गोमती नदी रही है देवी, देवताओ -ऋषि मुनियो की लाडली ,पढ़े पूरा इतिहास
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इतिहास गवाह है कि यह नदी महाकाव्य के समय से कल कल कल करते बहती जा रही थी। गोमती मईया की महिमा यह समाप्त नही होती जिस शहर नगर से होकर आदि गंगा बह रही उसे साम्प्रदायिकता की आंच से महफूज भी रखी है।
जौनपुर जिले के जमैथा गांव में इसी नदी के पावन तट पर परशुराम के पिता यमदग्नि ऋषि ने अपना तप स्थली बनाया भगवान राम लंका पर फतेह करके लौटते समय सई उतरने के बाद इसी पावन नदी में स्नान किया था। इसका उल्लेख रामचरित मानस में भी किया गया है ‘सई उतरि गोमती नहाये चैथे दिवस अवधपुर आये’ स्नान ध्यान करने के बाद उन्होने सूर्यवशी के नाम पर सूरज घाट और राजा रघु के नाम पर रामघाट की स्थापना करने के बाद अयोध्या के लिए चले गये थे।
प्रख्यात इतिहासकार डा0 सजल सिंह ने शिराज ए हिन्द डाॅट काम को बताया कि लखनऊ और सुल्तानपुर जिले के बीच छप्प तीर्थ स्थल है यहा पर गोमती नदी अचानक पश्चिम दिशा में बहने के बाद पूरब की तरफ रूख कर जाती है। पौराणिक कथानको के अनुसार यहां पर एक बार काले कौआ ने स्नान किया तो वह सफेद हो गया। इस चमत्कार के बाद से यहां पर हर अमास्या पर श्रद्वालुओ का रेला उमड़ पड़ता है।
इस पहले सीतापुर जिले में गोमती नदी के किनारे लेनीशारण्य धाम है। इसी धाम पर 84 हजार साधु संतो ने पहलीबार महाभारत पढ़कर हिन्दू धर्म को पुनः जीवित किया।
गोमती नदी जिस शहर या नगर से बहती उन शहरो में गंगा जमुनी तहजीब कायम रखती है। इतिहास गवाह है आज तक सीतापुर लखनऊ सुल्तानपुर जौनपुर और गाजीपुर में साम्प्रदायिक दंगे नही हुए है।
आज देवी देवताओ की लडली ऋषि मुनियों की तप स्थलीय माने जाने वाली गोमती नदी का अस्तित्व खतरे में है। इस लिए हम शिराज ए हिन्द डाॅट काम गोमती नदी के किनारे बसे जनता से यह अपील करता है कि बचा लो अपनी मां को।