मोदी जी और मुख्यमंत्री जी मेरे चार बच्चे जन्म से अंधे है, गरीबी बेबसी के अलावा कुछ भी नही मिला : लल्ली देवी
https://www.shirazehind.com/2016/01/blog-post_796.html
जौनपुर। हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक साथ दस हजार दिव्यागों को ट्राई साकिल
श्रवण यंत्र समेत उनकी आवश्कता की सामानो को बाटकर वर्ड रिकार्ड बनाना
चाहते है। वही जौनपुर जिले के एक निर्धन परिवार के चार बच्चे है चारो जन्म
से ही अंधे है। अभी तक इन बच्चो को श्रवण यंत्र मिलना तो दूर की बात इनका
विकलांग प्रमाण पत्र भी नही बना है। ना ही इन्हे कोई सरकारी सहायता ही मिली
है। इस गरीब परिवार को इंदिरा आवास मिला भी है तो उसमे दरवाजा नही लगा है।
जिला मुख्यालय से 15 किमी दूर मुफ्तीगंज विकास खंड के असवारे गाँव में खण्डहर मकान के सामने धूप में खेलते ये वो बच्चे है जिनकी आँखों की रोशनी भगवान ने पहले ही छीन ली थी 3 महीने पहले इनके सर से पिता का साया भी उठ गया। घर में एक बूढी दादी है जिनको खुद सहारे की जरूरत है। इस परिवार को पिछले प्रधान ने आवास तो दिला दिया पर आज कई वर्षो बाद भी दरवाजा नही लग सका है न घर में गर्म बिस्तर ही न गर्म कपड़े, किस तरह इस कड़ाके की ठण्ड में ये बच्चे अपना गुजर कर रहे होंगे इसका अंदाज़ा इन तस्वीरो से लगाया जा सकता है। बच्चेभले ही अंधे है लेकिन इनके अंदर प्रतिभा की कमी नही है। इन्हें दिखता नही पर स्कूल में जा कर ये बच्चे गिनती और पहाडा सुन सुन कर याद करते है। इन बच्चो को घर का खाना अच्छा नही लगता स्कूल का खाना जादा अच्छा लगता है। बच्चो को स्कूल में जितना पढाया जाता है उन्हें सब कुछ याद है सिर्फ अंग्रेजी के। ऐसा नही है की ये बच्चे इंग्लिस पढना नही चाहते बल्कि स्कूल में मास्टर ही इन्हे इंग्लिस नही पढ़ते।
गरीबी और बेबसी से तंग इन मासूम बच्चो की माँ लल्ली देवी किसी तरह दुसरो के खेतो में काम करके और लोगो के घरो के बर्तन साफ़ कर अपने बच्चो का जीवन यापन कर रही है। लल्ली देवी का कहना है की न घर तक जाने का रास्ता है न मकान में दरवाजा न पीने को पानी मिलता है न ठंड में ओढने के लिए कम्बल बस किसी तरह अपने बच्चो के साथ रह रही है।
इस परिवार के दर्द से गाँव का हर नागरिक वाकिफ है पर कोई कुछ कर पाने में असमर्थ है। गाँव के नये प्रधान ने बताया की उन्हें इस परिवार से हमदर्दी है और जिला प्रशासन को इस परिवार के बारे में अवगत कराके जो भी सुविधाए होगी इस परिवार उपलब्ध कराई जाएगी।
जिला मुख्यालय से 15 किमी दूर मुफ्तीगंज विकास खंड के असवारे गाँव में खण्डहर मकान के सामने धूप में खेलते ये वो बच्चे है जिनकी आँखों की रोशनी भगवान ने पहले ही छीन ली थी 3 महीने पहले इनके सर से पिता का साया भी उठ गया। घर में एक बूढी दादी है जिनको खुद सहारे की जरूरत है। इस परिवार को पिछले प्रधान ने आवास तो दिला दिया पर आज कई वर्षो बाद भी दरवाजा नही लग सका है न घर में गर्म बिस्तर ही न गर्म कपड़े, किस तरह इस कड़ाके की ठण्ड में ये बच्चे अपना गुजर कर रहे होंगे इसका अंदाज़ा इन तस्वीरो से लगाया जा सकता है। बच्चेभले ही अंधे है लेकिन इनके अंदर प्रतिभा की कमी नही है। इन्हें दिखता नही पर स्कूल में जा कर ये बच्चे गिनती और पहाडा सुन सुन कर याद करते है। इन बच्चो को घर का खाना अच्छा नही लगता स्कूल का खाना जादा अच्छा लगता है। बच्चो को स्कूल में जितना पढाया जाता है उन्हें सब कुछ याद है सिर्फ अंग्रेजी के। ऐसा नही है की ये बच्चे इंग्लिस पढना नही चाहते बल्कि स्कूल में मास्टर ही इन्हे इंग्लिस नही पढ़ते।
गरीबी और बेबसी से तंग इन मासूम बच्चो की माँ लल्ली देवी किसी तरह दुसरो के खेतो में काम करके और लोगो के घरो के बर्तन साफ़ कर अपने बच्चो का जीवन यापन कर रही है। लल्ली देवी का कहना है की न घर तक जाने का रास्ता है न मकान में दरवाजा न पीने को पानी मिलता है न ठंड में ओढने के लिए कम्बल बस किसी तरह अपने बच्चो के साथ रह रही है।
इस परिवार के दर्द से गाँव का हर नागरिक वाकिफ है पर कोई कुछ कर पाने में असमर्थ है। गाँव के नये प्रधान ने बताया की उन्हें इस परिवार से हमदर्दी है और जिला प्रशासन को इस परिवार के बारे में अवगत कराके जो भी सुविधाए होगी इस परिवार उपलब्ध कराई जाएगी।