कराटे की दुनियां में चमक रहा आशुतोष

जौनपुर। मंजिले क्या हैं राश्ते क्या हैं... हौशला है तो फाशले क्या है... हिंदी पाठ्य कविता की इस चंद लाइनो को सच कर दिखाया है । जिले में पड़ने वाले एक गांव के छोटे से लड़के ने अपने दादा रामाश्रय शुक्ला के कहे इन्ही चंद लाइनों ने 11 वर्षीय आशुतोष के जीवन को बदल कर रख दिया। विकास खंड केराकत के बेहड़ा गांव में रहने लाले पशु चिकित्सक हेमंत शुक्ला के छोटे पुत्र आशुतोष ने दो साल पहले क्षेत्र के एक निजी स्कूल में कराटे की ट्रेनिगं शुरू की थी। घर वाले बताते हैं कि उस समय आशुतोष कराटे से बहुत डरता था। आशुतोष जब कराटे क्लास से कई बार भाग कर घर आ जाता था। कोच प्रेम प्रकाश पाल ने इस बात की शिकायत आशुतोष के दादा से किया। आशुतोष से उनके दादा ने पूछा बेटा   ऐसा क्यों करते हो। आशुतोष ने अपना डर अपने परिवार को बताया तो आशुतोष के दादा ने उसे मंजिले क्या हैं राश्ते क्या हैं... हौशला है तो फाशले क्या है... कविता सुनाई और कहा कि जब भी तुम्हें डर लगे तुम इस गविता को अपने मन में दोहरा लेना, लेकिन तब आशुतोष के परिजनों को भी नहीं पता था कि उसके जीवन में यह कविता इस कदर अपना स्थान बनाएगी कि उसे कराते चैंपियन बना देगी। बीते शनिवार को जिला स्तर प्रतियोगिता में आशुतोष ने सिल्वर पर कब्जा जमाया। अबतक आशुतोष चार राष्ट्रीय, आठ जिला स्तरीय व चार प्रदेश स्तरीय कराते टूर्नामेंट में गोल्ड व सिल्वर पदक प्राप्त कर चुका है। जहां पिता हेमंत और दादा रामाश्रय शुक्ला आशुतोष की इस उपलब्धि को लेकर खुश रहते हैं वह आशुतोष बेहड़ा गांव का नाम भी रोशन कर रहा है। गांव के लोग कहते हैं कि आशुतोष किसी भी प्रतियोगिता में जाता है तो ये लगभग तय है कि बिना मैडल के वापस नहीं आएगा।

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