माॅं शारदा का दर्शन करने से पूर्ण होती है मनोकामनाएं

जौनपुर। प्राचीन शास्त्रों के अनुसार संसार के कल्याण के लिए भगवान भोलेनाथ, माँ पार्वती के साथ कैलाश पर्वत पर विराजमान थे उसी समय देवताओं के द्वारा पूछे गये प्रश्न के जवाब में उन्होंने उक्त बाते कही थी।
    भगवान शिव ने कहा था कि द्वापर के अंत में और कलयुग के आरम्भ में कलह का युग होगा। जिससे लोगों की धन सम्पत्ति, सुख-स्मृद्धि, शांति छीनने लगेगी लेकिन जो भी व्यक्ति आदिशक्ति देवी पार्वती की प्रतिरूप देवी, देवी शारदा के शरण में आ जाएगा उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होने के साथ उसके जीवन में सुख समृद्धि धन-सम्पदा विद्या, आरोग्य शांति सौदर्य सबकुछ प्राप्त होगा।
जिले में मैहर देवी मन्दिर की स्थापना भी ऐस ही घटनाक्रम के साथ हुई थी। जब जिले के ही निवासी राधेश्याम गुप्त के दोनो कानों के सुनने की शक्ति समाप्त हो गयी। उस समय के चिकित्सकों द्वारा काफी प्रयास के बाद भी उनके कानों की शक्ति वापस नही हुई पूर्वी उत्तर प्रदेश के एतिहासिक शहर जौनपुर के देवी आस्था मां शारदा के अद्भूत का दर्शन से मिले ज्ञान के अनुसार मां मैहर देवी की शरण ली और दर्शन के लिए सतना मध्यप्रदेश पहंुच गये जहां उन्होने मां के चरणों में अपनी अर्जी डाल दी और ही समय में उनके दोनो कानों की शक्ति पुनः वापस आ गयी और वायदे के मुताबिक राधेश्याम ने नगर के दक्षिणी छोर स्थित मोहल्लहा परमानतपुर में मां मैहर देवी के मंदिर का निर्माण कार्य शुरू किया लेकिन इसी समय उन्हे बार-बार स्वप्न में मां के दर्शन होने लेगे जिसमें मां उन्हे आभास कराती थी कि मैं पहाड़ों की उंचाई पर रहने वाली और तू मुुझे जमीन पर स्थापित करा रहा है। जिस पर इन्होंने जनपद में पहाड़ न होने ही बात कही तो मां ने दूसरे तल पर स्वयं के स्थापित होने की मन्नत स्वीकार कर ली और कुछ ही दिनांे में एक भव्य मैंहर देवी मंदिर का निर्माण हो गया जिसके बारे में आज भी यहा मान्यता है कि मध्यप्रदेश के सतना स्थित मैंहर मां के दर्शन का जो पुण्य मिलता है वही जनपद में भी प्राप्त होता है। प्रत्येक सोमवार एवं शुक्रवार को हजारांे की संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ पहुंचती है। नवरात्र के नौ दिनों में यहां श्रद्धालुओं का अपार जमावड़ा होता है। हालांकि जिले की यह अकेली शक्तिपीठ है जहां दर्शन के लिए अपने वालो की बहराम भी करना पड़ता है। ऐसा इसलिए कि मां ने स्वयं आने वाले दर्शनाथियों को बहराम का आदेश दिया था। मैंहर की स्थापना के बाद से ही कई बार ऐसे चमत्कार भी हो चुके है जिससे लोगों की मनोकामनाएं चैखट पर शीश झुकाते ही पूरी हुई। आज पूर्वांचल में इस शक्तिपीठ की न सिर्फ ख्याति है बल्कि पूर्वांचल व अन्य जिलों के दशनार्थी यहां अपनी मनोकामनाओं के जिले आते रहते है। यह ऐसी शाक्तिपीठ है जहां संख्या में दर्शनार्थी पहंुचते है और दर्शन पान के लिए घण्टों लाइनों में प्रतीक्षारत रहते है। इतना ही नहीं स्थापना काल से ही लोग सात जन्मों के बंधन में बंधने के लिए अथवा बंधने के बाद यहां मत्था टेकने जरूर पहंुचते है।

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