झोपड़ी से लेकर राजभवन तक का सफर तय कर चुके है पूर्व राज्यपाल माता प्रसाद

खुदी को कर बुलंद इतना कि खुदा बंदे से पुछे बता तेरी रजा क्या है किसी शायर की इस लाईन को सच कर चुके है जौनपुर जिले के माता प्रसाद ने। माता प्रसाद अपनी इच्छा शक्ति और कठोर परिश्रम के बल पर झोपड़ी से लेकर राजभवन तक का सफर तय कर चुके है। 90 बंसत पार कर चुके माता प्रसाद अभी भी साहित्य और लेखन क्षेत्र में अपना सफर जारी रखा है।
माता प्रसाद सन् 1957 से लेकर 1977 तक शाहगंज विधान सभा सीट से विधायक चुने गये थे और 1980 से लेकर 1992 तक विधान परिषद के सदस्य रहे। सन् 1988 में उन्हे उत्तर प्रदेश सरकार में राजस्व मंत्री बनाया गया उसके बाद 21 अक्टुबर 1993 में अरूणांचल प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया था। वे अपने कार्यकाल में कई ऐतिहासिक कार्य किये है जिसका लाभ आज भी वहा की जनता को मिल रहा है।
पूर्व राज्यपाल माता प्रसाद का जन्म 11 अक्टुबर 1925 को मछलीशहर कस्बे के काजियाना मोहल्ले में हुआ था। उस समय उनके पिता जगरूप और माता रज्जी देवी खेतिहर मजदूर हुआ करती थी। माता प्रसाद बचपन से ही पढ़ने लिखने में होनहार थे। उस समय समाज में व्याप्त छुआछूत प्रथा के कारण उनको गांव के स्कूल में पढ़ने नही दिया गया। इसके बाद माता प्रसाद को दूसरे स्कूल में दाखिला लेना पड़ा था। उन्होने अपनी मजबूत इच्छा शक्ति के कारण सन् 1942 में जूनियर हाई स्कूल मछलीशहर से हिन्दी मिडिल प्रथम श्रेेणी से पास किया उसके बाद 1943 में उर्दू की शिक्षा प्राप्त किया।
काविद: प्रथम भाग 1945 में और दूसरा भाग 1946 में प्राप्त किया।
विशारद: हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग से सन् 1948  से प्राप्त किया।
1952 में हाई स्कूल प्रथम श्रेणी में पास किया और नार्मल स्कूल गोरखपुर से एचटीसी द्वितीय श्रेणी में पास किया।
साहित्यरत्नः राजनीति विषय पर सन् 1949-1950 व 1950-1951 में पास किया।
साहित्य विषय से सन् 1953-1954 व 1954-1955 में हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग से प्राप्त किया।
शिक्षा के साथ साथ माता प्रसाद ने अध्यापन का कार्य शुरू कर दिया था वे 1946 से लेकर 1954 तक जौनपुर जिले के विभिन्न प्राईमरी जूनियर हाईस्कूलो में सहायक अध्यापक और जूनियर स्कूलो में प्रधानाध्यापक पद पर रहकर बच्चो को तालिम दिया।

माता प्रसाद ने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरूवाआत 1957 विधान सभा चुनाव से शुरू किया तो वे कभी पिछे मुड़कर नही देखे। इस चुनाव में काग्रेस पार्टी ने शाहगंज सुरक्षित सीट पर अपना प्रत्याशी बनाया तो जनता ने उन्हे भारी बहुमत से जिताकर अपना विधायक चुन लिया। उसके बाद उनके जीत का कारवा लगातार बढ़ता ही रहा। वे इस सीट पर 1957 से लेकर 1977 तक लगातार विधायक चुने जाते रहे।
उसके बाद 1980 से लेकर 1992 तक लगातार एमएलसी रहे।
सन् 1988 में नारायण दत्त तिवारी के मुख्यमंत्री काल में माता प्रसाद को राजस्व विभाग का मंत्री बनाया गया हलांकि उनका कार्यकाल मात्र एक वर्ष ही रहा।

े केन्द्र सरकार ने माता प्रसाद को 21 अक्टुबर 1993 में अरूणांचल प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया। 13 मई 1999 के कार्यकाल में माता प्रसाद को प्रधानमंत्री नरसिंह राव अटल बिहारी बाजपेयी एचडी देवेगैड़ा और इंद्र कुमार गुजराल के साथ विचार विमर्श का अवसर मिला।

माता प्रसाद जहां कुशल राजनीतिक व्यक्तित्व के धनी है वही एक उच्चकोटि के साहित्यकार भी है। उन्होने अब तक दो दर्जन से अधिक किताबे लिखी है और पांच किताबे प्रेस में छपने के लिए पड़ी है।
माता प्रसाद जी ने अपने कलम से पहली पुस्तक दलित समाज संबन्धि लोकगीत दूसरी एकलब्ध खण्ड काव्य 1981 में लिखा। तीसरा भीमशतक प्रबंधकाव्य 1986 में लिखा। चैथा किताब राजनीत की अध्र्द सतसई 1992 में लिखा। पांचवी पुस्तक परिचय सतसई 1996 में और 6 वीं पुस्तक दिग्विजवी रावण प्रबंध काव्य 1998 में लिखा।

नाटक
1.अछूत का बेटा 1973 में
2. धर्म के नाम पर धोखा 1977 में
3. वीरागना झलकारी बाई 1997 में
4. विरागना उदादेवी पासी 1997 में
5. तड़प मुक्ति की 1999 में
6. प्रतिशोध 2000 में
7. अंतहीन बेइियां 2000 में
8. धर्म परिवर्तन 2001 में
9. रैदास से संत हिरोमणि गुरू रविदास 2001 में
10. हम सब एक है 2005 में
11. जातियों का जंजाल 2006 में
12.दिल्ली की गद्दी पर खुसरो भंगी 2008 में
13. राजनीतिक दलो में दलित एजेण्डा 2011 में
14. दलितो का दर्द 2011 में
15. घुटन 2012 में
16 महादानी राजा बलि 2013 में लिखा हैै।
इसके अलावा दो दर्जन से अधिक छोटी बड़ी रचनाएं माता प्रसाद द्वारा की गयी है।






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