एक रुपया सैलरी लेते थे बीएचयू के कुलपति प्रोफेसर लालजी सिंह

सिकरारा से शरद सिंह की रिपोर्ट
सिकरारा(जौनपुर) फादर ऑफ इंडियन डीएनए फिंगरप्रिंटिंग कहे जाने वाले पद्मश्री प्रोफेसर लालजी सिंह की द्वितीय पुण्यतिथि उनके पैतृक गांव कलवारी में मंगलवार को मनाई जाएगी। उनके द्वारा स्थापित किया गया जीनोम फाउंडेशन पर श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया है। जिसमे पूर्व कुलपति कीर्ति सिंह व जिलाधिकारी सहित विभिन्न राजनीतिक दलों के लोग व सम्भ्रांत नागरिक भी मौजूद होंगे।

प्रोफेसर सिंह ने राजीव गांधी हत्‍याकांड से लेकर मधुमिता हत्‍याकांड जैसे केस तक को डीएनए फिंगर प्रिंट तकनीक से जांच करके सुलझाया था। वे बीएचयू के पूर्व कुलपति थे। 70 वर्ष की उम्र में अंतिम सांस लेने वाले प्रोफेसर सिंह को पद्मश्री से सम्मानित भी किया था। मगर आपको जानकार हैरानी होगी कि भारत में डीएनए फिंगरप्रिंटिंग के जनक कहे जाने वाले लालजी सिंह बीएचयू के कुलपति थे तो सैलरी के नाम पर सिर्फ एक रुपया लेते थे। कलवारी जैसे एक छोटे से गांव से जिंदगी का सफर शुरू करने वाले लालजी सिंह का जन्म पांच जुलाई को हुआ था। उनके पिता मामूली से किसान थे। किसान के इस बेटे ने गांव के ही प्राथमिक विद्यालय से शिक्षा ग्रहण करने के बाद जब आगे की पढाई किसान आदर्श राष्ट्रीय इंटर कालेज प्रतापगंज से पूरी कर बीएचयू से एमएमसी कर वही से कोशिका आनुवंशिकी में पीएचडी किया।  उन्‍हें बीएचयू समेत 6 विश्‍वविद्यालयों ने डीएससी की उपाधि भी दी थी। प्रोफसर सिंह ने राजीव गांधी मर्डर केस, नैना साहनी मर्डर, स्वामी श्रद्धानंद, सीएम बेअंत सिंह, मधुमिता हत्याकांड और मंटू हत्याकांड जैसे केस को डीएनए फिंगर प्रिंट तकनीक से जांच करके सुलझाया था।

1971 में देश में पहली बार 62 पन्नों का उनकी पीएचडी की थीसिस जर्मनी के फॉरेन जनरल में छपा था। उसके बाद कलकत्ता यूनिवर्सिटी के रिसर्च यूनिट (जूलॉजी) जेनेटिक में फेलोशिप के तहत 1971-1974 तक रिसर्च करने का मौका मिला।1974 में पहली बार कॉमनवेल्थ फेलोशिप के तहत यूके जाने का मौका मिला। काफी दिन वहां रिसर्च के बाद भारत लौट आए। 1987 में कोशकीय और आण्व‍िक जीव विज्ञान केंद्र हैदराबाद (सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी) में साइंटिस्ट के तौर पर नियुक्त हुए। 1999 से 2009 तक यही डायरेक्टर के पद पर तैनात रहे।


कई संस्‍थानों और लैब की शुरुआत की


डॉ. लालजी ने भारत में कई संस्थानों और लैब की शुरुआत की। वे हैदराबाद के कोशिकीय एवं आणविक जीवविज्ञान केंद्र के फाउंडर भी थे। उन्होंने 1995 में डीएनए फिंगर प्रिंटिंग और डायग्‍नोस्टिक्स सेंटर शुरू किया। 2004 में गांव में ही जीओम फाउंडेशन शुरू किया। इसका उद्देश्य था कि भारत के लोगों में जेनेटिक बीमारियों को

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