यहां भरत जी ने स्थापित किया था शिव लिंग, देखिये गोमती-सई नदी के संगम का विहगंम दृश्य

"सई उतरि गोमती नहाये चैथे दिवस अवधपुर आये" गोस्वामी तुलसीदास द्वारा राम चरित मानस में लिखी गयी यह चौपाई जौनपुर जिले के राजेपुर गांव में स्थिति गोमती और सई के इस संगम तट के लिए लिखी गयी है। इस पवित्र स्थान का महत्व भगवान राम के समय से जुड़ा हैं। ऐसी किवदंती है कि राम के बनवास होने के बाद भरत उन्हे मनानकर अयोध्या वापस लाने के चित्रकूट गये। लाख कोशिशों के बाद भी राम वापस तो नही आये पर अपनी खड़ाऊ देकर भरत और पूरे परिवार को वापस भेज दिया। वापस लौटते समय भरत जी ने रात्री विश्राम यही किया। सूबह होने पर इसी संगम तट पर उन्होने स्नान किया और पूजन अर्चन किया था। माना जाता है कि तभी से भक्त गण इस संगम में आस्था की डूबकी लगाकर रामेश्वरम् मंदिर में पूजापाठ करते हैं।

रामेश्वर मंदिर के बाहर चबुतरे पर रखी गयी यह प्रचीन मूर्ति मुनि अष्टावक्र की हैं। अष्टावक्र राजा जनक के गुरू माने जाते हैं। वे भी इसी इसी संगम तट पर स्नान ध्यान करते रहे हैं। हलांकि यह पौराणिक स्थल शासन प्रशासन की उपेक्षा के बावजूद भी यह पवित्र स्थल अपनी अभा विखेर रही हैं। यह तीर्थ स्थल उस समय अवधराज और काशी राज्य का फाटक भी हुआ करती थी। गोमती और सई नदी के इस पार का क्षेत्र अयोध्या राज्य का हिस्सा रहा है और उसपार का इलाका काशी राज्य में आता था।

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