लिंग रूप में हो जाता ब्रह्मांड का पूजन
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जौनपुर। शिव शंभु आदि और अंत के देवता है और इनका न कोई स्वरूप है और न ही आकार वे निराकार हैं। आदि और अंत न होने से लिंग को शिव का निराकार रूप माना जाता है, जबकि उनके साकार रूप में उन्हें भगवान शंकर मानकर पूजा जाता है। केवल शिव ही निराकार लिंग के रूप में पूजे जाते हैं। लिंग रूप में समस्त ब्रह्मांड का पूजन हो जाता है क्योंकि वे ही समस्त जगत के मूल कारण माने गए हैं। इसलिए शिव मूर्ति और लिंग दोनों रूपों में पूजे जाते हैं। शिव का अर्थ है परम कल्याणकारी और लिंग का अर्थ है दृ ‘सृजन’. शिव के वास्तविक स्वरूप से अवगत होकर जाग्रत शिवलिंग का अर्थ होता है प्रमाण। वेदों और वेदान्त में लिंग शब्द सूक्ष्म शरीर के लिए आता है। यह सूक्ष्म शरीर 17 तत्वों से बना होता है. मन, बुद्धि, पांच ज्ञानेन्द्रियां, पांच कर्मेन्द्रियां और पांच वायु. वायु पुराण के अनुसार प्रलयकाल में समस्त सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है और पुनरू सृष्टिकाल में जिससे प्रकट होती है उसे लिंग कहते हैं। इस प्रकार विश्व की संपूर्ण ऊर्जा ही लिंग की प्रतीक है। श्री शिवमहापुराण के सृष्टिखंड अध्याय 12 श्लोक 82 से 86 में ब्रह्मा के पुत्र सनत्कुमार वेदव्यास को उपदेश देते हुए कहते है कि हर गृहस्थ को देहधारी सद्गुरू से दीक्षा लेकर पंचदेवों (श्री गणेश, सूर्य, विष्णु, दुर्गा, शंकर) की प्रतिमाओं में नित्य पूजन करना चाहिए क्योंकि शिव ही सबके मूल है, मूल (शिव) को सींचने से सभी देवता तृत्प हो जाते है परन्तु सभी देवताओं को तृप्त करने पर भी प्रभु शिव की तृप्ति नहीं होती। इस बात का प्रमाण श्री शिवमहापुराण सृष्टिखंड में मिलता है इस पुराण के अनुसार सृष्टि के पालनकर्ता विष्णु ने एक बार, सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा के साथ निर्गुण-निराकार-अजन्मा ब्रह्म(शिव) से प्रार्थना कि ‘आप कैसे प्रसन्न होते है ’प्रभु शिव बोले, मुझे प्रसन्न करने के लिए शिवलिंग का पूजन करो, जब जब किसी प्रकार का संकट या दुरूख हो तो शिवलिंग का पूजन करने से समस्त दुरूखों का नाश हो जाता है, जब देवर्षि नारद ने श्री विष्णु को श्राप दिया और बाद में पश्चाताप किया तब श्री विष्णु ने नारदजी को पश्चाताप के लिए शिवलिंग का पूजन, शिवभक्तों का सत्कार, नित्य शिवशत नाम का जाप आदि क्रियाएं बताई।