‘गो’ का अर्थ इन्द्रियां और ‘पी’ का अर्थ है पीनाः डा. द्विवेदी
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जौनपुर।
‘गो’ का अर्थ इन्द्रियां और ‘पी’ का अर्थ है पीना। अर्थात प्रत्येक
इन्द्रिय से कृष्ण रस का पान करें जिसका नाम गोपी है। चलते-फिरते,
उठते-बैठते प्रत्येक परिस्थिति में जो कृष्ण रस का आनन्द ले, पान करें,
उसका नाम गोपी है। उक्त विचार आचार्य डा. रजनीकान्त द्विवेदी ने रास के
प्रसंग पर अपना व्याख्यान देते हुये श्रीमद्भागवत कथा के छठवें दिन व्यक्त
किया। उन्होंने कहा कि शरद पूर्णिमा की रात्रि है। मेरे कृष्ण ने मुरली की
धुन जैसे ही छेड़ी, यमुना के तट पर बासुका खिल उठी। चन्द्रमा प्रमुदित हो
रहा है। इस अवसर पर हरदेव सिंह, रत्नेष सिंह, ओम कुमारी, डा. विमला सिंह,
महन्थ महेन्द्र दास त्यागी, महन्थ भरत दास, दीन दयाल, संजय पाठक, रवि
मिंगलानी, विभूति गुप्ता, नीलिमा गुप्ता सहित तमाम लोग उपस्थित रहे। आयोजन
को सफल बनाने मतें समिति के अध्यक्ष शषांक सिंह रानू, सन्तोष गुप्ता, दिनेष
प्रकाष कपूर, षिवषंकर साहू, आषीष यादव, नीरज श्रीवास्तव, अनीष गुप्ता,
निषाकान्त द्विवेदी, मुरारी गुप्ता का सहयोग सराहनीय है।

