डा. सिध्दार्थ ने एक बार फिर दिखायी दरियादिली,मौत के मुंह से निकाल लाया एक युवक को

जौनपुर। जहां जिले के कई डाक्टर ने कोरोना वायरस के भय से घर में आराम फरमा रहे है वही जिले के प्रख्यात सर्जन डा. लालबहादुर सिध्दार्थ ने एक बार फिर डाक्टरो को धरती के भगवान होने का ओहदा दिला दिया है। उन्होने अपनी जाबाजी और दरियादिली के बदौलत एक युवक को मौत के मुंह निकाल लिया है। कोरोना वायरस की परवाह किये बिना डा. सिध्दार्थ ने ऐसे मरीज का इलाज करके पूरी तरह से स्वस्थ्य किया जिसे जिला अस्पताल, बीएचयू वाराणसी समेत जिले के कई नामी गिरामी डाक्टरो ने जवाब दे दिया था। मरीज के परिजन अपने कुल के दीपक को बुझा हुआ समझ कर घर लेकर चले गये थे। इतना ही नही डाक्टर ने मरीज के पिता से इलाज के पैसे के एवज में  आर्शीवाद मांगा है।
मिली जानकारी के अनुसार मछलीशहर थाना क्षेत्र के डमरूआ गांव में बीते दो अप्रैल को जमीनी विवाद में जमकर मारपीट हो हुआ था। इस वारदात में संजय गिरी 24 वर्ष का आंत फट गया था। उसके पिता ने इलाज के लिए पहले मछलीशहर के दो प्राईवेट नर्सिगं होम ले गये लेकिन कोई राहत न मिलने पर उसे नगर के मड़ियाहूं पड़ाव स्थित एक नर्सिंग होम में भर्ती कराया गया। प्राथमिक उपचार के बाद डाक्टर ने जवाब दे दिया। उसके बाद परिजन उसे लेकर कई अस्पतालों में गये हर जगह उसे जवाब मिलता गया। अंत में छह अप्रैल को पिता ने अपने बेटे को लेकर जिला अस्पताल पहुंचे जहां पर उसकी हालत नाजुक देखते हुए डाक्टर ने सरकारी एबुलेंस से बीएचयू ट्रामा सेंटर भेज दिया। पिता ने बताया कि किसी डाक्टर ने  कोरोना वायरस के डर से जवाब दिया तो कोई मेरी माली हालत देखकर वापस लौटाया। बीएचयू में पैसे के अभाव में इलाज नही हुआ मैं अपने बेटे को भगवान भरोषे छोड़कर अपने घर ले आया। गांव लौटने पर ग्रामीणों ने मेरा दर्द सुना तो सभी चंदा एकत्रीत करके बच्चे का इलाज कराने की जिम्मेदारी ले लिया। इसी बीच गांव के एक युवक ने कहा कि मै मुबंई में एक अखबार में पढ़ा था कि डा. लालबहादुर सिध्दार्थ ऐसे ही एक मरीज का इलाज करके ठीक किया था उन्ही के पास ले चलते है। 7 अप्रैल को ग्रामीण उसे लेकर डा. सिध्दार्थ के पास ले आये। डा. सिध्दार्थ तत्काल आपरेशन किया। आपरेशन के दस दिन बाद ही युवक खतरे से बाहर आ गया है।
डा. सिध्दार्थ ने बताया कि जब यह मरीज मेरे पास आया था उसकी हालत बहुत ही खराब था उसका बचना नामुमकीन था लेकिन परिवार वालो के कहने पर मै इलाज के लिए तैयार हो गया लेकि बेहोसी के डाक्टर ने अपना हाथ खड़ा कर दिया। उसके बाद मैने किसी तरह से उसका आपरेशन करके फटी हुई आंत को बंद किया। मरीज के परिवार वाले काफी गरीब है मैने उनसे केवल दवा खरीदने के लिए पैसे व्यवस्था के लिए कहा है इलाज का आज तक एक भी पैसा नही लिया है। हां इतना जरूर कहा हूं कि यदि दवा खरीदने से पैसा बच जाय तो मुझे देना वर्ना आर्शीवाद देकर घर चले जाना जिससे आगे भी इस तरह की मरीजो का इलाज करके उन्हे जीवनदान दे सकूं।
डा. सिध्दार्थ ने जहां अपनी दरियदिली के बदौलत एक मरीज की जान बचायी वही इस युवक पर हमला करने वाले युवको को हत्यारा होने से बचा लिया है।  

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