हजरत अली की शहादत से हम सब में आतंकवाद से लड़ने का जज्बा पैदा होता है: मौलाना महफुजुल हसन
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जौनपुर।
रमजान के तीसरे जुमे में जनपद की मस्जिदें नमाजियों से छलक रही थी। भीषण
गर्मी के बावजूद अल्लाह के सच्चे बन्दे इबादत में मसरूफ थे। इसी क्रम में
शिया जामा मस्जिद कसेरी बाजार नवाब बाग में माह-ए-रमजान के तीसरे जुमे के
खुत्बे के संबोधन में इमाम-ए-जुमा मौलाना महफुजुल हसन खां ने कहा कि गर्मी
के रोजे मौला अली (अ.स.) को बहुत पसंद थे। मौला अली (अ.स.) फरमाते थे कि
गर्मी में प्यास की तपिश से रोजा रखकर मुसलमान अल्लाह से ज्यादा करीब हो
जाता है। उसमें सहनशीलता बढ़ जाती है। उन्होंने हजरत अली की शहादत का जिक्र
करते हुए कहा कि हजरत अली (अ.स.) की शहादत से हम सब में आतंकवाद से लड़ने का
जज्बा पैदा होता है। हजरत अली (अ.स.) की शहादत 14 सौ साल पहले मज़हबी
आतंकवाद का नतीजा था। उन्होंने कहा कि हजरत अली (अ.स.) काबा मक्का में 13
रजब 30 आमुल फील 800 ई. में पैदा हुए और रमजान 40 हिजरी को मस्जिदे कूफा
इराक में शहादत हुई। इस तरह हजरत अली की जिन्दगी का सफर अल्लाह के घर से
अल्लाह के घर तक रहा।