अंग्रेजों ने रखी थी विधानसभा की नींव
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यूपी असेंबली में गुरुवार को एक्सप्लोसिव मिलने के बाद
सुरक्षा पर सवाल खड़े होने लगे हैं। योगी ने सदन में ही कहा कि इस मामले की
NIA से जांच होनी चाहिए। सीनियर
जर्नलिस्ट से बातचीत में जाना कि यूपी असेंबली का इतिहास 97 साल
पुराना है। इस असेंबली में 2 डिप्टी सीएम, 1 दजर्न कैबिनेट मंत्री,
विधानसभा अध्यक्ष व लगभग 70 डिपार्टमेंट्स के प्रमुखों मुख्य कार्यालय के
साथ ही 150 सालों का इतिहास है।
503 चुने हुए मेंबर्स के साथ 70 डिपार्टमेंट्स के प्रमुख बैठते हैं यहां...
503 चुने हुए मेंबर्स के साथ 70 डिपार्टमेंट्स के प्रमुख बैठते हैं यहां...
सीनियर जर्नलिस्ट के. विक्रम राव ने बताया, ''यूपी असेंबली का इतिहास
काफी पुराना है। विधानसभा में कुल 503 चुने हुए मेंबर्स के साथ 70
डिपार्टमेंट्स के प्रमुख बैठते हैं।''
असेंबली के अंदर दो भागों में सदन चलता है, जिसमें एक विधानसभा और
दूसरा विधान परिषद होता है। विधानसभा के 403 तो विधानपरिषद के 100 मेंबर्स
हैं।''
विधानसभा में 12 गेट हैं, जिनमें से ये फिक्स है कि कौन, किस गेट से एंट्री और एग्जिट करेगा। सिक्युरिटी एजेंसी के हिसाब से किसी भी वक्त बदलाव किया जा सकता है।''
विधानसभा में 12 गेट हैं, जिनमें से ये फिक्स है कि कौन, किस गेट से एंट्री और एग्जिट करेगा। सिक्युरिटी एजेंसी के हिसाब से किसी भी वक्त बदलाव किया जा सकता है।''
डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा और केशव
मौर्य के साथ की करीब 1 दर्जन कैबिनेट मंत्री का कार्यालय यहीं है।यूपी के
पीडब्ल्यूडी, इरिगेशन, ट्रांसपोर्ट, एजुकेशन जैसे डिपार्टमेंट्स का मुख्य
संचालन यहीं से होता है।''
'विधानसभा में सत्र के दौरान बजट पेश करने के साथ जनता से जुड़ी प्रॉब्लम
पर चर्चा होती है। नए रूल्स को बनाया जाना, उनके संशोधन से जुड़ी चर्चा भी
सदन में ही होती है।''
इसी तरह विधान परिषद में भी विभिन्न
क्षेत्रों से जुड़े सदस्य विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की जाती है। इसके बाद
वहां पर अन्य विभागीय मंत्री अपने विभागीय अधिकारियों से मीटिंग व योजनाओं
र्चचा होती है।''
अंग्रेजों ने बनाया पहला सचिवालय आगरा फिर इलाहाबाद में, लखनऊ बनीं राजधानीं
राव
ने बताया, ''यहां का इतिहास काफी पुराना है। अवध के नवाब वजीर द्वारा अपनी
सूबेदारी का एक बड़ा क्षेत्र ईस्ट इंडिया कंपनी को दिया। जिसमें पश्चिम
पूर्व और मध्य यूपी के कई क्षेत्र शामिल थे। इसमें खासतौर पर आगरा, बरेली,
फतेहपुर, कानपुर, फैजाबाद आदि क्षेत्र रहे।
'कंपनी ने साल
1801 में लेफ्टिनेन्ट गवर्नर की प्रेसिडेंटशिप में इस क्षेत्र के प्रशासन
कामों को करने के लिए बरेली मुख्यालय पर एक बोर्ड बनाया। उस समय एक
सेक्रेटरी और कुछ क्लर्क को ही काम पर रखा गया।
1834 में कंपनी
के अधिकार और कार्य क्षेत्र बढ़ने के बाद कुछ समय के लिए इलाहाबाद को
मुख्यालय बनाया गया, लेकिन 1836 में नार्थ वेस्टर्न प्राविन्सेज के बनने पर
सचिवालय मुख्यालय को आगरा में शिफ्ट कर दिया गया।
जनवरी
1858 में लार्ड कैंनिग द्वारा शासन का मुख्यालय आगरा से दोबारा इलाहाबाद
लाया गया। फिर अवध क्षेत्र को भी अंग्रेजों ने अपने कार्यक्षेत्र में
मिलाते हुए, मार्च 1902 में पूरे सूबे का एक नया नाम ''यूनाइटेड प्रोविंसेज़
आॅफ आगरा एंड अवध'' कर दिया गया।''
राज्य सचिवालय को पहली
बार 1883 में दोबारा से संरचना की गई, जिसमें मुख्य सचिव की सहायता के लिये
एक वित्त और दूसरे न्याय सचिव की अप्वाइंटमेंट की गई। इसके आलावा चीफ
इंजीनियर, सिंचाई, और बिल्डिंग-रोड , सचिवालय में जोड़ा गया।''
'गवर्मेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1911 के अधीन जनवरी, 1921 में जब स्थानीय शासन
के अधीन बहुत सारे नये-नये विषय ट्रान्सफर हुए तो राज्य सचिवालय का दोबारा
राज्यमुख्यालय की संरचना को बनाया गया।''
1920 में बना विधानसभा
राव ने बताया, ''यूपी विधानसभा को 1920 में अंग्रेजों ने बनवाया था,
लेकिन उस वक्त यहां सचिवालय का काम नहीं होता था। इसके बाद 1921 में राज्य
में लेजिस्लेटिव काउंसिल की स्थापना के बाद लखनऊ में ही ज्यादातर गवर्नर
रहने लगे। अंग्रेजी गर्वनरों की कार्य-सुविधा को देखते हुए सचिवालय के
डिपार्टमेंट्स को इलाहाबाद से लखनऊ लाया जाने लगा।
साल 1932 में अप्वाइंट किए गए पन्ना लाल-मैकलेयाड कमेटी की
रिकमेंडेशन पर 1935 में सभी डिपार्टमेंट्स को लखनऊ लाया गया। इसके बाद
लखनऊ को राजधानी बनाया गया और विधानसभा में काम की शुरुआत हुई।
साभार - DainikBhaskar.com