गरीबो के लिए मसीहा थे डॉ 0 राकेश सिंह

नवनीत मिश्रा
जौनपुर। कादीपुर में करीब दस साल पहले नेत्र शिविर लगा था। चिकित्सकों की ऑपरेशन में लापरवाही से एक दर्जन गरीबों की आँखों की रौशनी ही चली गई। इस नाइंसाफी पर सब खामोश थे। जनता के वे नुमाइंदे भी बेफिक्र थे; जो गरीबों का हमदर्द होने की ढोल पीटते नहीं थकते। आखिर...गरीबों की कहाँ कौन सुनता है। मगर गरीबों के लिए तो खुदा डॉ राकेश जैसे फ़रिश्ते ही भेजता है। इस मामले में डॉ राकेश ने हाई कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की। तब जाकर पीड़ितों को मुआवजे का आदेश हुआ।
 सूबे में कैंसर सहित तमाम गंभीर बीमारियों से ग्रसित गरीबों के इलाज के लिए एक योजना बनी थी। नाम है रोगी आरोग्य निधि। योजना तो लागू हो गई मगर हाकिम भूल गए। आम जन में प्रचार-प्रसार की बात ही छोड़िये; जिलों के सीएमओ तक अनभिज्ञ थे की रोगी आरोग्य निधि किस चिड़िया का नाम हैे। ये डॉ. राकेश सिंह ही थे जो फाइलों में कैद चल रही इस योजना को धरातल पर ले आये। सभी जिलों के सीएमओ से आरटीआई के जरिये पूछा क्या उन्हें रोगी आरोग्य निधि की जानकारी है। सूबे के सारे सीएमओ ने ना में जवाब दिया। डॉ राकेश सिंह की सौ से अधिक आरटीआई अर्जियों पर हुक्मरानों की नींद टूटी। मुख्यमंत्री को विशेष तौर पर रोगी आरोग्य निधि की समीक्षा करनी पड़ी। चौकाने वाली बात रही की किसी भी जिले में एक भी गरीब को इलाज की मदद नहीं मिल सकी थी। क्योंकि न पीड़ितों को योजना की जानकारी थी न जिलों में बैठे अफसरों को। प्रमुख सचिव स्वास्थ्य ने 2013 में योजना की पूरी गाइड लाइन्स पत्र के साथ नत्थी कर सभी जिलों को भेजा। ताकि योजना के प्रचार प्रसार का निर्देश दिया।
 खुटहन में अजीब बीमारी से जूझता वो पूरा कुनबा। एक गरीब बाप के 5 बेटे विकलांग होकर तिल तिल कर मरने को मजबूर थे। इलाके में बड़े बड़े धनपशु टाइप समाजसेवियों ने जब नजरें फेर रखी थी तब आप ही तो आगे आये। रोगी आरोग्य निधि से मेडिकल कॉलेज में मुफ़्त इलाज का फरमान जारी हुआ।
 सरपतहां थाने के बहुचर्चित सवायन कांड को कौन भूल सकता है भला...। जब पूरे गांव के लोगों पर कई थानों की पुलिस ने पूरी रात जुल्मोसितम ढाया था। पुलिस ने दो युवकों की करतूत की सजा पूरे गांव के संभ्रांत लोगों को दी थी। सरेआम बेइज्जती कर पूरे गांव से बदला लिया था। ये आप ही थे जिसकी बदौलत जुल्म के ख़िलाफ गांव वालों की मुखर आवाज नक्कारखाने की तूती नहीं साबित हुई। बल्कि पूरे सूबे में यह मुद्दा बना। आप की आरटीआई अर्जियों ने मानवाधिकार से लेकर तमाम संगठनों का ध्यान खींचा। बाद में मामले की जांच सीबीसीआईडी की जांच हुई। निर्दोष महिलाओं बच्चों पर डंडे बरसाने वाले बर्बर दो दारोगा सहित एक दर्जन पुलिसवाले दोषी साबित हुए और कार्रवाई हुई।
जब केराकत में बिजली तार की चपेट में आकर एक गरीब की मौत हो गई थी तो बूढ़ा दादा दस साल के पोते( मृतक का बेटा) को लेकर चकर घिन्नी बना था। इंसाफ के लिए और मुआवजे के लिए दर दर की ठोकरें खा रहे थे दादा-पोते। एक अख़बार ने इसे प्रमुखता से प्रकाशित  किया था इस न्यूज़ को बहुत तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ताओं ने खबर चाय की चुश्कियों संग पढ़कर उड़ा दी होगी। मगर...ये तो खबरों पर स्वतः संज्ञान लेने की आपकी संवेदनशीलता थी। जो अपनी आरटीआई अर्जियों से पूरे बिजली महकमे को हिला दिया। विद्युत संरंक्षा अधिनियम का हवाला देकर मुआवजा दिलाने की पहल की। आदेश भी हुआ ये दीगर बात रही की भ्रष्ट विभाग काफी समय तक मुआवजे पर कुंडली मारे बैठा रहा। जब ठण्ड आती थी तो आप को गरीबों की फ़िक्र सताती थी। उन्हें कंबल के लिए बजट जारी हुआ की नहीं। सार्वजनिक स्थलों पर अलाव जलाने की व्यवस्था हुई की नहीं। ऐसे तमाम सवालों की आरटीआई अर्जी लिए आप हर ठंडी में मुस्तैद रहते थे। इस बार भी ठंड आ गई है मगर ये क्या क्रूर नियति ने तो गरीबों से बेवफाई के लिए आपको मजबूर कर दिया।  हिंदी के सम्मान के लिए पीएमओ से लड़ने वाला यह बन्दा चला गए। जंगेआजादी के गुमनाम शहीदो को रौशनी में लाने की लौ जलाने वाला यह चितेरा चला गया।

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