कोरोना व सामाजिक दूरी का औचित्य

 किसी भी समाज की संरचना व्यक्ति के सामाजिक संबंध से निर्मित होती है लेकिन वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अरस्तू का यह कथन है कि मानव एक सामाजिक प्राणी है कहीं से भी चरित्रार्थ नहीं हो रहा है। वर्तमान समय कि वैश्विक महामारी कोरोना ने सामाजिक दूरी कि प्रक्रिया को और भी विस्तृत कर दिया है लेकिन इस सामाजिक दूरी में कहीं ना कहीं व्यक्तित्व के भावात्मक संबंधों को और अधिक दृढ़ता प्रदान की है। आज लगभग सभी देशों में जहां कारोना का प्रभाव अधिक है वहा लाकडाउन और सामाजिक दूरी के नियमो को कड़ाई से लागू किया गया है जिससे मानव जीवन की रक्षा की जा सके। आज लोग अपने परिवार में अधिक से अधिक समय तक रह रहे है जिससे एक बार पुनः पारिवारिक संरचना का पुरातन स्वरूप जागृत हो गया है। कोरोना का प्रभाव अन्य देशों की तुलना में भारत पर काम दिखाई दे रहा है क्योंकि सरकार ने समय रहते इस महामरी की नब्ज को पहचान कर इसका उचित उपचार कर दिया। आज अमेरिका, इटली स्पेन के पीड़ितो के आकंडे इतने भयावह है कि व्यक्ति का हृदय दहल जा रहा है। ऐसे में अगर इस महामरी का प्रकोप दुनिया क दूसरे सबसे ज़्यादा जनसंख्या वाले देश भारत पर पड़ा तो इसका स्वरूप कितना वीभत्स होगा। इसलिए सरकार ने 21 दिनों का प्रथम चरण का लाकडाउन किया। आज कोई भी ऐसा देश नहीं है जो इस महामारी का कोई उपचार ढूंढने में सफलता पाई हो कई देशों ने तो सामाजिक दूरी को ही कोरोना के टीके के रूप में स्वीकार किया है। आज आर्थिक गतिविधियां लगभग ठप्प हो गई है लोगो के सामने न्यूनतम आवश्यताओ को भी पूरा करने की समस्या आ रही है फिर भी सम्पूर्ण देश एक सूत्र में जुड़कर सामाजिक दूरी के द्वारा इस महामारी पर विजय प्राप्त करने का सार्थक प्रयास कर रहा है और निश्चित ही विजय इसमें जनता की होगी क्योंकि धर्म हमें यह बताता है कि अनुशासन में रहकर किया गया त्याग और कर्म अवश्य फलित होगा।
डॉ० अभय प्रताप सिंह
एसो०प्रो०/विभागाध्यक्ष, समाजशास्त्र
राजा श्री कृष्णदत्त स्नातकोत्तर महाविद्यालय, जौनपुर

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