भदोही के इस प्राथमिक स्कूल के बच्चे रटते है 95 तक का पहाड़ा , संस्कृत ,हिंदी ,अंग्रेजी ,जनरल नॉलेज भी उनके जुबां पर है
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भदोही। सरकारी स्कूलों की शिक्षा में गुणवत्ता को लेकर कोर्ट ने कड़ा
रुख किया है क्योकि इन स्कूलों में शिक्षा के हालात किसी से छिपे नही है।
लेकिन अभी भी कई सरकारी स्कूल ऐसे है जहाँ के बच्चे और शिक्षक मिशाल कायम
कर रहे है। ऐसा ही भदोही का एक सरकारी स्कूल है जहाँ के कक्षा पांच के
बच्चो को 95 तक का पहाड़ा मुंह जुबानी याद है ,बच्चे अंग्रेजी ,सामान्य
ज्ञान ,संस्कृत सहित सभी विषयो में महारथ रखते है। कान्वेंट स्कूलों को टक्कर
देने वाले इन बच्चो को यहाँ कौटिल्य बनाया जा रहा है।
महज पांच साल की उम्र में बुनियादी सामान्य ज्ञान की
समझ और नौ साल की उम्र में जुबान पर एक से 95 तक का पहाड़ा। यही नही हिंदी
,संस्कृत ,अंग्रेजी ,सामान्य ज्ञान की किताब के एक -एक पाठ पर पूरी पकड़। यह
उन हालातो में और चकित करता है जब ये मासूम एक छोटे गांव के परिषदीय
विद्यालय में शिक्षा ले रहे हो। हम बात कर रहे है भदोही जनपद के छोटे से
गांव बनकट के प्राथमिक विद्यालय की यह गांव जरूर अभी विकसित न हुआ हो लेकिन
गांव के स्कूल में गरीबो के यह बच्चे किसी से कम नही है। शायद आपको 95 तक
का पहाड़ा याद न हो लेकिन स्कूल के यह बच्चे पलक झपकते ही 95 तक का पहाड़ा
सुना डालते है।
कहते है 95 तक का पहाड़ा याद करना हंसी खेल नही है
लेकिन अब आप इन बच्चो को देखकर क्या कहेंगे। अविकसित गांव की गलियो और इनके
परिवारो की गरीबी भले ही हो लेकिन इस छोटी सी उम्र में ही इन बच्चो ने
अपनी उडान भरना शुरू कर दिया है इनमे कोई पायलेट बनाना चाहता है तो कोई
आईएएस या आईपीएस। इन बच्चो को पहाड़ा ही नही संस्कृत ,हिंदी ,अंग्रेजी ,जनरल
नॉलेज भी इनको इसी तरह याद है। आप इनसे कुछ भी पूछे पर जबाब देने में उनको
देर नही लगती है। इनके पाठयक्रम की किताब आप कही से खोल ले सब इनको याद
है।
यह तो उन बच्चो की बात हो गयी जो शारीरिक तौर पर ठीक
है लेकिन स्कूल में एक बच्चा हिमांशु नाम का ऐसा भी है जिसंकी आँखों की
रौशनी बहुत कम है वह भी पढ़ने में बहुत तेज है पढ़ने के साथ साथ उसे गाने का
भी शौक है आँखों में कम रौशनी के बाबजूद वह अपनी पढाई और गानो के जरिये
रौशनी फ़ैलाने का प्रयास कर रहा है।
अब आप सोच रहे होगे की एक तो गरीब परिवार ऊपर से एक
छोटे से गांव के यह नौनिहाल कैसे इतने होशियार हो गए। दरसल प्राथमिक स्कूल
बनकट के तीन शिक्षको की बदौलत यह बच्चे आज इस मुकाम पर पहुंचे है। स्कूल के
हेड मास्टर डाक्टर ओम प्रकाश जब इस स्कूल में शिक्षक बनकर आये तो उन्होंने
ठाना की वह इन बच्चो को भी बेहतर शिक्षा दे सकते है उन्होंने साथी शिक्षको
के साथ मिलकर इन बच्चो को पढ़ाना शुरू किया। यहाँ तक की रविवार के दिन भी
बच्चो को पढ़ाया ,शिक्षको ने पहले दो बच्चो को नजीर के तौर पर तैयार किया
फिर बाकी बच्चो को उसी तर्ज पर शिक्षा दी और आज हालात आपके सामने है।
शिक्षको के इस प्रयास की सराहना आज पूरा गांव कर रहा है।
एक छोटे से गांव का यह स्कूल और इसके बच्चे एक नजीर बन
गए है अब जरुरत है की अन्य सरकारी स्कूल के शिक्षक भी ऐसा प्रयास करे। अगर
ऐसा प्रयास हुआ तो वह दिन दूर नही जब गांव के रग्घू और शिवानी भी आईएएस
,आईपीएस बनाकर गांव के साथ देश का नाम रौशन करेंगे।