आत्मबल...

 

तुमने ढूढ़ा था मुझको...या...

मैंने ढूँढ़ा था तुमको....
याद नहीं आता है मुझको...
पर... इतना तो है याद मुझे...!
मन से मन का संवाद हुआ था,
नैनों से नैनों का प्रेमालाप हुआ था
हुई रोम-रोम में हलचल थी....
सांसें तप्त हुई उस पल थीं....

**    **     **      **

जहाँ बसे थे तुम प्यारे...!
हर ओर दीखता दल-दल था....
मेरे-तेरे मन की बातें,
तुरत जानने को...!
हर कोई आतुर पल-पल था....
इसी दौर में... ज़िद पर मेरी...!
तेरा परदेश गमन... एक पीड़ा थी..
अनचाही सी मजबूरी थी.. पर...
थम गया शोर था बाजारों का...
जो हँसता हम पर हर-पल था
यह अलग बात रही कि...!
रोता रहता था मेरा निर्मल मन...
जो हर ओर से निश्छल था...

**     **     **    **

चंचल मन तो... रोज मिलन को...
हर-पल आतुर-विह्वल था...
आँसू रोक रखी थी मैंने... लेकिन..
चमक रहा आँखों का काज़ल था
तेरी सफलता ही तो....
हर प्रश्नों और... विवादों का...
एकमात्र हल था......
कब सफल होकर तुम...?
वापस आओगे साजन-प्रियतम...
इंतजार मुझे यह हर पल था...

**    **     **     **

कान्तिहीन हो रही थी,
मेरी काया कोमल...
धीरे-धीरे टूट रहा था,
मेरा खुद का अपना बल... पर...
अन्दर एक और मन रहा....!
जो कभी न हुआ कहीं भी दुर्बल..
कठिन परीक्षा खुद मेरी थी,
ताने थे पग-पग पर...
काँप ही जाती थी अक्सर मैं तो...
लेकिन प्रियवर... ढांढस में संग मेरे
तेरे आसरे का बल था...

**     **    **     **

साथ हुई मेरी भी पूरी साजन,
क्योंकि ना तुममें... न ही मुझमें...
कोई कल-बल-छल था....
लौट रहे हो जो अब तुम....!
शिखर सफलता का जब चूम,
वही सामने आए हैं... स्वागत में...
जो कभी विरोध का दल-बल था..

**     **     **     **

इंतजार के दिन हुए खत्म सब,
हम दोनों हैं आज सफल....
मिलन हमारा एक दैव योग था,
पर....तुम मानो या ना मानो....!
जीवन सफल हो जाना...
सचमुच प्रियतम यह तो....
तेरा खुद का आत्मबल था...!
तेरा खुद का आत्मबल था...!

रचनाकार—— जितेन्द्र दुबे
अपर पुलिस अधीक्षक
जनपद कासगंज।

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