श्रीराम ने धनुष भंग कर सीता का किया वरण
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भदोही। मिथिला के राजा महाराज जनक को लगा कि उन्होंने कठिन प्रतिज्ञा कर डाली है। अब भगवान शंकर के धनुष का भंजन कोई नहीं कर पाएगा। जिससे सीता को कुंवारी ही रहना पड़ेगा। लेकिन मुनि विश्वासमित्र के साथ मखरखवारी को गए श्रीराम ने धनुष को भंग कर वैदेही से विवाह किया। धनुष टूटते ही पूरा पंडाल जय श्रीराम के जयघोष से गूंज उठा। सुरियावां के हरीपुर अभिया में आदर्श रामलीला के तत्वावधान में चल रही सात दिवसीय रामलीला के दूसरे दिन धनुष भंग सीता विवाह का प्रसंग मंचित किया गया।
रामलीला का प्रारंभ भगवान श्रीराम और जानकी के मिलन से होता है। मंच पर फुलवारी का दृश्य दिखाया जाता है। जिसमें श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण के साथ गुरुपूजा के लिए महाराज जनक की फुलवारी में फूल लेने गए थे। वहां वैदेही और उनकी सखियों को देख श्रीराम विचलित हो जाते हैं। अनुज लक्ष्मण से बोल उठते हैं। हे लक्ष्मण बड़ा अचंभा है सारा उपवन झंकार उठा। छा गयी सरसकता कमलों में भ्रमरों का दल गुंजार उठा। बाद में स्यंवर का आयोजन होता है। लेकिन वहां बड़े-बडे़ राजा पराजित हो जाते हैं। धनुष तोड़ने की बात तो दूर कोई उसे तिल भर उठा भी नहीं सका। बाद में रावण और बाणासुर जैसे लोग भी वहां से लौट जाते हैं। फिर श्रीराम धनुष को तोड़ मां सीता से विवाह करते हैं। लेकिन जनक की सभा में जब मुनि परशुराम पहुंचते हैं तो अपने गुरु भगवान शिव की धनुष टूटी और विखरी हुई देख उबल पड़ते हैं। बोल पड़ते हैं हे मूर्ख जनक बतला जल्दी किसने शिव धनुवा तोड़ा है। इस भरे स्वयंवर में किसने सीता से नाता जोड़ा है। बाद में जब उन्हें पता चलता है कि रामावतार हो गया है तो वे अपनी गल्ती प्रभुराम के सामने स्वीकारते हैं। मंचन में रावण वाराणसुर के साथ पेट्टू राजा और लखटकिया का अभिनय खूब सराहा गया। इस दौरान भारी संख्या में लोग दर्शक दीर्घा में मौजूद थे। रामलीला केमेटी अध्यक्ष शंभूनाथ शुक्ल, दीनानाथ शुक्ल, राजेंद्र प्रसाद दूबे, नेमधर दूबे, प्रभुनाथ शुक्ल, दिनेशनाथ शुक्ल, रिंकू मिश्रा, पंकज दूबे, अनिल शुक्ल, बैकुंठ नाथ, डाक्टर दूबे, सुनील सिंह, राजेश मौर्य, देवी प्रसाद मौर्य मौजूद थे।
रामलीला का प्रारंभ भगवान श्रीराम और जानकी के मिलन से होता है। मंच पर फुलवारी का दृश्य दिखाया जाता है। जिसमें श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण के साथ गुरुपूजा के लिए महाराज जनक की फुलवारी में फूल लेने गए थे। वहां वैदेही और उनकी सखियों को देख श्रीराम विचलित हो जाते हैं। अनुज लक्ष्मण से बोल उठते हैं। हे लक्ष्मण बड़ा अचंभा है सारा उपवन झंकार उठा। छा गयी सरसकता कमलों में भ्रमरों का दल गुंजार उठा। बाद में स्यंवर का आयोजन होता है। लेकिन वहां बड़े-बडे़ राजा पराजित हो जाते हैं। धनुष तोड़ने की बात तो दूर कोई उसे तिल भर उठा भी नहीं सका। बाद में रावण और बाणासुर जैसे लोग भी वहां से लौट जाते हैं। फिर श्रीराम धनुष को तोड़ मां सीता से विवाह करते हैं। लेकिन जनक की सभा में जब मुनि परशुराम पहुंचते हैं तो अपने गुरु भगवान शिव की धनुष टूटी और विखरी हुई देख उबल पड़ते हैं। बोल पड़ते हैं हे मूर्ख जनक बतला जल्दी किसने शिव धनुवा तोड़ा है। इस भरे स्वयंवर में किसने सीता से नाता जोड़ा है। बाद में जब उन्हें पता चलता है कि रामावतार हो गया है तो वे अपनी गल्ती प्रभुराम के सामने स्वीकारते हैं। मंचन में रावण वाराणसुर के साथ पेट्टू राजा और लखटकिया का अभिनय खूब सराहा गया। इस दौरान भारी संख्या में लोग दर्शक दीर्घा में मौजूद थे। रामलीला केमेटी अध्यक्ष शंभूनाथ शुक्ल, दीनानाथ शुक्ल, राजेंद्र प्रसाद दूबे, नेमधर दूबे, प्रभुनाथ शुक्ल, दिनेशनाथ शुक्ल, रिंकू मिश्रा, पंकज दूबे, अनिल शुक्ल, बैकुंठ नाथ, डाक्टर दूबे, सुनील सिंह, राजेश मौर्य, देवी प्रसाद मौर्य मौजूद थे।