नौ बार पकिस्तान की धरती पर भारत का पताका फहराने वाले शायर अंजुम नही रहे

जौनपुर। अपने कलाम के माध्यम से पाकिस्तानी शायरो  को उन्ही की सरजमीं पर नौ बार पटखनी देकर भारत का झण्डा बुलंद करने वाले जौनपुर लाल अतंर राष्ट्रीय शायर अंजुम जौनपुरी आज लम्बी विमारी से संघर्ष करते हुए जिंदगी की जंग हार गए । मरहूम अंजुम ने लिखा है "ये सफर आखिरी शायद जिन्दगी के लम्हात आखिरी" शेर गोई मेरी आदत है, ऐ अंजुम! बदनसीबी ने मेरे फन को उभरने न दिया, मरने के बाद कब्र पर आना तुम जरुर, अंजुम यह कह रहा है कोई बात आखिरी... के अलावा ये दसवी मोहर्रम के दिन शामे गरीबा मजलिस सोराव में अलग पहचान थी। 

नगर के अजमेरी मोहल्ले निवासी मुफ्ती मेंहदी हैदर उर्फ अंजुम शायरी की दुनिया में 1972 में बांदा में आयोजित अखिल भारतीय मुशायरे में अपनी गजल पढ़कर रखा था। उनके शेर कितने गहरे है आप इसी से समझ सकते है कि 'गर्दिश के साये कोई रोये, कोई मुस्कुराए, जाने कितनी निगाहें उठी, जब भी गुजरे वह सर झुकाए.." लोगों के दिलों में उतर गयी। फिर क्या था एक के बाद एक 100 से ज्यादा देश-विदेश के मुशायरों में अपनी शायरी के दम पर न सिर्फ उन्होंने मशहूर शायरों के साथ अपना नाम जोड़ा बल्कि अपने उस्ताद कैफ भोपाली से शायरी की दुनिया की सीख ली। इस दौरान फिराक गोरखपुरी, अली सरदार जाफरी, वामिक जौनपुरी, कुमार बाराबंकी व कैफी आजमी जैसे चोटी के शायरों से उनके संबंध जगजाहिर होने लगे। 1981 में वो पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के कराची में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय मुशायरे में भी शामिल हुए थे जहां उनकी गजल के लोग दीवाने हो गये थे। इस दौरान कई एवार्ड से भी नवाजा गया। उन्होंने करबला के शहीदों पर सैकड़ों नौहे भी लिखे है।

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