डा. एपीजे अब्दुल कलाम के आदर्शो को आज अपनाने की जरूरत है : न्यायमूर्ति

जौनपुर। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति मा. अरूण टण्डन ने कहा कि जो शिक्षा हमें अभिमानी बना दें, वैसी शिक्षा मत लीजिए। देश तभी समृद्ध और विकास करेगा, जब इस देश  की शिक्षा सभी वर्गों तक बराबर पहुंचे। इसे सभी तक बांटना होगा। न्यायमूर्ति श्री टण्डन रविवार को वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्ववविद्यालय में आयोजित ‘भारतीय संविधान: लोकतंत्र और सफलता’ विषयक संगोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे। यह समारोह भारत रत्न डा. भीम राव अम्बेडकर की 125वीं वर्षगांठ के अवसर पर विश्ववविद्यालय द्वारा मनाया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि पं. मदन मोहन मालवीय जी का मानना था कि शिक्षा इंसान बनाने वाली होनी चाहिए। आज यह दुर्भाग्य से पैसा कमाने वाली बन गयी है। विद्यार्थियों से मुखातिब होते हुए उन्होंने कहा कि पूर्व राष्ट्रपति डा. एपीजे अब्दुल कलाम के आदर्शो  को आज अपनाने की जरूरत है। देश में भ्रष्टाचार सबसे बड़ी समस्या के रूप में उभर रहा है। इसके लिए हमें कलाम साहब के सिद्धांतों पर पहल करते हुए इसकी शुरूआत अपने घर से करनी होगी। उन्होंने कहा कि विद्यार्थियों को अपने घरों में अपने अभिभावकों से यह सवाल करना होगा कि घर में जो कीमती सामान और वाहन आ रहे है वह अपनी कमाई के है या गलत ढ़ग से की गयी कमाई के। इस पारदर्षिता से समाज में सुधार परिलक्षित होगा। उन्होंने कहा कि जब संविधान बना तभी षिक्षा को भी मौलिक अधिकारों में शामिल किया जाना चाहिए था।
विषिष्ट अतिथि मा. कुलाधिपति/श्री राज्यपाल के विधिक सलाहकार श्री एसएस उपाध्याय ने कहा कि भारत का संविधान दुनिया में लोकप्रिय है। जिसे विष्व के अन्य देषों ने भी माना है। उन्होंने कहा कि यह हमारे संविधान की खूबी है कि तमाम विविधताओं, भाषा, मजहब, पंथ होने के बाद भी इसमें सबको साथ लेकर चलने की क्षमता है। यही सफल लोकतंत्र की पहचान है। उन्होंने कहा कि देष के तीन स्तम्भ न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका हैं। नियम बनाने का अधिकार विधायिका के पास है फिर भी अंतिम रूप से सर्वोच्च न्यायालय के पास इसे उचित या अनुचित ठहराने का अधिकार है। उन्होंने कहा कि प्राचीन भारत में हमारी स्मृतियों ने कानून का पालन कराया था। अत्रि स्मृति का उद्धरण देते हुए उन्होंने कहा कि समाज में करणीय कार्य को धर्म कहा गया। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में नकारात्मकता का कोई स्थान नहीं है। हमारे यहां सहिष्णुता षुरू से रही है। आज हमारेे यहां अधिकारों की बात बहुत हो रही है लेकिन अपने कर्तव्यों की बात लोग भूल गये है। जबकि पहले हमारा समाज अधिकार नहीं, अपने कर्तव्य पर जोर देता था। उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 51 को समझने की जरूरत है तभी संविधान की मूल भावना का पालन हो पाएगा। हमारा लोकतंत्र परिपक्व है। इसका उदाहरण एनजेसी (राष्ट्रीय न्यायालय आयोग) के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने देष की जनता से भी सुझाव मांगे थे। ऐसी प्रक्रिया हमारी लोकतांत्रिक मूल्यों को बल देती है।
