25 साल बाद एक बार फिर यूपी में 'राम लहर' लाने की तैयारी, लिखी जा रही स्क्रिप्ट
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लखनऊ। लगभग दो दशकों के बाद एक बार फिर से सूबे में राम लहर बनाने के तैयारी चल रही है। भाजपा को एक बार फिर राम लहर की सवारी करके सत्ता हासिल करने का रास्ता दिख रहा है। दिसंबर 1992 के बाद एक बार फिर भाजपा अयोध्या में राम मंदिर का मुद्दा राजनीतिक तौर पर भुनाने की कवायद में जुट गयी है।
25 साल पहले और आज के वक्त में जो फर्क है वो सिर्फ इतना है कि तब भाजपा देश की राजनीति में अपने अस्तित्व को विस्तार देने की कवायद कर रही थी और इसी मुद्दे ने भाजपा को यूपी की सरकार तक पहुंचा दिया था। फर्क ये भी है कि तब केंद्र में कांग्रेसी सरकार थी और अब भाजपा की सरकार। लेकिन जो बात तब और अब एक जैसी है वो है तब हिन्दू समर्थक कल्याण सिंह सूबे में थे और हिन्दू सम्राट लाल कृष्ण अडवाणी देश की राजनीति में थे।
आज यूपी सरकार के मुखिया हिंदुत्व के अलमबरदार योगी आदित्यनाथ हैं और केंद्र में नरेंद्र मोदी हैं। बीते कुछ दिनों की घटनाओं को देखते हुए यह तो साफ़ समझ में आ रहा है कि भाजपा एक बार फिर अपनी सियासत में उछाल लाने के लिए राम लहर की सवारी की कवायद शुरू कर चुकी है। सीबीआई कोर्ट में 25 साल पहले की पटकथा के सारे किरदार जब कोर्ट में हाजिर हुए तब भले ही उन्होंने कोर्ट में अपने को निर्दोष बताया। मगर अदालत के बाहर लग रहे "राम लाला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनायेंगे" के नारों ने साफ़ कर दिया था कि पार्टी अब कोर्ट में हाजिरी को हिंदुत्व की राह में शहादत की तरह पेश करने में कोई कसर नहीं छोड़ने वाली।
सीबीआई कोर्ट में आडवाणी, जोशी, उमा भारती सहित अन्य कई बड़े नेताओं के हाजिर होने के ठीक दूसरे दिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अयोध्या में राम के दर्शन करने पहुंच गए। योगी के वहां पहुचने के वक्त "जय श्रीराम" के नारे लगे। डेढ़ दशक बाद भाजपा का कोई मुख्यमंत्री अयोध्या में रामलला के दर्शन करने गया है। बीते 25 सालों में भाजपा की कई बार इस बात के लिए भी आलोचना होती रही है कि सत्ता में आने के बाद वह राम मंदिर के मुद्दे से किनारा कर लेती है, मगर 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद से ही सुब्रमण्यम स्वामी सहित कई भाजपा सांसद और नेता अयोध्या में न सिर्फ सक्रिय रहे बल्कि इस मुद्दे पर लगातार बयान भी देते रहे।
सूबे में भाजपा की सरकार बनने के बाद इन बयानों का सिलसिला और तेज हो गया। इन बयानों में कई बार धमकियों के स्वर भी उठते रहे तो कई बार आपसी सहमति का भी आह्वान किया जाता रहा। भाजपा प्रवक्ता मनीष शुक्ल के मुताबिक भाजपा के लिए राम मंदिर आस्था का विषय है। इस पर राजनीति नहीं होनी चाहिए, लेकिन उसपर इस मसले पर राजनीति के आरोप भी लगते रहे। गौरतलब है कि अभी भी सुप्रीम कोर्ट में है और बाबरी विध्वंस के मुकदमे में एक बार फिर सुनवाई शुरू हो गयी है, जो रोजाना होगी। लेकिन भाजपा और हिंदूवादी संगठन कई बार यह भी कहते रहे हैं कि इस मसले को कोर्ट हल नहीं कर सकती।
वहीं, कांग्रेस प्रवक्ता शैलेन्द्र तिवारी के मुताबिक भाजपा के पास 2019 में जनता को दिखने के लिए कुछ नहीं। इसलिए वो इस तरह के मुद्दे उठाकर एक बार फिर से जनता को गुमराह करने का प्रयास कर रही है। लेकिन इस बार जनता उनके झांसे में आने वाली नहीं। अब सुप्रीम कोर्ट में जिस तरह से इस मसले पर डेली सुनावाई होगे उससे भी इस मुद्दे पर माहौल बनाने में मदद मिलेगी।राम मंदिर मुद्दा सियासी फिजाओं में लगातार दिखाई देगा
ताजा गतिविधियों से एक बात तो तय है कि 2019 के चुनावों तक अब यह मुद्दा सियासी फिजाओं में लगातार दिखाई देता रहेगा। इस बीच चर्चाओं के बहाने 6 दिसंबर 92 का जिक्र भी आता रहेगा। जो 92 के बाद पैदा होने वाली पीढ़ी को भी मंदिर आन्दोलन से जोड़ेगा। जन्मभूमि विवाद की सुनवाई एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में 11 अगस्त से रोजाना होगी। तीन जजों की बेंच रोजाना दोपहर 2 बजे से इस मामले पर जिरह करेगी। सुप्रीम कोर्ट की बेवसाइट में इसको लेकर विशेष नोटिस जारी है।
बता दें, सुप्रीम कोर्ट ने इसे धर्म और आस्था से जुड़ा मामला बताते हुए पक्षकारों से आपसी बातचीत के जरिए हल खोजने को कहा था। यहां तक कि कोर्ट ने जरूरत पड़ने पर मध्यस्थता की पेशकश भी की थी। हालांकि पक्षकार इसका समाधान अभी तक नहीं कर पाए। इसके मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई का फैसला किया है।