इमाम हुसैन को श्रधांजलि अर्पित करने आज होगा इस्लाम के चौक का ऐतिहासक चेहल्लुम |


जौनपुर| बाज़ार भुआ इलाके में इस्लाम के चौक पे आज इमाम हुसैन (अ) का चेहल्लुम मनाया जायगा जो पूर्वांचल इलाके का सबसे मशहूर चेहल्लुम है | इसमें आस पास के इलाके से दूर दूर से लोग इमाम हुसैन (अ) की याद में   आते हैं | यह चेहल्लुम इस्लामी तारिख के अनुसार १८ सफ़र को मनाया जाता है और यहाँ लोगों की मन्नत जो भी अल्लाह से मांगी जाय ज़रूर पूरी हुआ करती है और इस मजमे में केवल मुस्लिम ही नहीं दूर दूर से हिन्दू भाई भी आते हैं अपनी मुरादों को ले के |

इस चेहल्लुम का इतिहास बहुत पुराना है और एक चमत्कार से जुडा हुआ है | सोशल मीडिया से जुड़े और जौनपुर के इतिहास को सामने लाने वाले सय्यद मोहम्मद मासूम जी  ने बताया की इस  इस्लाम के चौक का चेहल्लुम एक चमत्कार से जुडा हुआ है | एक थे शेख मोहम्मद इस्लाम जिनके नाम पे ही बाज़ार भुआ मोहल्ले का इमामबाड़ा है जहाँ से चेहल्लुम का जुलुस निकलता है  | शेख इस्लाम  १० मुहर्रम की  शाम  एक ताजिया रखा करते थे लेकिन एक साल काजी मोहम्मद जमिउल्लाह के बेटे  मुल्ला खालिलुल्लाह काजी जौनपुर ने इनको ग़लती से झगडे फसाद के डर से क़ैद कर लिया तो यह बहुत परेशान हुये की अब ताजिया कैसे  रखेंगे ? उनकी बीवी ने १० मुहर्रम को ताजिया रख तो दिया लेकिन दफन आशूर के रोज़ नहीं किया और नीयत कर ली  के जब उनके पति आज़ाद हो के आयेंगे उस दिन ताजिया दफ़न करेंगे |

उनकी मन्नत पूरी ऐसे  हुयी की इस्लामी तारिख के  १९ सफ़र को शेख मोहम्मद इस्लाम पे जब की वोह दुआ मैं मसरूफ थे की अचानक उनको  नींद आ गयी और उनको एक आवाज़ सुनाई दी " जाओ तुम आज़ाद हो". उनकी यही बशारत उनकी बीवी  ने भी अपने घर मैं  सुनी और शेख इस्लाम के भाई को बताया| शेख मोहम्मद इस्लाम जब होश मैं आये तो देखा उनकी बेडियाँ खुली हैं और क़ैद खाने का दरवाज़ा भी खुला है. जब वो बाहर निकल रहे थे तो पहरेदारों ने उनको रोका और काजी को खबर दी | काजी ने उनको नहीं रोका और आज़ाद कर दिया| शेख मोहम्मद इस्लाम बस वहीं से लोगों को खबर देते हुए घर आये |जब मोमिनीन जमा हो गए , मजलिस की और वोह ताजिया जो शब् ऐ आशूर चौक पे रखा गया था, वोह १९ सफ़र को उठा |


काजी जिसने मुहम्मद इस्लाम को क़ैद किया था आश्चर्यचकित रह गया यह देख के और उसे अपनी ग़लती का एहसास हुआ | उन काजी जमील उल्लाह साहब जो काजी जौनपुर के भाई थे उन्होंने ने यह ख्वाहिश ज़ाहिर की के, यह जुलूस उनके दरवाज़े से गुज़रे इसलिये ताजिया उठा तो चौक मुहम्मद इस्लाम से उनके घर के सामने से होता हुआ सदर इमामबाड़े तक गया |

आज भी यह चमत्कार से जुडा ऐतिहासिक चेहल्लुम हर साल होता है जिसमे लाखों हिन्दू और मुसलमान  इमाम हुसैन और उनकी बहन की कुर्बानी को याद करते हैं और श्रधांजलि अर्पित करते हैं और उनकी मन्नत पूरी होती है  |

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