मिरगी पीड़ितों के प्रति असमानता क्यों?

श्रीमती गार्गी सिंह
    हमेशा से ही हमारी संस्कृति में किसी भी बीमारी के ग्रसित लोगों के प्रति सम्मानजनक स्थान प्राप्त नहीं है। जहां तक अपस्मार (मिरगी) का प्रश्न है तो हमारे समाज की आज भी उनके प्रति सद्भाव का स्वभाव नहीं है। पता नहीं क्यों हमारे समाज में न जाने क्यों लोग थोड़ी दूरी बना लेते हैं। साथ ही सम्बन्ध भी नहीं रख पाते जबकि आज के इस वैज्ञानिक युग में जहां की आज हर चीज की जानकारी मनुष्य की अंगुलियों पर है परंतु फिर भी आज का समाज अपनी इस मानसिकता से निकल नहीं पा रहा है। पता नहीं यह दोष हमारी सामाजिकता का है या सोच का जो एक विकट प्रश्न है परन्तु वर्तमान की बदली हुई परिस्थितियों में अपस्मार (मिरगी) पीड़ितों की स्थिति में अत्यधिक गिरावट आयी है। जीवन भर सक्रिय, कर्मठ, भीड़ से घिरे घटनाओं के केन्द्र बिन्दु रहे लोग इस मेले में अकेले निष्क्रिय और तिरष्कृत से हो जाते हैं। वर्तमान में जीवनशैली में अत्यधिक गिरावट, शहरी क्षेत्रों में निवास स्थानों का छोटा होना, युवा पीढ़ी का शहरी क्षेत्रों में पलायन पीड़ितों के अतिरिक्त आर्थिक उत्तरदायित्व समस्या एवं संयुक्त परिवारों के विघटन में अपस्मार पीड़ितों के लिये समस्याएं खड़ी कर दी हैं। अकेलापन, अवसाद, चिन्ता, चिड़चिड़ापन आदि मनोवैज्ञानिक व भावनात्मक असुरक्षा ने स्थिति को और भी भयावह बना दिया है।
अपस्मार (मिरगी) से जुड़ीं भ्रांतियां
    अपस्मार (मिरगी) का मर्ज जादू-टोने या भूत-प्रेत के प्रकोप का परिणाम है जबकि तथ्यात्मक जानकारियां तथा शैक्षिक प्रचार प्रसार द्वारा अधिकतर लोगों को इसकी जानकारी है कि अपस्मार (मिरगी) का जादू टोने-टोटके या भूत-प्रेत से कोई सम्बन्ध नहीं है लेकिन अभी भी गांवों और दूर-दराज के क्षेत्रों में लोग इसे उपटी-झपटी का असर मानकर अपस्कार (मिरगी) रोगी को प्रताड़ित करने लगते हैं जबकि यह पीड़ित के मस्तिष्क (सेरीवेलम) से सम्बन्धित एक चिकित्सकीय अवस्था है। इसी अवस्था में पीड़ित को दौरे पड़ते हैं जिसे हमारे समाज में आज इसी दौरों को भूत-प्रेत का प्रतीक मानते हैं तथा पीड़ित से दूरी बनाते हैं। इतना ही नहीं, यह भी समझते हैं कि यह एक भयानक संक्रामक रोग है जबकि मेडिकल साइंस से यह पूर्णतः प्रमाणित हो चुका है कि यह संक्रामक रोग नहीं है और इससे पीड़ित अपना पूरा वैवाहिक एवं सामाजिक जीवन जी सकता है, क्योंकि यह रोग शारीरिक सम्बन्धों से नहीं फैलता है तथा यह रोग मां से बच्चों में होने की सम्भावना भी केवल 5 प्रतिशत होती है जबकि अपस्मार (मिरगी) किसी को किसी भी उम्र में हो सकता है। कुछ लाग इससे जन्मजात पीड़ित होते हैं। कुछ वयस्क या इसके बाद भी हालांकि आनुवांशिकता इसमें एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है लेकिन अपस्मार (मिरगी) के दूसरे प्रमुख कारण भी हैं। जैसे सिर में चोट, ब्रेन ट्यूमर, स्ट्रोक आदि। एक और प्रमुख भ्रांति यह भी है कि अपस्मार पीड़ित की बुद्धिमत्ता को भी प्रभावित करता है जबकि मेडिकल साइंस में यह पाया गया है कि अपस्मार पीड़ित का आईक्यू केवल सामान्य इंसानों में मिला ही है। अपितु एक बहुत ही बड़ी भ्रांति यह भी है कि किसी भी अपस्मार पीड़ित को दौरा पड़े तो तुरंत ही उसके मुंह में चम्मच या अंगुली डाल देनी चाहिये या फिर उसे जूता सूंघाने चाहिये जबकि इसके पीछे तथ्य यह कि यह सिर्फ एक मिथ्या अवधारणा है कि जिस व्यक्ति को दौरा पड़ा है, अगर आप बलपूर्वक उसे जूता सूंघाते या उसके मुख में चम्मच या अंगुली डालेंगे तो इससे उससे दांतों को नुकसान पहुंच सकता है। उसके मसूढ़े कट सकते हैं या उसके जबड़ों को नुकसान पहुंच सकता है। यही मदद या प्राथमिक उपचार यह है कि पीड़ित के सिर को किसी चीज से सहारा देकर थोड़ा ऊंचा करते हुये एक करवट लेटा दें, उसे चोटिल होने से बचायें और इस बात का ध्यान रखें कि वह सामान्य रूप से सांस ले पाये। कुछ लोग पीड़ित को जूता सूंघाने का प्रयास करते हैं जबकि इससे कुछ भी नहीं होता यह एक भ्रांति मात्र है, अपितु इससे पीड़ित के मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव पड़ता है। साथ ही पीड़ित अपमान भी महसूस करता है। ऐसी हरकतें करके ही हम पीड़ित को एहसास कराते हैं कि वह सामान्य नहीं है एवं हमसे अलग है जिससे पीड़ित अपने आपको अकेला एवं तिरष्कृत समझने लगता है जो पीड़ित के जीवन के लिये लाभप्रद नहीं है। आज के वैज्ञानिक दौर में भी जहां हम इण्टरनेट, ईमेल, वाट्सऐप जैसी सुविधाओं से 24 घण्टे जुड़े हैं। फिर भी हम अपना ज्ञान इन मुद्दों सहित अन्य पर अंधविश्वासों को प्राथमिकता देने लगते हैं जबकि हमें सिर्फ पीड़ित के साथ अच्छा एवं सम्मानजनक व्यवहार करना चाहिये एवं पीड़ित को अपने समाज का सक्रिय सदस्य समझना चाहिये जिससे पीड़ित भी अपने को गौरवान्वित महसूस करे। साथ ही उसके उपचार में यह सहायक सिद्ध होगा। अतः मेरा सभी सामाजिक एवं सम्मानित सदस्यों से अनुरोध है कि किसी भी भ्रांतियों पर भरोसा न करें एवं अपने ज्ञान का सदुपयोग

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