कश्मीर में खडा नीति और नैतिकता का सवाल

प्रभुनाथ शुक्ल
देश के दो राज्यों  झारखंड और काश्मीुर में हुए आम चुनाव में राजनीतिक दलों को जनादेश का परिणाम मिल गया है। लेकिन खंडित जनादेश ने राजनैतिक दलों की मुशीबत बढा दी है। सरकार बनाने को लेकर जोडतोड जारी है। सभी दलों की नीति और नैतिकता भी पेंचीदे जनादेश से उलझ गया है। काश्मीथर में भाजपा को भारी उपलब्धि मिलने के बाद भी उसके मिशन को विराम लगा है।  झ्झारखंड में तो भारतीय जनता पार्टी को साफ सुथरा बहुमत मिल गया। लेकिन जम्मूि.काश्मीनर में पेंच उलझ्‍ गयी है। भाजपा के भारत विजय अभियान पर वहां के जनादेश ने विराम लगा दिया है। सबसे बडी पार्टी पीडीपी उभरी है। लेकिन अब सरकार बनाने को लेकर मामला उलझ गया है। लेकिन उलझे जनादेश पर राजनीतिक दलों के बीच शहमात का खेल जारी है। अलग. अलग विचारधाराओं से ताल्लुउक रखने से सरकार बनाने पर दलों में सहमति नहीं बन पा रही है। पीडीपी सबसे बडे दल के रुप में आयी है। जबकि भाजपा दूसरे पोजीशन पर है। उलझे जनादेश ने भाजपाए पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंश के लिए मुशीबत पैदा कर दी है। जबकि‍ वहां तीनों अलग.अलग विचारधारा वाले दल हैं। लेकिन सत्ताक के चलते अपने.अपने वैचारिकताओं और वसूलों को बलि देनी पडेगी। राज्यू में सबसे बडे दल के तौर पर उभरी पीडीपी और भाजपा बगैर एक दूसरे और तीसरे दल नेशनल कांफ्रेंश के सरकार नहीं बना सकती हैं। सभी को अपनी राजनीतिक नीतियों से समझौता करना पडेगा। राज्य  में सत्ता  की बागडोर संभालने के लिए एक दूसरे को उसकी शर्तें माननी होंगी। यह सभी दलों की राजनैतिक मजबूरी बनती दिखती है। भाजपा इस मौके को गवांना नहीं चाहती है। वह राज्यं में किसी भी शर्त पर नेकां और पीडीपी दोनों में से एक से गलबहियां कर सरकार बनाना चाहती हैं लेकिन उसके सामने शर्तों की मोटी पोथी होगी। जिस अमल करना आसान नहीं होगा। पीडीपी ने धारा.370 और अप्सा  हटाने की बात रखी है। लेकिन राष्टीगय सुरक्षा को देखते हुए यह संभव नहीं है। अभी तस्वीरर साफ नहीं दिखती है। हलांकि राज्यपपाल ने भाजपा और पीडीपी को बुलाया था। चुनावों के दौरान उमर अब्दुयल्लाह को बाप.बेटे की सरकार के जुमले से कोंसने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी परिणाम के बाद अब किसके साथ होंगे यह कहना मुश्किल है। बाप.बेटे के साथ होंगे या बाप.बेटी के साथ यह वक्तं बताएगा। लेकिन भाजपा ने यह साफ कर दिया है कि उसकी ओर से सरकार बनाने के लिए विकल्पर खुले हैं। अगर नेकां के सहयोग से वह सरकार बनती है तो जाहिर सी बात है कि सबसे बडे दल के रुप में मुख्यओमंत्री भाजपा का होगा। नेकां को उपमुख्य मंत्री पद देने की बात भी आई है। लेकिन अगर पीडीपी से तोलमेल हुआ तो सीएम किस दल का होगा। यह सबसे बडा सवाल होगा। लेकिन भाजपा की अभी प्राथमिक वरीयता है कि सबसे पहले जम्मूेदृकाश्मीसर में किसी तरह सरकार बनायी जाए बाकि के मसलों पर बाद में निपटा जाएगा। भाजपा अगर गठजोड से सरकार बनाती है तो उसके लिए धारा.370 का समला गौण हो जाएगा। कश्मीपरी पंडितों के सवाल पर भी वह कुछ अधिक नहीं कर सकती है। क्यों्कि घाटी में उसे बडी सफलता नहीं मिली है। मुस्लिम मतों में वह सेंधमारी नहीं कर सकी है। जम्मू  संभाग में उसे बेहतर बढत मिली है। पार्टी लाइन से हट कर धारा.370 का समर्थन करने वाली हिना भटट भी चुनाव नहीं जीत पायीं। उन्हेंर पराजय का सामना करना पडा। जबकि भाजपा की वह चचर्चित चेहरा थी। सीएम पद की वह उम्मी दवार हो सकती थी। कयास लगाए जा रहे हैं कि पीएमओ में मंत्री जीतेंद्र सिंह को मुख्य मंत्री बनाया जा सकता हैं अगर नेकां या पीडीपी से कोई बात बनती है। वैसे वहां सरकार बनाने के लिए सभी दलों के पास विकल्प  हैं। लेकिन सबसे बडा दल होने के नाते राज्यपपाल को पीडीपी को ही बुलाना