आओ सब मिल करें ‘हिंदी विलाप‘

 प्रभुनाथ शुक्ल
दोस्तों जो हम आपस में संवाद बोलने के लिए जिस भाषा का प्रयोग करते हैं, वह अपनी भाषा होती है। भारत  आधे से अधिक भू-भाग पर हिंदी बोली और समझी जाती है। ंिहंदी का जन्म 5,000 ईसा पूर्व का बताया जाता है। दुनिया में ऐसी कोई भाषा नहीं है जिसका एक कोई खास दिन होता है। लेकिन हमारे देश में 14 सितम्बर को ‘हिंदी दिवस‘ के तौर पर मनाया जाता है। देश में बढ़ते अंग्रेजी के प्रयोग को रोकने के लिए ऐसा किया गया। आज हम अंग्रेजी बोलना और पढ़ना गर्व समझते हैं। जिससे हमारी हिंदी उपेक्षित हो रही है। हिंदी ने मुझे सूरदास, तुलसी, मीर, कबीर, रहीम, रसखान, जायसी, जयशंकर प्रसाद, मुंशी प्रेमचंद जैसे साहित्यकार दिए। आज इनकी पहचान पूरी दुनिया में है। दुनिया के दूसरे मुल्कों के लोग भारत में हिंदी और संस्कृत सीखने के लिए यहां आते हंैं। विदेशों में भी हिंदी सीखाने के लिए संस्थान स्थापित किए गए हैं। आपको मालूम होगा कि मारीशस, सूरीनाम, टिनीटाड और टोबैगो में हिंदी खूब बोली और पढ़ी जाती है। मारीशस में भारत के हमारे पूर्वज ही राज करते हैं। वहां के राजनेत अनुरुद्ध जगन्नाथ और राम गुलाब भारत आ चुके हैं। हिंदुस्तान में सबसे अधिक लोग हिंदी बोलते और समझते हैं ,लेकिन दुख इस बात है कि हिंदी को ‘राष्टीय भाषा‘ का दर्जा नहीं मिल सका। इससे बड़ी शर्म की बात और क्या हो सकती है कि अपने ही देश में अपनी हिंदी दीदी बेचारी है। देश में सरकारी कामकाज में हिंदी को बढ़ावा देने के लिए 1949 में एक्ट बनाया गया। लेकिन आज भी इसका खयाल किए बिना अंगे्रजी का प्रयोग खुले आम हो रहा है। एक अनुमान के अनुसार दुनिया में 500 मिलियन से अधिक लोग हिंदी भाषा को जानते हैं। देश की आधी से अधिक आबादी हिंदी बोलती और समझती है। लेकिन इसे ‘राज भाषा‘ से अधिक कुछ नहीं हासिल हो सका। हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए 1975 में सबसे पहले नागपुर में ‘विश्व हिंदी सम्मेलन‘ आयोजित किया गया। 1976 में मारीशस और 1983 में भारत में तीसरा विश्व हिंदी सम्मेलन आयोजित हुआ। 2003 में विदेशी धरती सूरीनाम में इसका आयोजन हुआ। इसके अलावा तीसरी दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका में भी 2007 में वैश्विक स्तर पर हिंदी को बढ़ावा देने के लिए विश्व हिंदी सम्मेलन आयोजित हुआ। साथियों आपको मालूम नहीं होगा हिंदी भाषा का इतिहास सबसे पहले फ्रांसिसी लेखक ग्रासिन तैसी ने लिखा। ग्रियर्सन ने भी हिंदी पर बहुत कुछ लिखा। जितनी उन्नति और विकास हम अपनी भाषा के जरिए करेंगे उतनी किसी विदेशी भाषा से संभव नहीं है। साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चंद ने लिखा है ‘निज भाषा उन्नति अहै सब भाषा को मूल‘। पूरे देश में हिंदी बोली का खड़ा रुप अपनाया जाता है। रुस के राजनेता गोर्वाचव जब भारत आए थे तो उन्होंने अपना संबोधन रुसी भाषा में किया था। लेकिन हम विदेशी मंचों पर जाकर खुद अंग्रेजी का हार पहनते है। यहां तक की हिंदी दिवस पर भी अंग्रेजी में भाषण दिए जाते है। हमारे पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान, बंगलादेश, श्रीलंका और नेपाल में हिंदी खूब बोली जाती है। नेपाल में तो नेपाली हिंदी का जलवा है। देश के उत्तर और पूर्व में मैथली, भोजपुरी, अवधी, बिहारी हिंदी का जलवा है। इनके ग्रामीण इलाकों में हिंदी का अलग तरीके से बोली और प्रयोग की जाती है। देश में हिंदी और भोजपुरी फिल्में करोड़ों का कारोबार करती है। सबसे अधिक अखबार औनर न्यूज चैनल हिंदी में है। वालीबुड़ की फिल्मों में देशी गीतों व बोली का तड़का लगा करोड़ांे का कारोबार किया जाता है। लेकिन अपनी हिंदी को राष्टीय भाषा नहीं घोषित की जा रही। यह हमारे और हिंदी के साथ अन्याय है। गावों में एक कहावत है कि ‘कोस-कोस पर पानी बदले, चार कोस पर वानी‘। हिंदी हमारी पहचान है। आज हम ’हिंदी दिवस’ के माध्यम से अधिक से अधिक हिंदी बोलने और पढ़ने का संकल्प लेंगे। हिंदी हमारे भारत के माथे कि बिंदी और हमारे गौरव की पहचान है। जय हिंदी, जय हिंद, जय हिंदोस्तान।

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