मां विन्ध्यवासिनी धाम में नौ दिवसीय शतचण्डी महायज्ञ शुरू
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जौनपुर। यमदग्निपुर की पावन धरती, आदि गंगा गोमती नदी के तट पर स्थित विंध्यवासिनी मंदिर बजरंग घाट पर 5 कुंडली शतचंडी का महायज्ञ सोमवार से शुरू हो गया। जौनपुर में पहली बार गुप्त नवरात्रि में शतचंडी महायज्ञ नव दिवसीय होने जा रहा है। इसी के बाबत नुमान घाट से कलश यात्रा का पावन कार्य प्रारंभ होकर देवी के पचरा गीत गाते हुए महिलाएं थल एवं जलमार्ग से कलश यात्रा निकालीं। कलश यात्रा में ढोल ताशे के साथ घोड़े, माता के जयकारे के साथ कलश यात्रा पूर्ण की गई।शतचंडी महायज्ञ के प्रमुख यद्याचार्य रविंद्र द्विवेदी ने बताया कि राष्ट्र की सुरक्षा एवं अखंडता, सनातन धर्म को बचाने, इस भारत राष्ट्र की सुरक्षा को ध्यान में रखकर महाचंडी का यज्ञ कराया जा रहा है। राष्ट्र के प्रधानमंत्री एवं राष्ट्रपति के ध्यान को आकृष्ट कराते हुए उन्होंने कहा कि हम सभी सनातनी यह बताना चाहेंगे कि अन्य राष्ट्र की भांति हमारे भारतवर्ष में भी तत्काल एनआरसी लागू की जाय और जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाकर विधिक रुप से संविधान पारित किया जाय।
उन्होंने बताया कि इस पावन धरती पर आदि गंगा गोमती तट पर माता विंध्यवासिनी के प्रांगण में पंच कुंडीय शतचंडी महायज्ञ नौ दिवसीय कराया जा रहा है। प्रतिदिन प्रातः यज्ञ 8 बजे से 12 बजे तक और शाम 5 बजे से हरी इच्छा तक संगीतमय राम कथा का पाठ होगा। यह अनुष्ठान 27 जून तक अनवरत चलेगा। आप सभी सनातनी से आह्वान है कि महायज्ञ में उपस्थित होकर अपनी पुण्य के भागी बने।
श्री द्विवेदी ने बताया कि गुप्त नवरात्र में जो भी यज्ञ, महायज्ञ, पूजन, हवन आदि करता है, उसे मां भगवती की कृपा प्राप्त होती है। गुप्त नवरात्र वर्ष में दो बार आता है और दो नवरात्र कार्तिक और चैत्र नवरात्रि में मां भगवती का पूजन किया जाता है। महात्मा के अनुसार गुप्त नवरात्रि में नवदुर्गा का स्तवन, पूजा, यज्ञ, जाप, महायज्ञ करने कराने से मां भगवती की असीम कृपा का पात्र बनता है।
इस अवसर पर आचार्य रविंद्र द्विवेदी, अखिलेश मिश्र, राम अभिलाख दुबे, रामकृष्ण तिवारी, विद्याधर शुक्ल, अभिषेक तिवारी, धरणीधर मिश्र, प्रेमशंकर मिश्र, राधेश्याम तिवारी, राघव दास, जय प्रकाश मिश्र, अज्येयानन्द जी महराज, सुभाष दुबे, माता विद्यवासिनी मंदिर के प्रमुख पुजारी रविंद्र शुक्ला सपत्नी मुख्य यजमान के रूप में रहे। अंत में जलमार्ग से कलश यात्रा में अपना सहयोग देने वाले निषादराज को मुख्य यज्ञाचार्य ने अंगवस्त्रम देकर उनका सम्मान किया।