पडेगा। भाजपा से तालमेल करने पर  पीडीपी को कितना फायदा और नुकसान होगा  यह समय बताएगा। क्योंरकि घाटी की जनता ने भाजपा की नीतियों को किनारे लगा दिया है। भाजपा चुनावों के चलते धारा.370 और दूसरे मसलों पर भले मौन रही हो लेकिन पार्टी की वैचारिकता में हिंदुत्वाए काश्मी री पंडितों का पुर्नवास और धारा.370 अहम मसला है। पार्टी के पक्ष में जनादेश न मिलने पर उसे मजबूरी में सरकार बनाने के सभी विकल्पड खुले हैं जैसी शब्दा3वली का प्रयोग करना पड रहा हैं। जबकि नेकां भी चाहती है कि अगर भाजपा से उसका तालमेल बन जाता है तो राज्यु में पीडीपी को सत्ताा में आने से रोकना उसके राजनीति भविष्यच के लिए बेहतर होगा। वरना अधिक दिन तक सत्ता  से बेदखली उसके लिए मुशीबत बनेगी। वह राज्‍य के कुछ हालातों से समझौता कर केंद्रीय सरकार में शामिल हो कर वहां की नाराज जनता के करीब दोबारा पहुंच सकती है। लेकिन वहां भाजपा.पीडीपीए भाजपा.नेकांए पीडीपी.कांग्रेस व अन्य  के अलावा पीडीपी.नेकां व अन्य  के साथ मिल कर  सत्ताड के संग्राम पर विराम लगाया जा सकता है। अभी तक किसी भी दलों के बीच बात नहीं बन पा रही है। सभी दलों की तरफ से शर्तों का पुलिंदा रखा जा रहा है। हलांकि पीडीपी भाजपा के साथ रह चुकी है। नेकां भी राजग की केंद्रीय सरकार में शामिल थी। उधर कांग्रेस ने भी दोनों दलों को समर्थन दिया था। कांग्रेस के समर्थन से ही नेशनल कांफ्रेंश की वहां उमर अब्दु ल्लान की लीडरशिप में सरकार चल रही थी। इस लिहाज से किभी दल के लिए कोई दूरियां नहीं हैं। लेकिन राज्यफ की कमान किसके हाथ होगी यह सबसे बडा सवाल है। कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दल यह कभी नहीं चाहेंगे की वहां भाजपा किसी दल के साथ अपनी सरकार बनाए। उनकी पूरी कोशिश यही होगी कि भारतीय जनता पार्टी को सत्ताे से किसी भी कीमत पर दूर रखा जाय। वरना वह अपनी नीतियों से घाटी में वहां की जनता में अपनी पकड बना सकती है जिसके लिए बीजेपी अभी तक अछूत है। इसलिए उसके सामने भारी भरकम शर्तनामा पीडीपी और नेकां की तरफ से रखा जाएगा। राज्यए में बहुत के लिए 44 सीटों की जरुरत है। इस स्थिति में वहां बगैर पीडीपी और भाजपा का साथ लिए किसी दल की सरकार नहीं बन सकती हैं। भाजपा को सत्ताि से बेदखल करने के लिए धर्म निरपेक्षता का राग कांग्रेस और दूसरे दल अलाप रहे है। शरद यादव ने पीडीपी और नेकां को कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाने की सलाह दी है। जिसका समर्थन कांग्रेस ने किया है। पीडीपी और नेकां अगर आपसी मतभेद और मनभेद मिटाकर एक मंच पर आते हैं तो वहां कांग्रेस के समर्थन से सरकार बन सकती है। लेकिन पीडीपी को भाजपा का साथ देने में डर लग रहा है। क्यों कि घाटी का उसका मूलजनाधार भाजपा की नीतियों से खिसक सकता है। जिसके चलते पीडीपी निर्णय नहीं ले पा रही है। उधर राज्यह पाल पहली जनवरी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित कर सकते हैं। पीडीपी ने भाजपा के सामने सशस्त्र  सैन्यह कानून हटाने की शर्त रखी है। जबकि राज्यल में अलगाववादी ताकतों को देखते हुए भाजपा को यह  शर्त कभी मान्यन नहीं होगी। क्योंाकि अगर इस तरह होता है तो वहां पाकिस्ताीन की ओर से चलाया जा रहा आतंकवाद और तेजी से अपने पांव पसारेगा जो देश की सामरिक सुरक्षा के लिए सबसे बडा खतरा होगा। राज्यर में राष्टतपति शासन लगाना उचित नहीं होगा। इस स्थिति में सभी दलों को जनादेश का सम्मासन करते हुए वहां स्थिर सरकार बनानी चाहिए। क्योंाकि वहां की जनता ने लोकतंत्र में खुल कर विश्वािस जताया है। काफी संख्यास में पोलिंग बूथ पर पहुंच कर लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया है। इसका हर हाल में सम्मा्न किया जाना चाहिए।
लेखकः स्वतंत्र पत्रकार हैं

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