हकीम बाक़र साहब मरहूम का क़दीमी जुलुस ऐ अजा रात १२ बजे निकला |


हकीम बाक़र साहब मरहूम का क़दीमी जुलुस ऐ अजा रात १२ बजे इमाम बड़ा मीर घर पान दरीबा ,बाज़ार भुआ से निकला जिसे ख़िताब जनाब एस एम् मासूम ने ने फ़रमाया और हजरत अब्बास अलमदार की जीवनी और उनकी वफादारी ,बहादुरी और उनकी कुर्बानियों पे प्रकाश डाला|

ये जुलुस जौनपुर का सब से लम्बी दूरी तय  करने वाला जुलुस है जो पहले बाज़ार भुआ से निकल के हमाम दरवाज़ा , चित्रसारी से होता हुआ लाल दर्वाज़ की सिपाह गाह स्थित चौक पे जाता था लेकिन अब ये हमाम दरवाज़ा , दल्लान ,पुराणी बाज़ार होता हुआ इमाम बड़ा मीर घर में ख़त्म हो जाता है |

जनाब एस एम् मासूम साहब ने मजलिस पढ़ते हुए कहा "हजरत अब्बास अलमदार जिन्हें कर्बला के लिए माँगा था कर्बला में उन्हें जंग की इजाज़त नहीं दी गयी जबकि लश्कर ऐ यजीद शब् ऐ आशूर इसी परेशानी में रहा की अब्बास के रहते ये जंग फतह करना मुमकिन नहीं |

हजरत अब्बास को इजाज़त ना दे के इमाम हुसैन (अ.स) ने ये पैग़ाम दिया की उनका मकसद न तो क़त्ल ऐ आम था और ना ही जंग को फतह करना था बल्कि शहादत दे के बातिल और ज़ालिम यजीद को बेनकाब करना था जिस से इंसानियत का पैग़ाम देने वाला इस्लाम बदनाम होने से बच जाए और मुसलमान गुमराही से बच जाए |

ये दिन मौला अब्बास के नाम रहा करता है जो वफ़ा की पहचान था | लश्कर इ हुसैन की ताक़त था जिसे जंग में जाने की इजाज़त ना मिली और मिली तो नहर इ फुरात से पानी लाने की इजाज़त मिली.| मैं ये मसायब ज़रूर पढता हूँ | जौनपुर के इमामबाडा मीर घर में आज एक क़दीमी जुलुस रात १२ बजे निकला जिसे मैंने खिताब किया| फिर भी लगता है मौला अब्बास की वफ़ा और उनकी शहादत का हक अदा नहीं कर सका |

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