ये है जौनपुर शाही किला का इतिहास, पढे़ और वीडियो में देखे कैसा है फिरोजशाह का दुर्ग

फोटो : बदल चक्रवर्ती
 आदि गंगा गोमती के पावन तट पर स्थापित इस शाही किले को देखते ही जौनपुर वासियों का सीना फर्ख से ऊंचा हो जाता हैं।  शर्की शासन काल का पूरा इतिहास समेटे हुए इस शाही किले का निमार्ण फिरोजशाह तुगलक ने कराया था। पत्थर का बना यह  विशाल दुर्ग 1359 ई0 के पूर्व टूटा फूटा टीला हुआ करता था। स्थानीय इतिहासकार डा0 सजल सिंह के अनुसार अयोध्या के शासक मर्यादा पुरूषोत्तम् श्री रामचन्द्र ने करारवीर नामक नरभक्षी राक्षस का वध जिस स्थान पर किया था उसी स्थान पर यह किला स्थापित हैं।
इस दुर्ग का निमार्ण फिरोजशाह तुगलक ने सन् 1359 ई0 में शुरू कराया था लगभग चार साल में यह बनकर तैयार हुआ।यह राज्य मालवा, बंगाल,और दिल्ली जैसे शक्तिशाली राज्यों से घिरा हुआ था। इन शक्तिशाली पड़ोसियो से सुरक्षा के लिए शर्की शासको ने एक बहुत बड़ी सेना को रखने की आवश्यकता को महसूस किया। सुल्तान महमूद शाह शर्की के पास एक लाख 70 हजार घुड़सवार सेना और 14 सौ हाथियां थी। यह उस समय प्रांतीय राज्यो की सबसे बड़ी सेना हुआ करती थी। इस भारी भरकम सेनाओ को रहने के लिए  किले का निर्माण हुआ। 1359 ई0 में सुल्तान फिरोजशाह तुगलक ने एक नया शहर बसाने का फरमान जारी किया। उसी समय यहां पर मिट्टी के टीले को समतल करके इस किले का निर्माण कराया गया। इसी किले को सुल्तान-उस-शर्क मलिक सरवर ने परिमार्जित कर इसे अपना सरकारी मुख्यालय बनाया। कला प्रेमी इब्राहीम शाह शर्की सत्ता में आया तो उसने न किले के टूटे फूटे भाग की मरम्मत करवाया बल्कि किले के भीतर स्नानागार और प्रशासनिक अधिकारियो कर्मचारियों को नमाज पढ़ने के लिए एक सुन्दर मस्जिद का निमार्ण भी कराया।
  किले का मुख्य प्रवेश द्वार पूर्वी दिशा में बना हुआ है, सैनिक दृष्टिकोण से यह इतना विशाल बनाया गया है कि इसमे हाथियां आराम से आ जा सके।
 किले का मुख्य द्वार ऊॅचाई साढ़े बासठ फिट और चैड़ाई 16 फिट हैं।इस द्वार का तोरण स्तम्भ पांच मेहराबदार मंजिलो में बंटा हैं। मेहराबो में अलंकृत पट्टियां बनी हुई हैं। प्रत्येक मंजिल का अगला भाग चोटी के समान हैं। इस मुख्य द्वार का ऊपरी  हिस्सा तराशी हुई घंटियों से सुसज्जित हैं।मुख्य मेहराब की दीवारे छोटे छोटे झरोको से शोभायमान हैं।
 मुख्य द्वार के आगे बना यह भव्य सुरक्षा द्वार प्राचीन भव्यता की गाथा बयां कर रही हैं। यह सुरक्षा द्वार तोरण स्तंभो के साथ बनाया गया है।  इस द्वार की ऊचांई 46.4 फिट और चैड़ाई 43.8 फिट हैं। किले के ऊपरी हिस्से में चारों तरफ बनी इन बुर्जियो पर सुरक्षा गार्ड तैनात होकर आक्रमणकारियों और आने जाने वाले पर कड़ी निगाह रखते थे।
  सिकंदर लोदी जौनपुर की गद्दी पर आसिन हुआ तो उसने अन्य शर्की इमारतो की तरह इस किले के भीतर बने सभी इमारतो को तुड़वा डाला और किले के बाहरी भागो को भी बंुरी तरह क्षतिग्रस्त किया गया।

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