मुहर्रम में मजलिसें देती हैं इंसानियत का पैगाम |-- एस एम् मासूम
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सोशल मीडिया से जुड़े एस एम् मासूम को मुहर्रम में मजलिसें भी पढ़ा करते हैं उन्होंने इस वर्ष इमामबाड़ा बड़े इमाम में पांच दिन मजलिसें पढ़ी और इंसानियत का पैगाम दिया |
हर्रम का चाँद होते ही पिछले १४०० सालो से दुनिया भाई के लोग कर्बला में ज़ुल्म का शिकार हुए हजरत मुहम्मद (स.अ.व) ने नवासे हुसैन का ग़म मनाते हैं और दुनिया को यह बताते हैं हुसैन को मानने वाला कभी ज़ुल्म का और ज़ालिम का साथ नहीं देता|
मुहर्रम में होने वाले यह मजलिसें पैगाम ऐ इन्सनियात देती हैं और मौक़ा मुझे मिल जाए अमन का पैगाम देने का तो कहाँ मैं चूकने वाला|
इस साल जौनपुर में ११ मजलिसें पढ़ीं और कोशिश की के सारे दुनिया के इंसानों को यह बता सकूँ की इंसानियत किसी कहते हैं और कैसे कर्बला ने दिया पैगाम इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं ,अगर कोई खुद को मुसलमान कहे और ज़ुल्म करे इंसानों पे तो ना कुरान मुसलमान मानती है और न इस्लाम को हम् तक पहुंचाने वाले हजरत मुहम्मद (स.अ.व) और ना ही उनका घराना जो कर्बला में इसी वजह से शहीद किया गया की वो इस्लाम इंसानियत का पैगाम का पैगाम लोगों को दिया करते है|
आज विश्व का हर इंसान इमाम हुसैन जैसी महान शक्सियत को अपने अपने तरीके से श्रधांजलि पेश कर रहा है|