगाकर अपने साथ रहनें वाले दिलीप कुमार प्रजापति के नाम चालिस लाख रूपये में मेरी कीमती जमीन की रजिस्ट्री करा लिया है। अब उस जमीन पर अपरोक्ष रूप से कैबिनेट मंत्री पारसनाथ यादव ने कब्जा कर लिया है। उषा ने इसकी लिखित शिकायत डीएम से लेकर सीएम तक किया लेकिन आज तक शासन सत्ता के दबाव में कोई कार्यवाही नही हुआ। सबसे हैरत की बात यह देखनें को मिल रही है इतनी दुष्वारियां झेलने के बाद भी उषा अपने इरादे पर फौलाद की तरह अटल और अडिग दिखाई पड़ रही है। उन्होने कहा कि मैं सच्चाई की लड़ाई लड़ रही हूं इस लड़ाई मेरे सामने चाहे जितना भी बड़ा प्रभावशाली व्यक्ति मेरे सामने आयेगा मै उससे हार मानने वाली नही हुं। हलांकि बीच बीच में अपने पिता के निमर्म हत्या की कहानियां बताते उनके आंखों से आशू जरूर निकल पड़ते है।

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