खुल गए स्कूल और कमीशनखोरी के धन्धे लगे फलने फूलने

जौनपुर। स्कूल खुलते ही प्राइवेट स्कूलों द्वारा अभिभावकों के जेब पर स्कूल मालिकों द्वारा डाका डालना शुरू हो गया। मोटी फीस से स्कूल मालिकों के पेट नही भरता, इसलिए किताबों,यूनिफॉर्म पर होता है कमीशन का खेल।
L.K.G, U.K.G,1st की किताबों का पैकेज 3-हजार से 4 हजार के बीच। 30-40 पृष्ठ की किताबों का मूल्य-318रु,230रु,170रु,।
इन शिक्षा माफियों पर न शासन का कोई कायदा-कानून चलता है न ही अभिभवकों पर कोई रहम।
       निजीकरण के ये दुष्परिणाम हैं,आज प्राइवेट अस्पतालों और प्राइवेट स्कूल मालिकों पर न तो सरकार का कोई कायदा कानून चलता है न ही कोई शिकंजा,ये मनमानी ढंग से आम जनता को लुटते हैं,वो तो भला हो कि आज कुछ सरकारी स्कूल और सरकारी अस्पताल बचे हैं जिनकी वजह से गरीब बच्चे पढ़ सकते हैं और गरीबों का इलाज हो पा रहा है,अन्यथा ये प्राईवेट स्कूल और अस्पताल वाले अभिभवकों का खून चूसने में कोई कोर कसर नही छोड़ते ।
 कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी सरकारी अध्यपको,स्कूलों, अस्पतालों को कोसने का कोई मौका नही छोड़ते,उनकी आवाज इन शिक्षा और चिकित्सा माफियाओं की ओर क्यों नही जाती।
मीडिया का ध्यान भी प्राइवेट स्कूलों द्वारा इस लूट की मुहिम पर भी डालना चाहता हूं,कि कृपया वो भी इस लूट को रोकने मे बढ़ कर पहल करें।
सरकार द्वारा हर कक्षा की किताबों का मूल्य क्यों नही एक सीमा राशि के द्वारा प्रतिबंधित की जाती।
50-70 %का मोटा कमीशन किताबों पर स्कूल मालिकों को जाता है जो कि सरासर अन्याय है,कहाँ गए जनीप्रतिनिधि, शिक्षक विधायक क्यों नही इसके खिलाफआवाज़ उठाते?

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