शादी के पुराने रस्मो-रिवाज समाप्ति की ओर

जौनपुर। इस समय वैवाहिक कार्यक्रम जोरों पर चल  रहा है  लेकिन  परम्परागत तरीके से होने वाले विवाह की परम्परा में कहीं भी भारतीय संस्कृति की छाप नहीं देखी गयी बल्कि भारतीय रस्मों रिवाजों के सम्बध्द विवाहों में आधुनिकता और दिखावे की होड़ में शादी के पुराने रस्मो-रिवाज विलुप्तता की ओर अग्रसर रहे हैं बदलते परिवेश और आधुनिक फैशन की होड़ में शादी विवाह की परम्पराओं के साथ इनमें आये नये बदलाव के कारण अब दुल्हन की डोलियों के साथ कहारों की अनमोल बोलियों की आवाज नहीं सुनाई दे रही है इनके स्थान पर अब तेज रफ्तार एवं प्रदूषण युक्त गाड़ी और मोटरों का कर्कश आवाजों ने ले लिया है । इतना ही नहीं अब तो शादी विवाह में अपना विशेष महत्व रखने वाले पंडित, नाई तथा कहारों की भी उपेक्षा होने लगी है वर्तमान परिवेश में आधुनिक विवाह का यह आलम है कि ऐसे अवसर पर रेडीमेड व्यवस्था काफी कारगर सिद्ध हो रही है अब कहारों का प्रचलन एक दम समाप्त हो गया है इसी के साथ विवाह के शुभ अवसर पर दूल्हे की पहचान और उसका मुख्य मुख्य वस्त्र जामा जोड़ा भी समाप्त हो गया अभी पिछले कई वर्ष पूर्व जब दुल्हा पीले रंग का जोड़ा जामा पहन कर निकलता था तब उसकी अपनी एक अलग पहचान और शान हुआ करती थी लेकिन विगत कुछ वर्षों से जामा जोड़ा का स्थान चूड़ीदार पायजामा, शेरवानी और टोपी के साथ कोट, पैन्ट व टाई ने ले लिया है जिसमें विदेशी संस्कृति और सभ्यता की झलक स्पष्ट नजर आती है पहले शादी विवाह के शुभ अवसर पर भारतीय सभ्यता और संस्कृति की एक अहम पहलू यह भी था कि सभी लोग एक साथ जमीन पर बैठ कर बड़े प्यार से पेट भर भोजन करते थे और घराती लोग उन्हें प्यार से पूछ- पूछकर भोजन परोसते थे और अतिथियों के जूठे पत्तल को अपने हाथ से फेंकने में अपनी शान समझते थे लेकिन अब उन रिवाजों का खात्मा होता जा रहा है अब इसका स्थान बफर सिस्टम व मेज कुर्सी ने ले लिया अब जमीन पर बैठकर भोजन करने में लोग अपनी तौहीनी समझते हैं और खड़े होकर भोजन करने व कराने में दोनों पक्ष के लोग अपनी शान समझते हैं। जब दिल की गहराई से विचार मन्थन किया जाय तो इस आधुनिक परम्परा और पश्चिमी संस्कृति के सांचे में भोजन करने वाले प्रेम से मिठास से वंचित रह जाते हैं जिसमें भारतीय परम्परा एवं संस्कृति का लोप दिखाई देता है आधुनिक और दिखावे की होड़ ने लोगों की मानसिकता को पूरी तरह पश्चिमी संस्कृति का गुलाम बना दिया है जिसके चलते लोग बारात ले जाने व घरातियों की व्यवस्था तक के कार्यक्रम में हकीकत कम और दिखावे की नुमाईश अधिक होती है इस अन्धी दौड़ में लोगों के आर्थिक बजट का काफी धन टेण्ट वाले ही वसूल लेते हैं जिसका परिणाम यह होता है कि यही खर्च लोगों को कि बजट को गड़बड़ कर देता है भले ही सक्षम लोगों पर इसका आर्थिक बजट के बोझ का कोई असर नहीं पड़ता हो। लेकिन दिखावे की होड़ में तैरने वाले मध्यम वर्गीय व निम्न वर्गीय लोगों की हालत खस्ता हो ही जाती है भारतीय रीति-रिवाज और परम्पराओं के अनुसार विवाह का दिन सुनिश्चित होते ही पहले ग्रामीण क्षेत्रों में लोग चारपाई, रजाई, गद्दा,तकिया मागने के साथ निमंत्रण में हल्दी और दुब देकर दरवाजे पर रहने की विनती किया करते थे साथ ही पास-पड़ोस व अपने रूठे हुये लोगों को मनाने के लिए बड़े बुजुर्गों का सहारा लिया करते थे लेकिन वर्तमान आधुनिकता की इस आंधी ने प्रेम और सौहार्द के इस शामियाने को ही उजाड़ दिया है और नेवता में सुपारी,हल्दी,दूब, पीले चावल के स्थान महंगे, चमकीले कार्डों ने ले लिया अगर देखा जाय तो नाइयों का हक भी मारा जा रहा है अधिकांश लोग शाम की बेला में विभिन्न बाजारों में बैठकर लोगों को निमंत्रण पकड़ा दे रहे हैं कुछ लोग तो एक ही व्यक्ति से कई लोगों का निमंत्रण भेज देते हैं इतना ही नहीं अब निमंत्रण तो फोन,एसएमएस, ईमेल, फैक्स,कोरियर,वारसपके भी माध्यम से भेज दिए जा रहे हैं क्योंकि आधुनिकता की व्यस्तता में किसी के दरवाजे पर निमंत्रण लेकर जाने की फुर्सत किसी के पास नहीं है क्योंकि बदलते परिवेश के साथ शादी विवाह के स्वरूप में भारतीय संस्कृति तथा रिति रिवाज को भूलकर पश्चिमी संस्कृति एवं दिखावे की चकाचैंध में तेजी से बदलाव के माध्यम से लोग स्वयं भी बदलते जा रहे हैं।

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