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कूड़े के फेके गए भोजन से अपनी भूख मिटाता युवक और मवेश : फोटो विनोद विश्वकर्मा |
जौनपुर। आजादी के 67 सालों के बाद भारत के पास दुनियां की दूसरी सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था का दावा है. मगर, यह भी सच है कि अमेरिका की कुल आबादी से कहीं अधिक भूख और कुपोषण से घिरे पीड़ितों का आकड़ा भी यहीं पर है. सरकार, योजना आयोग, वित्त आयोग सब हर तरफ इस एक चीज को छुपाने में लगे हैं कि भारत में गरीब और भयावह गरीबी है ही नहीं लेकिन वास्तविकता कभी छुपती है भला। शनिवार को जौनपुर कलेक्ट्रेट परिसर से सटा सरकारी कालोनी में जो तस्वीर दिखाई पड़ी उसको देखने के बाद रौगटे खड़े हो गये। यहां पर किसी परिवार द्वारा कुड़े में फेके गये बासी भोजन को एक युवक और एक आवारा पशु एक साथ खाते देखे गये। कुड़े के ढ़ेर भोजन करने वाला युवक नया कम्बल ओड़ रखा था उससे अंदाजा लगाया जा रहा था कि तहसील में बांटे जा रहे कम्बल तो उसे मिल गया लेकिन पेट भरने के लिए भोजन नही मिला।
ऐसा नहीं है कि सरकार में दूरदर्शिता की कमी है या सरकार के पास उपाय नहीं है. सरकार ने मनरेगा और शिक्षा के कानून को लागू कर साफ कर दिया कि उसके पास हर मर्ज की दवा है लेकिन जब उस दवा के वितरण की बात आई तो सरकारी महकमे में ही धांधली दिखी. बात करते हैं कुछ विशेष कार्यक्रमों और उनकी विफलता की जिससे साफ हो जाएगा की खोट सरकारी नीतियों में नहीं बल्कि उनको लागू करने में है।