जौनपुर गौरव: 40 वर्षो से अमेरिका में भारत का झण्डा बुलंद किये हुए है डॉ 0 सरोज मिश्रा
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जौनपुर। शर्की शासनकाल से शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी रहा शिराज ए हिन्द की सरजमी जौनपुर की धरती पर सैकड़ो आईएएस आईपीएस पीसीएस और वैज्ञानिको ने जन्म लिया है। इसी में से एक है डा0 सरोज मिश्रा। डा0 मिश्र अपनी प्रतिभा के बल पर पिछले 40 वर्षो से अमेरिका में भारत झण्डा बुलंद किये हुए है।
जौनपुर जिले के
बक्शा थाना अंतर्गत ग्राम चुरावनपुर तेलीतारा में प्रख्यात चिकित्सक
परिवार में वैद्य शिरोमणि पं0 उदरेश मिश्र वैद्य के द्वितीय पुत्र के रूप
में जन्मे डा0 सरोज कुमार मिश्र ने पूरी दुनियां में जौनपुर का नाम रौशन
किया। प्राथमिक शिक्षा ग्राम व क्षेत्र के विद्यालयो से पूरी करने के बाद
डा0 मिश्र ने 1966 में बीएचयू बनारस से एमएससी की उपाधि प्राप्त की । 1972
दिल्ली विश्वविद्यालय से मेडिकल माईक्रो बाईलाजी में पीएचडी करने के उपरांत
उच्च शोध के लिए डा0 मिश्र को उस जगह प्रवेश मिला जहां दुनियां में सबसे
ज्यादा मेडिकल शोध को अहमियत दी जाती है और जहां से अनेको जीवन रक्षक
टीकों की खोज हुई है । वह संस्थान था बर्लिन स्थित राबर्ट काॅक
इंस्टीट्यूट । इस संस्था से डा0 मिश्र ने 1976 में पोस्ट डाक्टोरल की
उपाघि प्राप्त किया । डा0 मिश्र का सफर यही समाप्त नही हुआ। उनकी ज्ञान
की जिज्ञासा ने एक और पोस्ट डाक्टोरल के लिए उन्हे आर्कषित किया। वे जर्मनी
के तत्काल बाद 1976 में ही रूटजर्स विश्वविद्यालय न्यूजर्सी अमेरिका में
पोस्ट डॉक्टोरल अध्ययन के लिए प्रवेश लिया और 1978 में उपाधि प्राप्त की ।
मानव स्वास्थ पर किये गये उनके शोध पर उसी वर्ष स्वास्थ मंत्रालय जर्मन
सरकार के राबर्ट काॅक इंस्टीट्यूट ने उन्हे बरिष्ठ वैज्ञानिक व
विभागाध्यक्ष के पद पर नियुक्ति दिया। डा0 मिश्र तत्कालीन समय में ऐसे
एकलौते भारतीय थे जिन्हे उनकी प्रतिभा के बल पर जर्मन सरकार में इतना उच्च
पद प्राप्त हुआ । इस संस्था में डा0 मिश्र 1984 तक रहे। ततपश्चात अमेरिका
के मिशिगन यूनिर्वसिटी में वे वैज्ञानिक व प्रोफेसर के पद पर उनकी
नियुक्ति होने के बाद उन्होंने जर्मनी को छोड़ दिया। 1984 से 1988 तक डा0
मिश्र ने अपनी सेवा मिशिगन विश्वविद्यालय को दी।
रोग प्रतिरोधी
क्षमता पर किये गये अपने नवीनतम शोधों से डा. मिश्र को नयी ऊंचाई मिली
। डा0 मिश्र की नियुक्ति 1988 में नासा जॉन्सन स्पेस सेंटर में हुई। जहां
डा0 मिश्र को वरिष्ठ वैज्ञानिक एवम् प्रयोगशाला के निदेशक पद पर नियुक्ति
प्रदान की गई। डा0 मिश्र नासा में रहते हुए जौनपुर का नाम पूरी दुनियां
में रोशन किया। यह वह दौर था जब भारत में इलेक्ट्रनिक मीडिया और सोशल
मीडिया सक्रिय नही थी और प्रिंट में भी कम पन्ने हुआ करते थे। यहां तक कि
