कारवां बनता गया

 

लेखक और कवि हो जाना,

क्या इतना मुश्किल होता है,
जीवन में कभी न कभी हर एक
व्यक्ति लेखक और कवि होता है।

याद करो अपना विद्यार्थी जीवन,
जब निबंध परीक्षा में लिखते थे,
जितना अच्छा लिख लेते थे,
उतने अच्छे नम्बर भी पाते थे।

मैं अकेला ही चला था,
जानिब-ए-मंज़िल मगर,
लोग साथ आते गए और
कारवाँ बनता गया॥
(मजरूह सुल्तानपुरी)

मैं पहले टूटा फूटा ही लिखता था,
तो कोई न कोई शब्द मिल जाता था,
धीरे धीरे शब्दों से शब्द मिलते गये,
मेरे शब्द गद्य व पद्य में बदलते गये।

फिर मेरी रचना रचनाओं में बदली,
उन्ही रचनाओं की कवितायें बनी,
कवितायें जब मैने संकलित करी,
आदित्यायन की कविता-संग्रह बनी।

अब आदित्य की कवितायें सैकड़ों
सहस्त्रों में रच कर संकलित हुई हैं,
आदित्यायन-अनुभूति व संकल्प,
प्रकाशित हो कर अब आ चुकी हैं।

बस ऐसे ही हम लेखक और कवि
और साहित्यकर भी बन सकते हैं,
आदित्य बस लिखने का जुनून हो,
तो हम कवि, लेखक बन सकते हैं।

कर्नल आदि शंकर मिश्र
जनपद—लखनऊ।

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