दीपावली पर चहु ओर जगमगाहट , पटाखो की गूंज
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जौनपुर। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में प्रकाश पर्व दीपावली के आगमन पर गुरूवार क¨ जिला मुख्यालय से लेकर ग्रामीणांचल तक चतुर्दिक वातावरण उल्लासित हो उठा है। पंचदिवसीय प्रकाश पर्व के मुख्य पर्व अमावस पर लक्ष्मी गणेश पूजनोत्सव, तथा दीपक व जलाने की ह¨ड़ लगी रही। पर्व मनाने के लिए महंगाई के बावजूद लोगो ने अपने सामथ्र्यानुसार सारी तैयारी पूरी कर जमकर खरीददारी की। जिला मुख्यालय पर दुकानदारो ने पर्वोपयोगी सामग्रियां को दुकान के काफी आगे तक लगा रखा था।
मकान और दुकान विद्युत के रंगीन झालरो तथा प्लास्टिक के रंग बिरंगे फूलो सजाया गया था। दीपावली के पवित्र पर्व पर जुआ का खेल कर बर्बाद कर है। यह पर्व पूरी तरह से खरीददारी का पर्व होकर रह गया है जिसका स्पष्ट प्रमाण किसी नई नवेली दुल्हन की तरह विभिन्न सामानो से सजी धजी क्षेत्रो की दुकानें हैं जिनपर मिठाईयां, खिलौने, बर्तनें, आभूषण, वó, पटाखे अस्थायी रूप से इतराती हुई बल खा रही है। अधिकांशतः सामानो की स्थिति यह है कि वह अपने ऊपर शुद्धता में अशुद्धता का आकर्षित लबादा ओढ़े हुए है। जिन पर उपहार, ईनाम व छूट की परत चढ़ी हुई है। लोग अपनी-अपनी पसन्द की वस्तुओ पर धड़ल्ले से जेब खाली कर रहे हैं। इसके बावजूद यह राग भी अलाप रहे हैं कि बड़ी महंगाई है। जबकि धड़ल्ले से खरीद रहे हैं। अगर सामानो के दामो क¨ देखा जाय तो महंगाई बढ़ी नहीं बल्कि कम हुई है। जो टीवी 10 वर्ष पूर्व 12 हजार रूपये की थी वह वर्तमान समय में अनेक खूबियो के साथ सात-आठ हजार में मिल रही है। इतना ही नहीं फ्रीज, म¨टर साइकिल के मूल्य भी पूर्व की अपेक्षा काफी कम हुए हैं लेकिन दीपावली से सम्बन्धित वस्तुएं जैसे मिट्टी का दीपक, सरसो का तेल, पटाखा, सजावटी म¨मबत्ती आदि सामान अवश्य महंगे हुए हैं। लोग अनावश्यक वस्तुओ जिनके बगैर भी काम चल सकता है मगर पडोसियो की देखा-देखी वे अपना पैसा फिजूखर्ची मंे गंवा रहे हैं। फिर भी आवश्यकतायें पूरी नहीं हो पा रही हैं।
मकान और दुकान विद्युत के रंगीन झालरो तथा प्लास्टिक के रंग बिरंगे फूलो सजाया गया था। दीपावली के पवित्र पर्व पर जुआ का खेल कर बर्बाद कर है। यह पर्व पूरी तरह से खरीददारी का पर्व होकर रह गया है जिसका स्पष्ट प्रमाण किसी नई नवेली दुल्हन की तरह विभिन्न सामानो से सजी धजी क्षेत्रो की दुकानें हैं जिनपर मिठाईयां, खिलौने, बर्तनें, आभूषण, वó, पटाखे अस्थायी रूप से इतराती हुई बल खा रही है। अधिकांशतः सामानो की स्थिति यह है कि वह अपने ऊपर शुद्धता में अशुद्धता का आकर्षित लबादा ओढ़े हुए है। जिन पर उपहार, ईनाम व छूट की परत चढ़ी हुई है। लोग अपनी-अपनी पसन्द की वस्तुओ पर धड़ल्ले से जेब खाली कर रहे हैं। इसके बावजूद यह राग भी अलाप रहे हैं कि बड़ी महंगाई है। जबकि धड़ल्ले से खरीद रहे हैं। अगर सामानो के दामो क¨ देखा जाय तो महंगाई बढ़ी नहीं बल्कि कम हुई है। जो टीवी 10 वर्ष पूर्व 12 हजार रूपये की थी वह वर्तमान समय में अनेक खूबियो के साथ सात-आठ हजार में मिल रही है। इतना ही नहीं फ्रीज, म¨टर साइकिल के मूल्य भी पूर्व की अपेक्षा काफी कम हुए हैं लेकिन दीपावली से सम्बन्धित वस्तुएं जैसे मिट्टी का दीपक, सरसो का तेल, पटाखा, सजावटी म¨मबत्ती आदि सामान अवश्य महंगे हुए हैं। लोग अनावश्यक वस्तुओ जिनके बगैर भी काम चल सकता है मगर पडोसियो की देखा-देखी वे अपना पैसा फिजूखर्ची मंे गंवा रहे हैं। फिर भी आवश्यकतायें पूरी नहीं हो पा रही हैं।