कागजों पर दे रहे जैविक खेती को बढ़ावा
https://www.shirazehind.com/2017/07/blog-post_296.html
जौनपुर। सरकारी स्तर पर जैविक खेती को बढ़ावा देने के प्रयास में तेजी न होने के कारण जिले में मुश्किल से 20 हेक्टेयर भूमि पर ही जैविक खेती की जा रही है, वह भी दो दर्जन से कम ऐसे किसान है जो सक्षम और सामथ्र्यवान है अधिक खर्च उठाकर अपने परिवार व चन्द अन्य लोगों के लिए ही उत्पादन करते है। ऐसीे हालत में जैविक खेती से उत्पादन की बिक्री के लिए जिले में आज तक भी कोई बाजार नहीं बन पाया है। आधुनिक खेती के लिए जाने जाने वाले प्रदेश भर में पिछले काफी समय से जैविक खेती को बढ़ावा देने का प्रयास हो रहा है। नाम मात्र के किसान अपने स्तर पर घरेलू उपयोग या लाभ के लिए जमीन के कुछ हिस्से पर जैविक खेती कर रहे हैं। जनपद में सलखापुर के उमानाथ यादव तथा सिकरारा के अशोक यादव सहित 20 किसान ही ऐसे किसान हैं जो जैविक खेती कर रहे हैं । मछली शहर विकास खण्ड के चैलहा गांव निवासी अनिल मौर्य ने बताया कि जैविक खेती से ही फल उत्पादन करते हैं, जबकि किसान सब्जी उगाते हैं। इनका कहना है कि वे खेती करने के साथ ही अपने आप ही फसल बेचते हैं, क्योंकि जिले में ऐसा कोई स्थान या मंडी नहीं है जहां वे अपनी फसल बेच सकें। इसका एक कारण यह भी है कि यहां एक-आध को छोड़ किसी किसान के पास कोई प्रमाणपत्र नहीं है, न ही ऐसी कोई एजेंसी है जो फसल को प्रमाणित करती है। इसका बाजार काफी विस्तृत है और आम आदमी जैविक खाद की फसल ढूंढता हैं। रासायनिक खाद के मुकाबले जैविक खाद से तैयार फसल की कीमत बाजार में कहीं अधिक मिल जाती है। जैविक फसल के लिए यदि शासन स्तर पर कोई योजना आती भी है तो आम किसानों का उसका पता नही चल पाता। किसान अपने आप ही जैविक खेती की ओर प्रेरित हो रहे हैं। जिला उद्यान अधिकारी हरिशंकर राम ने बताया कि हैं जैविक खेती में उत्पादकता कम रहने के कारण किसानों का इसकी ओर रुझान कम हैं, कुछ ही किसान अपने खाने के लिए गेहूं आदि की खेती कर रहे हैं, यही कारण है कि जनपद में जैविक खेती को बढ़ावा नहीं मिल पा रहा है। उन्होने बताया कि जैविक खेती में पहले और दूसरे साल उत्पादन कम होता है उसके बाद बढ़ता है। अधिक उत्पादन के लिए भयंकर मात्रा में अधिकतर किसान रायायनिक उर्वरक डालकर खेती को अंजाम देते है जिससे अनेक प्रकार की बीमारियांे में बढ़ोत्तरी हो रही है।