भ्रष्टाचार की मकड़जाल में उलझी सार्वजनिक वितरण प्रणाली
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जौनपुर। सार्वजनिक वितरण प्रणाली व्यवस्था भ्रष्टाचार की भेंट चढ़कर रह गयी है। मजे की बात यह है कि अधिकारी भी ठोस कार्यवाही के बजाय कोटे की दुकानों के मामले में ‘निलम्बन व बहाली’ का खेल खेल रहे हैं। ऐसे में इनके खिलाफ कोई भी शिकायत व कार्यवाही का जहां भय नहीं रह जाता है, वहीं इनकी शिकायत पर उल्टे शिकायतकर्ता की ही बाट लगती है। ऐसा ही एक मामला केराकत तहसील क्षेत्र के ग्राम पंचायत तरियारी के ग्रामसभा सहुरा का है जहां के कोटेदार की उचित दर की दुकान का 7 जुलाई 2015 को क्षेत्रीय खाद्य अधिकारी केराकत द्वारा निरीक्षण के दौरान दुकान का साइन बोर्ड, स्टाक व रेट बोर्ड अद्यतन नहीं पाया गया था। इस दौरान बीपीएल, अन्त्योदय कार्डधारकों की सूची भी दीवार पर पेंटिंग नहीं था। इसी प्रकार वितरण दिवस के दिन खाद्यान्न का वितरण नहीं किया गया था। स्टाक रजिस्टर नियमानुसार नहीं भरा गया था। वितरण हेतु उठान के बाद भी उसका वितरण नहीं किया गया था। निरीक्षण के दौरान यह भी प्रकाश में आया था कि कोटेदार द्वारा शासनादेशानुसार स्टाक व रेट बोर्ड नियमानुसार नहीं भरा जाता है। बीपीएल, अन्त्योदय कार्डधारकों की सूची नहीं लिखवायी गयी थी। उठान के अनुरूप गेहूं दुकान मंे कम रखा गया था। जून 2015 में वितरण नहीं किया गया था एवं बिक्री रजिस्टर एपीएल योजना का नहीं बनाया गया था जो उत्तर प्रदेश अनुसूचित वस्तु वितरण आदेश 2004 में दिये गये प्राविधानों एवं अनुबंध पत्र की शर्तों के विरूद्ध है। ऐसे में क्षेत्रीय खाद्य अधिकारी की जांच के आधार पर तत्कालीन उपजिलाधिकारी द्वारा उक्त दुकान को निलम्बित कर दिया गया था। यह तो रही निलम्बन की कार्यवाही लेकिन अब देखिये कि बहाली का खेल किस प्रकार से खेला जाता है। सहुरा के कोटेदार ने कुल 7 बिंदुओं पर स्पष्टीकरण प्रार्थना पत्र सौंपते हुये जो बात कही है, उससे तो जांच अधिकारी पर ही आंच आती नजर आ रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि कोटेदार सही है या निरीक्षण करने वाला अधिकारी? कोटेदार पर जहां आरोप लगाया गया था कि दुकान पर रेट बोर्ड, साइन बोर्ड अद्यतन नहीं पाया गया था, वहीं कोटेदार ने अपने स्पष्टीकरण में कहा है कि दुकान पर रेट व साइन बोर्ड नियमानुसार प्रदर्शित था। इसी प्रकार उसने बीपीएल, अन्त्योदय कार्डधारकों की सूची दीवार पर न लिखे होने के जवाब में कहा है कि यह भी प्रदर्शित है। वितरण दिवस पर वितरण न करने पर उसने कहा कि कुछ कार्डधारकों को वितरण करने के बाद उसकी तबीयत खराब हो गयी थी, इसलिये वह उपचार हेतु चला गया था। ठीक इसी प्रकार कोटेदार ने बड़े ही साफगोई के साथ 4 बोरी चावल अधिक पाये जाने पर कहा कि उसके द्वारा दो कमरे में वितरण का राशन रखा जाता है। निरीक्षण के दौरान जांच अधिकारी द्वारा केवल एक ही कमरे का निरीक्षण किया गया था। इसी प्रकार उसने अन्य सभी आरोपों को भी बड़े सधे अंदाज में नकारते हुये एआरओ की जांच पर ही सवालिया निशान लगा दिया है। गौर करने की बात है कि जिस प्रकार कोटेदार ने स्पष्टीकरण में अपने बचाव में कई तथ्य प्रस्तुत किये हैं, वहीं खुद ही अपने आपमें कई सवालों को जन्म दिये जा रहे हैं जिस पर गम्भीरता से गौर किया जाय तो हकीकत खुद-ब-खुद सामने होगी। मजे की बात यह है कि इतने सबके बाद भी उक्त कोटे की दुकान को 11 जनवरी 2016 को उपजिलाधिकारी केराकत द्वारा मात्र कतिपय लापरवाही के कारण उसकी जमानत राशि को शासन के पक्ष में जब्त करते हुये और भविष्य के लिये कठोर चेतावनी देते हुये बहाल कर दिया गया जो चर्चा का विषय बना हुआ है। वहीं कुछ लोगों ने इस मामले में एक जनप्रतिनिधि सहित सम्बन्धित विभाग और अधिकारियों की दुकान बहाली में संलिप्तता को लेकर मोर्चा खोल दिया है।