सरायखाजा का ऐतिहासिक मेला शुरू , चर्म रोगियों और श्रद्धालुओं ने कुण्ड में लगायी डुबकी
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जौनपुर में ऐतिहासिक भादव छठ मेंला शुरू हो गया है। पांच दिनों तक चलने
वाले इस मेले में घर गृहस्थी और कृषि यन्त्रों की भव्य दुकाने लगायी गयी
हैं। इस बहुउद्देशीय मेले भारी भीड़ उमड़ पड़ी है । सैकड़ो वर्षो लगने वाले इस मेले का मुख्य उद्देश्य है कि यह मौजूद कुण्ड में चर्म रोगी स्नान कर ले तो उसका रोग अपने आप ठीक हो जाता है ।
जौनपुर मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूरी पर सरायखाजा गांव में लगा यह भादव छठ का मेला जौनपुर का पूरा इतिहास समेटे हुए हैं। बड़े बुजुर्ग बताते है कि वैदिककाल में किसी ऋषि का आश्रम था एक दिन अयोध्या का रहने वाला चर्म रोग का एक व्यापारी बाबा के शरण में आया और उनसे इस रोग से छुटकारे दिलाने की गुहार लगायी। बाबा ने इसी तालाब स्नान करने की सलाह दिया। बाबा के आदेश पर महिला कुण्ड में डूबकी लगायी। जिससे उसे तुरन्त राहत मिल गया तभी से चर्मरोगी इस कुण्ड में स्नान कर रोगो से छुटकारा पाने लगे। धीरे धीरे यहा भारी जमघट होने लगा स्थानीय लोगों की आस्था को देखते हुए बाबा ने यहां पर भादव छठ का मेले का आयोजन करने लगें। चूंकि उस समय कृषि और घरेलु सामानों की लोगो को आवश्यकता हुआ करती थी इस लिए लोगो की आवश्कता की दुकाने लगती थी। पुरानी परम्परा के आनुसार आज भी कृषि यंत्र और गृहस्थी के सामानों की दुकाने लगती हैं। हलाकि आधुनिकता की मार से यह भी अछूता नही रह गया हैं मेले बच्चो को लुभाने के लिए आधुनिक झूले, खिलौने मनोरंजन के लिए आरकेस्ट्रा सहित कई संसाधन मौजूद हैं।
जौनपुर मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूरी पर सरायखाजा गांव में लगा यह भादव छठ का मेला जौनपुर का पूरा इतिहास समेटे हुए हैं। बड़े बुजुर्ग बताते है कि वैदिककाल में किसी ऋषि का आश्रम था एक दिन अयोध्या का रहने वाला चर्म रोग का एक व्यापारी बाबा के शरण में आया और उनसे इस रोग से छुटकारे दिलाने की गुहार लगायी। बाबा ने इसी तालाब स्नान करने की सलाह दिया। बाबा के आदेश पर महिला कुण्ड में डूबकी लगायी। जिससे उसे तुरन्त राहत मिल गया तभी से चर्मरोगी इस कुण्ड में स्नान कर रोगो से छुटकारा पाने लगे। धीरे धीरे यहा भारी जमघट होने लगा स्थानीय लोगों की आस्था को देखते हुए बाबा ने यहां पर भादव छठ का मेले का आयोजन करने लगें। चूंकि उस समय कृषि और घरेलु सामानों की लोगो को आवश्यकता हुआ करती थी इस लिए लोगो की आवश्कता की दुकाने लगती थी। पुरानी परम्परा के आनुसार आज भी कृषि यंत्र और गृहस्थी के सामानों की दुकाने लगती हैं। हलाकि आधुनिकता की मार से यह भी अछूता नही रह गया हैं मेले बच्चो को लुभाने के लिए आधुनिक झूले, खिलौने मनोरंजन के लिए आरकेस्ट्रा सहित कई संसाधन मौजूद हैं।


