मौला अली की शहादत पर निकला जुलूस , रोज़ेदारों ने किया मातम
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जौनपुर
। शिया समुदाय के पहले इमाम तथा मुसलमानों के चौथे खलीफा हजरत अली की
शहादत के मौके पर बुधवार की रात्रि से ही मस्जिदों और इमामबाड़ों में
मजलिसों का दौर शुरू हो गया । रोज़ेदार अपने इमाम की शहादत पर आंसुओ का
नज़राना पेश करते देखे गए । बेगमगंज सदर इमामबाड़ा में मौला अली की शहादत पर
इफ़्तार के बाद मजलिस हुयी जिसके बाद ताबूत का विशाल जुलूस निकला । मजलिस को
खिताब करते हुए मौलाना कैसर अब्बास ने कहा की इमाम अली का जन्म जहां
पवित्र काबे में हुआ, वहीं शहादत मस्जिद में नमाज के दौरान हुई। शासन रहते
हुए भी इनका जीवन सादगी से भरा रहा । रात के अंधेरे में पीठ पर रोटियां
लादकर गरीब एवं मोहताज लोगों की मदद करते थे। अंत मे मौलाना ने इमाम अली पर
पड़े मसाएब का ज़िक्र किया तो लोग चीखे मारकर रोने लगे । जिसके बाद ताबूत और
अलम का जुलूस अंजुमन शमशीरे हैदरी ने निकालकर नौहा व मातम किया ।
जुलूस
के दरमयान तकरीर करते हुए ज़ाकिरे अहलेबैत डॉ कमर अब्बास ने कहा कि
पैगम्बरे इस्लाम हजरत मुहम्मद साहब के चचेरे भाई व दामाद हजरत अली का जन्म
अरबी महीना रजब की तेरह तारीख को काबे के अदंर हुआ, जहां आज दुनिया भर के
मुसलमान हज करने जाते हैं । और शहादत नमाज़ के हालत में मस्जिदे कूफ़ा में
हुई ।
आज मुसलमान हजरत अली को चौथा खलीफा जबकि शिया मुसलमान उन्हें अपना पहला इमाम मानते हैं।
शिया
धर्मगुरु मौलाना सफदर हुसैन ज़ैदी ने नमाज़ अदा कराने के बाद रोज़ेदारों को
खिताब करते हुए कहा कि रमजान की 19 वीं तारीख को कूफा की मस्जिद में नमाज
पढ़ते हुए इब्ने मुल्जिम नामक ज़ालिम ने ठीक सजदे की हालत में मौला अली पर
जहर भरी तलवार से वार कर दिया। जख्मी हालत में भी उन्होंने नमाज का पूरा
ख्याल रखा। दो दिन बाद 21 वीं रमजान को उनकी शहादत हो गई।
इस
मौके पर मौलाना फज़ले मुमताज़ , मौलाना हैदर मेहदी , मीर बहादुर अली , मंज़र
हुसैन , चुनमुन भाई , नौशाद , हसनु मुजावर आदि के साथ हज़ारो की संख्या में
लोग मौजूद रहे ।