देश के महानगरो से सम्पर्क नही होता था सूचना के अदान प्रदान केवल लिए
चिठ्ठियां ही माध्यम हुआ करती थी। जिसके कारण इतना बड़ी उपलब्धि से देश और
समाज से अछूती रही । तत्कालीन प्रधनमंत्री श्री राजीव गांधी जी ने डॉ मिश्र
की इस प्रतिभा पर उन्हें बधाई दी थी। रूस और अमेरिका के सहयोग से बना
अंतरिक्ष स्टेशन मीर मिशन के डिजाइनिगं एवं प्रयोगशाला के निर्माण में डा0
मिश्र दुनिया के उन चुनिंदा वैज्ञानिको में से थे जो नासा की तरफ से स्पेस
सिस्टम इन्वायरमेंट प्रोग्राम की डिजाइनिंग में शामिल हुए थे , उनकी इस
शानदार उपलब्धि को नासा ने बहुत महत्व देते हुए उन्हे सम्मानित किया। नासा
में अपनी सेवा के दौरान मंगल मिशन में जाने वाले अंतरिक्ष यात्रियों के
स्वास्थ बरकरार कैसे रखा जय इस विषय को उन्होंने अपने शोध से साबित किया।
जौनपुर के गौरव डॉ मिश्र को नासा का स्पेस एवार्ड तीन बार दिया गया जो
की अपने आप में किसी भी भारतीय वैज्ञानिक के लिए गर्व की बात है। डा0 मिश्र
को पूरी दुनियां से करीब एक दर्जन ऐसे एवार्ड मिलें हैं जो किसी भी
वैज्ञानिक के लिए गौरव और प्रेरणादायक है । रोग प्रधिरोधी विज्ञान में
नवीनतम शोध करने वाले डा0 मिश्र 1998 से लेकर 2006 तक अंतराष्ट्रीय जर्नल
करेंट माईक्रोबायलॉजी के सम्पादक रहे है। डा0 मिश्र के नाम सात अमेरिकी
पेंटेट है। डा0 मिश्र ने एक दर्जन से अधिक अतंराष्ट्रीय कांफ्रेंसेस को
अमेरिका, यूरोप और आस्ट्रेलिया में आयोजित किया है। डॉ मिश्र द्वारा सौ से
अधिक शोध पत्र अंतराष्ट्रीय संगोष्ठीयों में प्रस्तुत किये गए हैं।
डा0 मिश्र की कई पुस्तके,एक दर्जन बुक चैप्टर और दो सौ शोध पत्र विभिन्न
अंतराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित है। जिसमे कई एक अमेरिका के
विश्वविद्यालयों के पाठ्क्रम में शामिल है।
सन् 1999 में डॉ
मिश्र की नियुक्ति नासा के यूनिर्वसिटीज स्पेस रिसर्च एशोसिएशन में
बरिष्ठ वैज्ञानिक एवं ह्यूस्टन विश्वविद्यालय में माईक्रो बाईलोजी के
प्रोफेसर पद पर हुई। डा0 सरोज कुमार मिश्र अभी भी विश्वविद्यालय में
सेवारत है और उनके नेतृत्व में युवा वैज्ञानिको का एक दल मानव स्वास्थ के
उन्नयन के लिए शोधरत है।
इतने लम्बे समय तक अपने वतन से
दूर रहने वाले डॉ मिश्र अभी भी अपनी सरजमीं से जुड़े है। वो प्रति दो वर्ष
पर नियमित रूप से अपने गांव आते रहते हैं। गांव समाज से उनका लगाव ऐसा है
कि वे घर आने पर उनमें ऐसा घुल-मिल जातें है की यह भांपना मुश्किल है कि वे
चार दशकों से अमरीका में रह रहे हैं। उनकी वाणी में अभी भी अवधी की मिठास
कायम है। विज्ञान के विद्यार्थी होने के बाद भी भारतीय संस्कृति से डॉ
मिश्र को जहां अगाध प्रेम है वहीं उच्च संस्कार के चलते भारतीय वाङ्ग्मय पर
उनकी गहरी पकड़ भी है।
जौनपुर के इस सपूत पर हमें गर्व है।