कायस्थों के इष्टदेव चित्रगुप्त के जन्म की रोचक कथा, इस तरह करे पूंजन

चित्रगुप्त जयंती का त्योहार कायस्थ वर्ग में अधिक प्रचलित है। क्योंकि चित्रगुप्त जी को वह अपना ईष्ट देवता मनाते हैं। दरअसल भगवान चित्रगुप्त का जन्म ब्रह्मा के अंश से हुआ है। वह यमराज के सहयोगी हैं। जो जीव जगत में मौजूद सभी का लेखा-जोखा रखते हैं।
चित्रगुप्त के जन्म की कथा काफी रोचक है। जब यमराज ने अपने सहयोगी की मांग की, तो ब्रह्मा ध्यान में चले गए। उनकी एक हजार वर्ष की तपस्या के बाद एक पुरूष उत्पन्न हुआ। इस पुरूष का जन्म ब्रह्मा जी की काया से हुआ था। इसलिए ये कायस्थ कहलाये और इनका नाम चित्रगुप्त पड़ा।

ऐसा है स्वरूप
भगवान चित्रगुप्त जी के हाथों में कर्म की किताब, कलम, दवात है। ये कुशल लेखक हैं और इनकी लेखनी से जीवों को उनके कर्मों के अनुसार न्याय मिलता है। कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि को भगवान चित्रगुप्त की पूजा का विधान है। यमराज और चित्रगुप्त की पूजा एवं उनसे अपने बुरे कर्मों के लिए क्षमा मांगने से नरक का फल भोगना नहीं पड़ता है। इस संदर्भ में एक कथा यहां उल्लेखनीय है।
भगवान चित्रगुप्त की पूजन विधि
- सबसे पहले पूजा स्थान को साफ कर एक चौकी बनाएं। उस पर एक कपड़ा विछा कर चित्रगुप्त का चित्र रखें।
- दीपक जला कर गणपति जी को चंदन, हल्दी,रोली अक्षत, दूब ,पुष्प व धूप अर्पित कर पूजा अर्चना करें।
- फल ,मिठाई और विशेष रूप से इस दिन के लिए बनाया गया पंचामृत (दूध ,घी कुचला अदरक ,गुड़ और गंगाजल )और पान सुपारी का भोग लगाएं।
- परिवार के सभी सदस्य अपनी किताब, कलम,दवात आदि की पूजा करें और चित्रगुप्त जी के सामने रखें।
- सभी सदस्य एक सफेद कागज पर चावल का आटा, हल्दी,घी, पानी व रोली से स्वस्तिक बनाएं। उसके नीचे पांच देवी देवतावों के नाम लिखें ,जैसे- श्री गणेश जी सहाय नमः ,श्री चित्रगुप्त जी सहाय नमः, श्री सर्वदेवता सहाय नमः आदि।
- इसके नीचे एक तरफ अपना नाम पता व दिनांक लिखें और दूसरी तरफ अपनी आय व्यय का विवरण दें, इसके साथ ही अगले साल के लिए आवश्यक धन हेतु निवेदन करें। अब अपने हस्ताक्षर करें। और इसे पवित्र नदी में विसर्जित करें।
पद्म पुराण तथा भविष्य पुराण के अनुसार 
, चित्रगुप्त महाराज की दो पत्नियों से बारह संतानें हुई । पहली पत्नी शोभावती से श्रीवास्तव , सिन्हा ,भटनागर, माथुर, सक्सेना ,  तथा दूसरी पत्नी माता नंदिनी से अम्बष्ट , अष्ठाना ,निगम , वाल्मीकि, गौड़, कर्ण , कुलश्रेष्ठ , एवं सुरजद्वाज नामक आठ संतानें पैदा हुईं।
कायस्थों की बारह उपजातियां जब भारत के विभिन्न प्रान्तों में फैलने लगे , तो उन्होंने कुछ स्थानीय नाम अपना लिए। जैसे बिहार के कर्ण कायस्थ, आसाम के बरुआ, उड़ीसा के पटनायक और सैकिया , पश्चिम बंगाल के बोस , बासु, मित्रा , घोष, सेन, सान्याल तथा महाराष्ट्र में प्रभु। कुछ लोग लाल, प्रसाद, दयाल तथा नारायण भी लिखने लगे। इस प्रकार अनेक उपनाम बन गए।

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