विषिष्ट अतिथि वाराणसी मण्डल के आयुक्त एवं विष्वविद्यालय के पूर्व कुलपति श्री नितिन रमेष गोकर्ण ने कहा कि विष्व के समस्त धर्म भारत में है, हमारी सभ्यता एवं संस्कृति में भी प्राचीनता की बुनियाद है। 21 वर्ष से कम उम्र के लोगों की आबादी इस देष में 65 प्रतिषत है। ऐसे में आज हमें इन युवाओं के लिए रोल माॅडल तैयार करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि एक अरब 30 करोड़ की आबादी वाले इस महान देष में संविधान का षासन अपने आप में ही एक बड़ी उपलब्धि है। दुनिया में यही एक ऐसा देष है जो अपनी आजादी के बाद से लेकर अब तक कभी भी षासन सत्ता में सैनिक हस्तक्षेप से वंचित है। भारत के संविधान ने लोकतंत्र को सफलतम स्तर पर पहुंचाने का कार्य किया है। ग्राम पंचायतों में चल रहे चुनाव इस लोकतंत्र की सफलता को दर्षाते है। उन्होंने विद्यार्थियों से अपील की कि अभी हमें भ्रष्टाचार के खात्मे, महिला सषक्तिकरण तथा कमजोर लोगों के लिए बहुत कुछ करने की जरूरत है।
संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. पीयूष रंजन अग्रवाल ने कहा कि देष को एकसूत्र में पिरोये रखने का कारण हमारा संविधान है। उन्होंने कहा कि संविधान में तीन स्तम्भ के बाद लोगों ने मीडिया को चैथे स्तम्भ के रूप में स्थापित करने की जरूरत बतायी। आज सबकी निगरानी के लिए पांचवें स्तम्भ के रूप में सोषल मीडिया आ गया है। सिविल सोसायटी ने आजादी की लड़ाई को आंदोलन में बदला था। आज सोषल मीडिया के माध्यम से इसी की पुनर्वापसी हो रही है। उन्होंने कहा कि आज देष के नागरिकों की इच्छा बढ़ी है। इन अपेक्षाओं एवं मूल स्वरूप में समानता के लिए प्रयास करने की जरूरत है। इसके पूर्व मुख्य अतिथि, विषिष्ट अतिथिगण एवं विष्वविद्यालय के कुलपति ने दीप प्रज्ज्वलन कर कार्यक्रम की षुरूआत की।
कार्यक्रम का संचालन कुलसचिव डा. बीके पाण्डेय एवं डा. एचसी पुरोहित ने किया। स्वागत प्रो. डीडी दूबे द्वारा किया गया। इस अवसर पर वित्त अधिकारी एमके सिंह, डा. लालजी त्रिपाठी, डा. राजीव प्रकाष सिंह, डा. यूपी सिंह, डा. सर्वानंद पाण्डेय, डा. विजय प्रताप तिवारी, डा. आलोक सिंह, डा. सूर्यप्रकाष सिंह मुन्ना, डा. विवेक पाण्डेय, डा. एके श्रीवास्तव, डा. रामनारायण, डा. मानस पाण्डेय, डा. अविनाष पाथर्डिकर, डा. अजय प्रताप सिंह, डा. मनोज मिश्र, डा. वंदना राय, डा. अजय द्विवेदी, डा. बीडी षर्मा, डा. सुरजीत यादव, डा. एसपी तिवारी, डा. आषुतोष सिंह, डा. दिग्विजय सिंह राठौर, सुषील कुमार, डा. आलोक सिंह, डा. अवध बिहारी सिंह, डा. सुनील कुमार, डा. रूष्दा आजमी, डा. केएस तोमर, रामजी सिंह, ष्याम त्रिपाठी, अषोक सिंह, रजनीष सिंह, डा. राजेष जैन समेत विभिन्न संकायों के षिक्षक एवं विद्यार्थी मौजूद रहे।

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